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पीएमसी बैंक के जमाकर्ताओं के लिए अनिश्चितता कायम

Last Updated- December 12, 2022 | 2:57 AM IST

सेंट्रम फाइनैंशियल सर्विसेस लिमिटेड और रेजिलिअंट इनोवेशंस प्राइवेट लिमिटेड (भारतपे ब्रांड के लिए खास तौर पर मशहूर) के सैकड़ों कर्मचारी इन दिनों अपने नए लघु वित्त बैंक का नाम तय करने में व्यस्त रहे हैं। ये दोनों कंपनियां लगभग आधी-आधी हिस्सेदारी (50.10-49.90 प्रतिशत) के साथ इस नई इकाई का गठन कर रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इन दोनों कंपनियों को लघु वित्त बैंक स्थापित करने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है और समझा जा रहा है कि इसमें पंजाब ऐंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक का भी विलय होगा। आरबीआई ने सितंबर 2019 से पीएमसी के कारोबार पर अस्थायी रोक लगा रखी थी।

पीएमसी बैंक और इसके 1,200 कर्मचारियों को उबारने की जिम्मेदारी सेंट्रम ग्रुप के प्रमुख जसपाल बिंद्रा और रेजिलिअंट इनोवेशंस के सह-संस्थापक अशनीर ग्रोवर को सौंपी गई है। अमूमन जब कोई सहकारी बैंक विफल होता है तो उसकी परिसंपत्तियां बेचकर उसे बंद कर दिया जाता है। यह पहला मौका है जबविलय के माध्यम से किसी सहकारी बैंक को उबारने की कोशिश की जा रही है।  

जून 2020 में बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन के बाद सहकारी बैंक  अब आरबीआई की निगरानी में आ गए हैं। पीएमसी बैंक का विलय एक नई इकाई के साथ किया जाएगा। यह नई इकाई आरबीआई से सैद्धांतिक अनुमति पाने के 120 दिन के भीतर परिचालन शुरू कर देगी। हालांकि  अब महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि पीएमसी बैंक के जमाकर्ताओं का क्या होगा?

केंद्रीय बैंक ने 23 सितंबर, 2019 को पीएमसी बैंक का निदेशक मंडल भंग कर दिया था और एक प्रशासक नियुक्त कर दिया था। आरबीआई ने बैंक से निकासी की सीमा भी 1,000 रुपये तय कर दी थी। जून 2020 में चरणबद्ध रूप में निकासी की सीमा बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दी गई जिससे बैंक के 84 प्रतिशत जमाकर्ताओं को अपनी पूरी जमा रकम निकालने का मौका मिल गया। आरबीआई ने यह व्यवस्था 31 दिसंबर तक के लिए बढ़ा दी है। मार्च 2020 में पीएमसी बैंक का जमा आधार 10,727 करोड़ रुपये था और इसने कुल 4,473 करोड़ रुपये ऋण आवंटित कर रखे थे। इस अवधि तक बैंक की सकल गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) 3,519 करोड़ रुपये थी और बतौर पूंजी 293 करोड़ रुपये रकम थी। सितंबर 2020 तक जमा आधार कम होकर 10,500 करोड़ रुपये रह गया। वित्त वर्ष 2020 में 6,835 करोड़ रुपये नुकसान झेलने के बाद इसकी शुद्ध परिसंपत्ति 5,851 करोड़ रुपये कम हो गई। बैंक में जमा कुल रकम में करीब 30 प्रतिशत जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी 92 प्रतिशत है। शेष 70 प्रतिशत जमाकर्ताओं की रकम 25,000 रुपये या इससे भी कम है। जब पीएमसी के कारोबार पर अस्थायी रोक लगाई गई थी तो उस समय इन छोटे जर्माकर्ताओं की रकम कुल जमा 11,617 करोड़ रुपये में मात्र 898 करोड़ रुपये थी। उन्होंने अपनी रकम निकाल ली थी। 5 लाख रुपये तक की जमा रकम पर बीमा सुरक्षा का प्रावधान है। इस प्रावधान से 4,000 करोड़ रुपये रकम तो सुरक्षित हो जाएगी लेकिन जमाकर्ताओं के 6,500 करोड़ रुपये तब भी बच जाएंगे। पीएमसी बैंक के करीब 1,000 करोड़ रुपये मूल्य के ऋण अच्छी स्थिति में है और 500 करोड़ रुपये के फंसे ऋण की वसूली संभव है। इनके अलावा पीएमसी बैंक के पास 2,000 करोड़ रुपये मूल्य के सरकारी बॉन्ड हैं। अगर हम शाखाओं के रूप में बैंक की परिसंपत्ति का भी मूल्यांकन करें तो कुल रकम 4,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। इस तरह, पीएमसी बैंक की कुल जमा देनदारी कम होकर 6,500 करोड़ रुपये रह जाती है। हालांकि यह आकलन केवल कागजी है क्योंकि पीएमसी बैंक का विलय एक नए बैंक के साथ हो रहा है इसलिए इसकी शाखाओं की बिक्री संभव नहीं होगी।

