अप्रैल 2015 में, वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) ने पांच बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों- बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, आईडीबीआई बैंक लिमिटेड और पंजाब नैशनल बैंक के लिए प्रबंध निदेशक और मुख्य परिचालन अधिकारी (एमडी एवं सीओओ) पद हेतु आवेदन आमंत्रित किए थे।
इन पदों के लिए योग्यता मानदंडों में ‘बैंकिंग क्षेत्र में ज्ञान और अनुभव के साथ क्षमता, ईमानदारी और प्रतिष्ठा’, ‘टीम बनाने और प्रेरित करने के लिए प्रबंधन दक्षता, नेतृत्व और नए कौशल’ और ‘बैंकिंग क्षेत्र में संस्थागत विकास का अनुभव’ शामिल थे। इसके अलावा इस पद के लिए 45 से 57 वर्ष की आयु वर्ग के उम्मीदवारों के पास कम से कम 15 साल का बैंकिंग अनुभव होना जरूरी था, जिसमें बैंक बोर्ड के स्तर पर कम से कम एक साल का अनुभव हो। उन्हें तीन साल के कार्यकाल की पेशकश की गई थी, जो ‘60 वर्ष की सामान्य सेवानिवृत्ति आयु’ तक ही हो सकता था। यह पहली बार था कि वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों में शीर्ष पदों के लिए निजी क्षेत्र के लिए भी दरवाजे खोले थे।
24 अगस्त, 2015 को, तीन-चरण की स्क्रीनिंग और तीन अलग-अलग पैनलों द्वारा अंतिम साक्षात्कार की एक श्रृंखला के बाद सफल उम्मीदवारों के नाम घोषित किए गए। उनमें से दो निजी क्षेत्र से चुने गए, बैंक ऑफ बड़ौदा के लिए पी.एस. जयकुमार और केनरा बैंक के लिए राकेश शर्मा। जयकुमार ने सिटीबैंक एनए में काम किया था और वीबीएचसी वैल्यू होम प्राइवेट लिमिटेड के एमडी और सीईओ के रूप में भी काम किया था। शर्मा, मूल रूप से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से जुड़े थे और इस पद को संभालने से पहले पूर्व लक्ष्मी विलास बैंक लिमिटेड के सीईओ और एमडी के रूप में कार्यरत थे।
शर्मा ने 11 सितंबर, 2015 को केनरा बैंक ज्वाइन किया और 31 जुलाई, 2018 को पद छोड़ दिया। जयकुमार ने 13 अक्टूबर, 2015 को बैंक ऑफ बड़ौदा ज्वाइन किया। उनके तीन साल के कार्यकाल को एक और साल के लिए, यानी 12 अक्टूबर, 2019 तक बढ़ा दिया गया था। संयोग से, ‘खुली’ नियुक्ति का यह प्रयोग केवल एक दौर के बाद बंद कर दिया गया।
नियुक्तियों की घोषणा के ठीक दो दिन बाद, 16 अगस्त, 2015 को, तत्कालीन वित्तीय सेवा सचिव हंसमुख अधिया ने पीटीआई को बताया था, ‘पांच बड़े बैंकों के लिए हमारी अलग प्रक्रियाएं थीं। बाकी बैंकों के लिए, हम सरकारी बैंकों के कार्यकारी निदेशकों के पूल से ही भर्ती करने जा रहे हैं। शेष बैंक रिक्तियों के लिए पात्रता मानदंड को मंजूरी दे दी गई है और तंत्र के भीतर ही प्रतिस्पर्धा है। शेष बैंकों के लिए,कार्यकारी निदेशकों के पूल में से चयन की सामान्य प्रक्रिया होगी।’ हालांकि विज्ञापन में इस बात का जिक्र किया गया था कि ‘नियुक्त किए गए लोगों के लिए वेतन पैकेज लचीला होगा’ जो कभी नहीं हुआ।
अब, हम 4 अक्टूबर, 2025 की बात करते हैं। कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों के चयन के लिए दिशानिर्देशों में संशोधन किया है, जिसके तहत पहले के सभी मानदंडों को हटा दिया गया। नए दिशानिर्देशों के तहत निजी क्षेत्र के उम्मीदवार, एसबीआई में चार एमडी पदों में से एक के लिए आवेदन कर सकते हैं। अन्य तीन के लिए, केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकर ही आवेदन कर सकते हैं। वे आंतरिक उम्मीदवार या राष्ट्रीयकृत बैंकों के कार्यकारी निदेशक (ईडी) और एमडी व सीईओ हो सकते हैं।
