मार्च 2023 के श्रमिक बाजार के आंकड़े निराशाजनक साबित हुए हैं। बेरोजगारी दर फरवरी 2023 के 7.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च में 7.8 प्रतिशत हो गई। वहीं इन समान महीने के दौरान ही श्रम भागीदारी दर 39.9 प्रतिशत से कम होकर 39.8 प्रतिशत रह गई और रोजगार दर 36.9 प्रतिशत से घटकर 36.7 प्रतिशत हो गई।
वर्ष 2022-23 में भारत की बेरोजगारी बढ़ी हुई है। वर्ष की प्रत्येक तिमाही में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत से अधिक थी। वित्त वर्ष के दौरान औसत मासिक बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत थी। पहली छमाही में औसतन 7.4 प्रतिशत जबकि दूसरी छमाही में बेरोजगारी दर औसतन 7.8 प्रतिशत तक बढ़ी। वर्ष के दौरान दिखने वाले रुझान बेरोजगारी दर में किसी कमी के संकेत नहीं देते हैं।
ऐसा लगता है कि श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) वर्ष 2022-23 में 40 प्रतिशत से कम के स्तर पर पहुंच गई है। यह वर्ष, 2021-22 के 40.1 प्रतिशत एलपीआर से कम है। एलपीआर में वर्ष 2022 के अंत में अच्छी तेजी दिखी लेकिन श्रम बाजारों के श्रमिकों में वृद्धि के चलते बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी दिखी है। दिसंबर 2022 में एलपीआर 40.5 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।
इसकी वजह से इस महीने के दौरान बेरोजगारी दर बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई। बाजार एलपीआर में वृद्धि के अनुरूप नौकरियों की पेशकश नहीं कर सकता था। एलपीआर जनवरी 2023 में फिर से पुराने स्तर पर चली गई।
वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही के दौरान श्रम बाजार में कमजोरी बरकरार रही। एलपीआर ने अपना पर्याप्त आधार खो दिया है क्योंकि यह दिसंबर के 40.5 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2023 में 39.8 प्रतिशत हो गई। इस अवधि के दौरान बेरोजगारी दर में गिरावट 8.3 प्रतिशत से घटकर 7.8 प्रतिशत हो गई। श्रम बाजारों की कमजोरी, रोजगार दर में सबसे अच्छी तरह से प्रदर्शित होती है। रोजगार दर दिसंबर 2022 के 37.1 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2023 तक 36.7 प्रतिशत हो गई।
दिसंबर 2022 और मार्च 2023 के बीच रोजगार दर में यह गिरावट पूर्ण रोजगार में 26 लाख तक की कमी में बदल गई। इसमें से ज्यादातर कमी मार्च 2023 में हुई थी। मार्च 2023 में रोजगार में 22.7 लाख की कमी आई। महीने के दौरान श्रम बाजारों में उल्लेखनीय उथल-पुथल के बाद रोजगार में यह शुद्ध गिरावट है। श्रमिकों ने मौसमी मांग को देखते हुए अपनी राह बदल ली है।
मार्च में निर्माण क्षेत्र के रोजगार में 95.8 लाख की कमी आई। यह असाधारण रूप से बड़ी गिरावट है। इसकी तुलना मई 2021 में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर दौरान निर्माण उद्योग के रोजगार में आई 1.16 करोड़ की गिरावट से की जा सकती है। औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार, फरवरी के 7.23 करोड़ से घटकर मार्च में 6.27 करोड़ हो गई।
मार्च में रोजगार के मोर्चे पर अगला सबसे बड़ा नुकसान खुदरा कारोबार उद्योग में हुआ। इसमें रोजगार का स्तर फरवरी के 7.57 करोड़ से घटकर मार्च में 6.76 करोड़ हो गया। मई 2021 में कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद से लगभग 80 लाख नौकरियों का यह नुकसान औद्योगिक क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा है।