नए बैंक के प्रवर्तकों ने चरणबद्ध रूप में 1,800 करोड़ रुपये देने का वायदा किया है। अब इस गणना के आधार पर जमाकर्ताओं को उनकी रकम वापस कैसे मिलेगी? विलय योजना तैयार होने तक हमें यह जानने के लिए इंतजार करना होगा लेकिन मेरा अनुमान है कि रकम लौटाने के कई तरीके होंगे। 5 लाख रुपये तक की जमा रकम डिपॉजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (डीआईसीजीसी) द्वारा बीमित होती है लेकिन यह बीमा लाभ तभी मिलता है जब बैंक बंद हो जाता है। पीएमसी बैंक के मामले में डीआईसीजीसी अधिक से अधिक ऋण के रूप में नकदी समर्थन दे सकती है। इस रकम के साथ बैंक संभवत: चरणबद्ध रूप में जमाकर्ताओं को भुगतान करेगी और एक हिस्सा शेयर में भी बदला जा सकता है। भुगतान प्रक्रिया फंसे ऋण की वसूली के अनुसार भी तय की जा सकती है। इसके अलावा जमा राशि पर ब्याज भुगतान बंद करने की एक तारीख भी निश्चित की जाएगी। यह पूरी प्रक्रिया बेहद पेचीदा होगी लेकिन पूर्ण भुगतान की गारंटी तब भी नहीं दी जा सकती। अब पीएमसी बैंक के शेयरधारकों का क्या होगा? विलय होने पर 293 करोड़ रुपये की पूंजी खत्म हो जाएगी। क्या किसी हिस्सेदार को कुछ मिलेगा? इसकी उम्मीद लगभग न के बराबर है। 

आखिर बिंद्रा ने एक नए (वह भी लघु वित्त बैंक) बैंक की स्थापना के लिए पीएमसी बैंक का अधिग्रहण करने का निर्णय क्यों लिया? इसकी वजह वह जानते होंगे लेकिन कुछ बातें तो साफ हैं। इतना तो तय है कि पीएमसी बैंक के अधिग्रहण के साथ नया बैंक स्थापित करने में अधिक समय नहीं लगेगा। इस मामले में उनका संयुक्त उद्यम दिसंबर तक शुरू हो जाएगा। आम तौर पर नए बैंक की स्थापना दो वर्ष से पहले नहीं हो सकती और इस बात की गारंटी भी नहीं होती है कि नियामक आवेदन स्वीकार कर ही लेगा। नई इकाई की 137 शाखाएं होंगी जिनमें 40 परिसर पीएमसी बैंक के अधीनस्थ हैं। पीएमसी बैंक के पास आधुनिक कोर बैंकिंग सॉल्युशंस (इन्फोसिस लिमिटेड का) भी है।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं। )

First Published - July 7, 2021 | 11:38 PM IST

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