एक दशक के बाद, सरकार ने सरकारी बैंकों में शीर्ष पदों के लिए एक बार फिर निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। उम्मीदवारों की योग्यता के तहत 21 साल के अनुभव की पात्रता रखी गई जिसमें कम से कम 15 साल बैंकिंग में हों, जिनमें से दो बोर्ड स्तर पर या तीन उससे ठीक नीचे के स्तर पर होने चाहिए। चयन प्रक्रिया में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उम्मीदवारों दोनों के लिए ‘खुला’ विज्ञापन शामिल होगा।
इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सरकार अब कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये के कारोबार वाले बड़े राष्ट्रीयकृत बैंकों में कम से कम एक ईडी पद को निजी क्षेत्र के लिए खोल रही है। बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नैशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और केनरा बैंक इस श्रेणी में आते हैं। इन बैंकों में से प्रत्येक में चार ईडी हो सकते हैं, जिनमें से एक अब निजी क्षेत्र से हो सकता है।
इस बार, अधिसूचना में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ऐसे पदों के लिए ‘वेतन पैकेज’ सहित सभी नियम और शर्तें, समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएंगी। यह सरकारी बैंकों में शीर्ष पदों के लिए नियुक्ति प्रक्रिया में उदारीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो हाल के दिनों में कारोबार वृद्धि में अपने समकालीन निजी बैंकों से आगे निकल रहे हैं। शीर्ष पद को निजी क्षेत्र के लिए खोलना तो ठीक है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार बाजार दर पर वेतन दिए बिना प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित कर पाएगी? सरकारी बैंकों के नेतृत्वकर्ताओं को गौरव की भावना और उद्देश्य प्रेरित करते हैं, लेकिन क्या ये ऐसी नौकरियों के लिए शीर्ष बैंकिंग पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त हैं?
ऐतिहासिक रूप से, कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जब निजी बैंकों का नेतृत्व सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकरों ने किया है, चाहे इन बैंकों को स्थापित करना हो (जब 1990 के दशक में भारत ने निजी क्षेत्र के लिए बैंकिंग क्षेत्र खोला) या संकटों का प्रबंधन करना हो (जिसके हाल के कई उदाहरण हैं)। लेकिन अब तक निजी क्षेत्र के पेशेवरों द्वारा सरकारी बैंकों का नेतृत्व करने के केवल दो उदाहरण हैं। मुआवजे के अलावा, एक और महत्त्वपूर्ण पहलू संस्कृति है जो कभी-कभी पैसे से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। एक बाहरी व्यक्ति के लिए इसे अपनाना आसान नहीं होता है।
आखिर बैंकरों का वेतनमान अफसरशाहों के वेतनमान से जुड़ा क्यों होता है। अफसरशाह जनता से जुड़ी नीतियां बनाते हैं जबकि बैंकर जनता के पैसे का प्रबंधन करते हैं और भारी जोखिम लेते हैं।
एसबीआई के चेयरमैन का वेतनमान लेवल 17 पर तय होता है जो किसी मंत्रालय में सचिव रैंक के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी के बराबर है। सातवें वेतन आयोग के अनुसार इस स्तर का वेतन कुल 2.25 लाख रुपये प्रतिमाह है और इसके अलावा कुछ अन्य भत्ते भी हैं। इसी तरह अन्य बैंकों के एमडी और सीईओ तथा एसबीआई के एमडी का वेतनमान लेवल 16 है जो अतिरिक्त सचिव के वेतन के बराबर है। सरकारी बैंकों के प्रमुखों के वेतन और भत्ते, निजी बैंक के एमडी और सीईओ के वेतन की तुलना में बहुत कम होता है।
हालांकि सरकारी बैंकों में निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों के लिए शीर्ष पदों को खोलना निश्चित रूप से सुधार की शुरुआत है। अगला तार्किक कदम यह होना चाहिए कि बैंकरों के वेतन को आईएएस अधिकारियों के वेतन से अलग किया जाए।