ऐसा प्रतीत होता है कि निर्माण और खुदरा कारोबार क्षेत्र के रोजगार में बड़ी कमी होने से यह जरूरी नहीं कि इन उद्योगों में श्रमिकों की मांग भी घट जाए लेकिन रबी फसल की कटाई की तैयारी को लेकर सीजन के हिसाब से श्रमिकों का आना-जाना लगा रहता है।
कृषि के क्षेत्र में मार्च में रोजगार में 1.72 करोड़ की वृद्धि देखी गई। मार्च में कृषि क्षेत्र के रोजगार में वृद्धि सामान्य है। लेकिन 2016 में रोजगार की निगरानी शुरू करने के बाद से 1.7 करोड़ की वृद्धि सबसे अधिक है। मार्च 2022 में कृषि क्षेत्र के रोजगार में वृद्धि 1.5 करोड़ थी। पहले यह और भी कम थी।
कृषि क्षेत्र के भीतर श्रमिक खेती से संबद्ध गतिविधियों के बजाय अब खेती की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं। लगभग 60 लाख मजदूर खेती से संबद्ध गतिविधियों जैसे कि मुर्गी पालन, पौधरोपण और मछली पकड़ने जैसे कामों के बजाय अब खेती से जुड़ रहे हैं।
इसका अंदाजा इस बात से भी मिलता है कि रबी फसल की कटाई के लिए श्रमिक जा रहे हैं। मार्च में खेती से जुड़ने वाले श्रमिकों की संख्या 2.3 करोड़ थी। दिक्कत की बात यह है कि क्या निर्माण और खुदरा उद्योग फसलों की अवधि के दौरान इतनी बड़ी मात्रा में श्रमिक मुहैया करा सकते हैं।
कम समय के अंतराल के भीतर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में श्रमिकों का बड़े पैमाने पर स्थानांतरण, भारत में मांग की प्रतिक्रिया की वजह से श्रमिकों की असाधारण गतिशीलता को दर्शाती है। लेकिन, यह रोजगार की बड़ी असंगठित और अनिश्चित प्रकृति को भी दर्शाता है। यह अब भी विवादास्पद है कि क्या निर्माण और खुदरा उद्योग फसल की अवधि के दौरान इतनी बड़ी मात्रा में श्रमिक मुहैया कर सकते हैं।
क्या फसल कटाई के बाद श्रमिक इन उद्योगों में वापस जा सकते हैं और क्या ये उद्योग इस बीच अधर में लटके रह सकते हैं? कृषि क्षेत्र के रोजगार में औसत मासिक अंतर 0.28 प्रतिशत है, लेकिन इसका मानक विचलन (स्टैंडर्ड डिविएशन) 5.5 प्रतिशत है।
औसत मासिक अंतर -0.63 प्रतिशत है। कृषि क्षेत्र में कुछ महीनों के दौरान बड़े पैमाने पर श्रमिकों की दरकार होती है और फिर कई महीनों तक श्रमिक खाली बैठे रहते हैं। मार्च 2022 में खेती में लगने वाले कामगारों में 10.4 फीसदी की वृद्धि हुई और फिर अगले तीन महीनों में श्रमिकों में 3 प्रतिशत, 6 प्रतिशत और 6 प्रतिशत की कमी देखी गई।
मार्च 2023 में कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की खपत में 12 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। हम उम्मीद कर सकते हैं कि अगले 2-3 महीनों में कामगार खेती से थोड़ा मुक्त हो जाएंगे।
भारत में कुल रोजगार में कृषि का योगदान लगभग 40 प्रतिशत है। सरकार के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार यह और भी अधिक है। श्रमिकों की खपत वाले इस बड़े क्षेत्र में रोजगार को लेकर पर्याप्त अस्थिरता की स्थिति है जिसकी वजह से भारतीय श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा कमजोर हो जाता है।
(लेखक सीएमआईई के एमडी और सीईओ हैं)