चीन की अर्थव्यवस्था (China economy) ऊर्जाहीनता की अजीब तस्वीर पेश कर रही है। दुनिया का बड़ा हिस्सा जहां मुद्रास्फीति से जूझ रहा है, वहीं चीन अपस्फीति (deflation) का शिकार है। वहां उत्पादक मूल्य में अपस्फीति है और उपभोक्ता कीमतों पर आधारित महंगाई कम है। दुनिया के अन्य हिस्सों के केंद्रीय बैंक जहां ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, वहीं चीन का केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति को शिथिल कर रहा है।
भारत जैसे देशों में जहां शेयर बाजार में तेजी आ रही है, वहीं शांघाई कंपोजिट इंडेक्स 2009 की तुलना में भी नीचे आ चुका है। विनिर्माण के गढ़ माने जाने वाले चीन में औद्योगिक उत्पादन कोविड के पहले के स्तर से भी कमतर है। ऋण वृद्धि में गिरावट आ रही है और डॉलर के मुकाबले युआन भी कमजोर हो रहा है। इन बातों ने 2022 के बाद आर्थिक सुधार की कहानी को यकीनन कमजोर किया है।
अनुमान था कि गत कैलेंडर वर्ष में वृद्धि दर 5.5 फीसदी रहेगी लेकिन वह केवल तीन फीसदी रह गई। अगर कोविड से प्रभावित वर्ष 2020 को छोड़ दिया जाए तो यह दर काफी कम है। इस वर्ष वृद्धि का आधिकारिक अनुमान 5 फीसदी का है लेकिन कम आधार के बावजूद हर बीतते महीने के साथ परिदृश्य में अनिश्चितता बढ़ती जा रही है। टीकाकार घरेलू मांग तथा निजी निवेश में कमी की ओर संकेत करते हैं।
व्यापारिक मोर्चे पर आठ में से छह महीनों में निर्यात में कमी आई
कोविड महामारी की शुरुआत वाली तिमाही को छोड़ दिया जाए तो एक दशक में पहली बार निजी निवेश में कमी आई है। जनवरी- अप्रैल में शुरू होने वाले नए आवासों का स्तर एक वर्ष पहले की तुलना में 20 फीसदी कम हुआ। व्यापारिक मोर्चे पर आठ में से छह महीनों में निर्यात में कमी आई है। आयात भी कमजोर है। संपत्ति बाजार और निर्यात के बल पर आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था के दोनो इंजन कमजोर नजर आ रहे हैं। गतिशीलता की कमी का अर्थ यह है कि शायद मुद्रास्फीति का तीन फीसदी का लक्ष्य भी हासिल न हो।
अधिकांश पर्यवेक्षकों का अनुमान था कि इस वर्ष के आरंभ में कोविड संबंधी प्रतिबंध समाप्त होने के बाद वृद्धि में तेजी आएगी और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 4.5 फीसदी की वृद्धि देखने को भी मिली। परंतु पिछले वित्त वर्ष की बाद वाली तिमाहियों में प्रदर्शन कोविड लॉकडाउन तथा अन्य वजहों से प्रभावित हुआ था और उसे समायोजित करके देखा जाए तो वृद्धि दर 2.6 फीसदी रहने का अनुमान है। इस बीच 16 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 20 फीसदी हो गई। इसके बावजूद चीनी अधिकारी मांग को गति देने के अनिच्छुक नजर आ रहे हैं।
चीन की कामकाजी आयु वाली आबादी में आ रही कमी
इनमें से कुछ कारक चक्रीय हो सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि दीर्घावधि की ढांचागत बाधाएं अनुपस्थित हैं। चीन की कामकाजी आयु वाली आबादी में कमी आ रही है। सार्वजनिक और अर्द्ध शासकीय कर्ज में इजाफा हुआ है और आवास क्षेत्र में बहुत अधिक निर्माण हो गए हैं। इन सभी कारकों के बारे में काफी समय से अनुमान था और ये अर्थव्यवस्था की गति को प्रभावित करने का काम करेंगे। इसके अलावा परियोजनाओं के खराब चयन और पूंजी पर कम प्रतिफल तथा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई को शामिल कर लें तो ढांचागत बदलाव की आवश्यकता होगी।
इस बीच वृद्धि के प्राथमिक कारक के रूप में पूंजी निवेश से निजी खपत की ओर बदलाव फलीभूत नहीं हो सका है। उपभोक्ता मांग की तात्कालिक कमी इस नाकामी को दर्शाती है।
पश्चिमी दुनिया चीन के विनिर्माण पर अपनी निर्भरता कम करके अपना जोखिम कम करना चाहती है। हालांकि सार्थक ढंग से ऐसा करना संभव नहीं है क्योंकि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है, वह एक बड़ी विनिर्माण शक्ति तथा बड़ा निर्यातक भी है लेकिन इस बीच विदेशी निवेश जरूर चीन से इतर अन्य देशों का रुख कर सकता है। रणनीतिक तरीके से पश्चिमी तकनीक के लिए रास्ते बंद करना इस कहानी की अनिश्चितता में एक और पहलू जोड़ता है।
यह भी ध्यान देना होगा कि चीन की विकास गाथा के पतन की कहानी बीते दो दशकों में कई बार कही गई है। इस बार भी उसकी वापसी की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। कई विदेशी पर्यवेक्षकों का मानना है कि 2023 के लिए 5 फीसदी का आधिकारिक वृद्धि लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो यह वर्ष की वैश्विक वृद्धि का दोगुना होगा तथा प्रति व्यक्ति आय के मामले में चीन के स्तर वाली कोई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्था ऐसा नहीं कर पाएगी।
इसके बावजूद चीन के अमेरिका से बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने तथा पश्चिम के रणनीतिक दबदबे को चुनौती देने की बात की समीक्षा करनी होगी। फिलहाल तो स्थिति वैश्विक शक्ति संतुलन में स्थानांतरण के बजाय पुनर्संतुलन की अधिक लगती है।