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पीसीआर के विचार को साकार करने का समय

Last Updated- December 12, 2022 | 2:36 PM IST
RBI

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 6 जून, 2018 को ऐलान किया था कि ‘मॉड्युलर और चरणबद्ध तरीके’ से  पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री (पीसीआर) की स्थापना की जाएगी। साथ ही उसने वाईएम देवस्थली की अध्यक्षता में भारत के लिए पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री पर उच्चस्तरीय कार्यबल की रिपोर्ट भी जारी की थी। कार्यबल की स्थापना के पीछे ‘क्रेडिट की मौजूदा उपलब्धता की सूचना की समीक्षा, मौजूदा सूचना उपयोगिताओं की पर्याप्तता और उन रिक्तताओं को चिह्नित करने’ का उद्देश्य था, जिनकी पीसीआर से भरपाई की जा सके।

इससे पहले  4 अप्रैल, 2018 को जमा की गई इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि, ‘सूचना विसंगति को दूर करने और कर्ज तक बेहतर पहुंच को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था में क्रेडिट संस्कृति को मजबूत करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एक पीसीआर स्थापित किया जाना चाहिए।’

क्या किसी को इस परियोजना की प्रगति के बारे में कुछ पाता है? विभिन्न डेटाबेस से वित्तीय और गैर-वित्तीय जानकारी एकत्र करने के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस ही पीसीआर कहलाता है। इसके पीछे विचार यही विचार था कि ऐसे सभी ब्योरे को दर्ज किया जाए, जिसकी नियामक, ऋण प्रदाता संस्थान, क्रेडिट ब्यूरो, रेटिंग एजेंसियों और यहां तक कि ऋण लेने वालों को जानने की आवश्यकता होती है।

सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इन्फॉर्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स (सीआरआईएलसी) की स्थापना के साथ यह प्रक्रिया शुरू हुई। जून 2014 में जब तक आरबीआई ने सीआरआईएलसी की स्थापना नहीं की थी, तब तक बैंकों के फंसे हुए कर्जों के आंकड़ों में असंगति दिखती थी। सीआरआईएलसी से कई साल पहले 2008 में बैंकिंग नियामक ने क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सिस्टम बनाने का प्रयास किया, जहां बैंक बैड लोन्स (फंसे हुए कर्ज) का डेटा साझा कर सकते थे।

मगर यह कारगर नहीं रहा और इस प्रकार आरबीआई के पास किसी भी कर्ज लेने वाली की व्यापक क्रेडिट इन्फॉर्मेशन नहीं थी। सीआरआईएलसी की व्यवस्था के दौरान बैंकों ने पांच करोड़ रुपये और उससे अधिक के कर्जों के मामले में रियल टाइम डेटा की आपूर्ति शुरू कर दी थी। उसमें बैड अकाउंट्स के मामले में डेटा साप्ताहिक और गुड अकाउंट्स के मामले में मासिक रूप से उपलब्ध होता। केवल आरबीआई और बैंक ही उस डेटा को एक्सेस कर सकते थे, लेकिन ऋण लेने वालों और रेटिंग एजेंसियों तक उसकी पहुंच नहीं थी।

यह प्रत्येक बड़े कर्जदार (बारोअर) को लेकर बैंकों के एक्सपोजर की व्यापक तस्वीर दिखाने के साथ यह भी दर्शाता कि कहीं उसी कर्जदार को अलग-अलग बैंकों ने भिन्न-भिन्न रूप में वर्गीकृत तो नहीं किया। वहीं सीआरआईएलसी के अस्तित्व में आने से साल भर पहले आरबीआई ने अपने पर्यवेक्षण प्रतिरूप को केमल्स-सीएएमईएलएस (पूंजी पर्याप्तता, परिसंपत्ति गुणवत्ता, प्रबंधन, आय, तरलता और तंत्र एवं नियंत्रण) से बदलकर जोखिम-आधारित पर्यवेक्षण (आरबीएस) कर दिया। आरबीएस और सीआरआईएलसी की जुगलबंदी ने नियामक को बैंकिंग परिदृश्य के विभिन्न पहलुओं से भलीभांति अवगत कराया और इससे सिस्टम-वाइड ऑडिट की राह खुली। इस प्रकार भारतीय बैंकिंग की सेहत के अपनी तरह के पहले परिमापक-परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) की संकल्पना आकार ले पाई। 

