भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति ने इस वित्त वर्ष की अपनी पहली बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि रीपो दरों में बदलाव नहीं किया जाएगा और उन्हें 6.50 फीसदी पर बरकरार रहने दिया गया। उसके इस निर्णय ने बाजार को चौंका दिया है।
अधिकांश बाजार प्रतिभागियों ने, जिनमें इस समाचार पत्र द्वारा किए गए सर्वेक्षण में शामिल 10 में से आठ प्रतिभागी भी शामिल हैं, यही उम्मीद जताई थी कि इस बैठक में रीपो दर में कम से कम 25 आधार अंकों का इजाफा तो किया ही जाएगा। परंतु एमपीसी ने निर्णय लिया कि वह फिलहाल नीतिगत दरों में इजाफा नहीं करेगी।
उसने यह आकलन करने का फैसला किया कि दरों में संचयी ढंग से किया जाने वाला इजाफा व्यवस्था पर किस तरह का प्रभाव डालता है। जैसा कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में कहा भी केंद्रीय बैंक ने अप्रैल 2022 से अब तक नीतिगत दरों में प्रभावी ढंग से 290 आधार अंकों का इजाफा किया है। ऐसा इसलिए कि उसने स्थायी जमा सुविधा दर को तयशुदा रिवर्स रीपो दर से 40 आधार अंक ऊपर रखा।
जाहिर है इनमें से अधिकांश तथ्य बाजार प्रतिभागियों को पहले से पता थे लेकिन फिर भी वे केंद्रीय बैंक से उम्मीद कर रहे थे कि वह कम से कम अप्रैल की बैठक में नीतिगत दरों में इजाफा करेगा क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति की दर ने बीते दो महीनों में चौंकाया है और वह ऊपर रही है।
मूल मुद्रास्फीति भी तय दायरे के ऊपरी स्तर से अधिक रही। हालांकि एमपीसी ने कहा कि वह मुद्रास्फीति और वृद्धि के परिदृश्य पर पूरी नजर रखेगी और भविष्य में आवश्यक होने पर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी लेकिन बाजार यही मानकर चलेगा कि मौजूदा चक्र में यही दरें बरकरार रहेंगी।
ऐसे में नीतिगत कदम और उसके साथ दिया जाने वाला वक्तव्य भविष्य के कदमों को लेकर कई सवाल पैदा करता है। उदाहरण के लिए एमपीसी ने मुद्रास्फीति के अनुमानों के तय दायरे से ऊपर रहने के बावजूद दरों को अपरिवर्तित रखा। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर एमपीसी आगे किस आधार पर कदम उठाएगी? इसके अलावा मौजूदा परिदृश्य में क्या 25 आधार अंकों का इजाफा नहीं किया जा सकता था।
ध्यान रहे कि एमपीसी ने 2023-24 के सकल घरेलू उत्पाद संबंधी अनुमानों को ऐसे समय में 6.4 फीसदी से बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया जब अधिकांश पूर्वानुमान लगाने वाले अपने अनुमान घटा रहे हैं। यहां तक कि पेशेवर पूर्वानुमान लगाने वालों का भी यही मानना है कि इस वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 6 फीसदी रहेगी।
एमपीसी के संशोधित अनुमानों के अनुसार मुद्रास्फीति में कमी आएगी और 2023-24 में वह 5.2 फीसदी रह सकती है। ऐसे में दलील दी जा सकती है कि आरबीआई चालू वर्ष में 130 आधार अंकों की वास्तविक नीतिगत दर बरकरार रखेगा जो पर्याप्त होगी।
बहरहाल, यह बात ध्यान देने वाली है और जिस पर आरबीआई के नेतृत्व ने भी गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में जोर दिया, मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4 फीसदी है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में भी मुद्रास्फीति तय लक्ष्य से काफी ऊपर रहेगी। चूंकि रिजर्व बैंक तथा कुछ अन्य केंद्रीय बैंक भी पिछले कुछ समय से मुद्रास्फीति के दबाव को कम करके आंक रहे हैं इसलिए संभव है कि मुद्रास्फीति के वास्तविक परिणाम तय दायरे के ऊपरी सिरे से करीब रहें।
ऐसे में चूंकि मूल मुद्रास्फीति भी ऊंची है तो यह देखना होगा कि क्या मौजूदा दौर में दरों में इजाफा रोकना समझदारी भरा निर्णय है या नहीं। घरेलू स्तर पर और वित्तीय बाजारों द्वारा इसका मतलब यही लगाया जाएगा कि दरों में इजाफे का दौर अब समाप्त हो रहा है।