जहां तक पीसीआर की बात है तो यह-खुदरा, कॉरपोरेट और एमएसएमई जैसी सभी श्रेणियों से जुड़ी सूचना को समाहित करने वाली एकल खिड़की है, जिसमें कर्ज के आकार की कोई न्यूनतम सीमा भी नहीं। यहां तक कि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय, सेंट्रल रजिस्ट्री ऑफ सिक्योरिटाइजेशन ऐंड सिक्योरिटी इंट्रेस्ट ऑफ इंडिया और वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क्स जैसे बाहरी स्रोतों से मिले डेटा को भी इस फ्रेमवर्क में जोड़ा जा सकता है।

दरअसल, यह किसी भी कर्जदाता की वित्तीय सेहत का कहीं व्यापक ब्योरा प्रदान करता है, जिसमें बैंकिंग तंत्र से इतर कॉरपोरेट फाइलिंग और टैक्स एवं यूटिलिटी भुगतान जैसे पहलुओं का भी जुड़ाव शामिल है। फिलहाल भारत में ट्रांस यूनियन सिबिल लिमिडेट, इक्विफैक क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, एक्सपेरियन क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और सीआरआईएफ हाई मार्क क्रेडिट इन्फॉर्मेशन प्राइवेट लिमिटेड जैसे चार निजी क्रेडिट ब्यूरो (पीसीबी) परिचालन में हैं।

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, सूक्ष्म वित्तीय संस्थान और आवासीय वित्तीयन कंपनियां, राज्य वित्तीय निगम, सभी भारतीय वित्तीय संस्थान और क्रेडिट कार्ड कंपनियां इन ब्यूरो के साथ सूचनाएं साझा करते हैं। इस संकल्पना को वैश्विक स्तर पर व्यापक स्वीकार्यता प्राप्त है।

जर्मनी, पुर्तगाल, स्पेन और ब्राजील सहित कई अन्य देशों में पीसीआर प्रणाली पहले से ही अपने परिपक्व स्वरूप में काम कर रही है। इसी तर्ज पर भारत में भी पीसीआर से यही अपेक्षा है कि वह विभिन्न अंशभागियों से किसी कर्जदार विशेष की प्रमुख क्रेडिट सूचनाओं का भंडार रखे। उसे यही जिम्मा सौंपे जाने की उम्मीद है कि वह क्रेडिट के उद्गम से लेकर उसकी परिपक्वता के सफर तक पर नजर रखने के साथ ही समयपूर्वक भुगतान और किसी सूरत में डिफॉल्ट यानी अदायगी में गड़बड़ जैसे पहलुओं का भी संज्ञान ले।

जिस प्रकार कॉमर्शियल पेपर्स, गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्रों और एनबीएफसी से दिए जाने वाले कर्जों जैसे डेट उपकरणों का दायरा बढ़ रहा है, उसे देखते हुए न केवल बैंक कर्जों, बल्कि सभी ऋण देनदारियों की जानकारी होनी ही चाहिए, चाहे वह रुपये में हो या विदेशी मुद्रा में। पीसीआर की इस मामले में खासी उपयोगिता है।

यह किसी भी कर्जदार द्वारा घरेलू के साथ-साथ विदेशी उधारी के मामले में फंड और नॉन-फंड सुविधाओं को भी अपने दायरे में लेता है। इसमें बाह्य वाणिज्यिक उधारी, मसाला बॉन्ड और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश इत्यादि पर नजर रहती है।  रिपोर्ट के अनुसार इससे उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर कर्ज की राह आसान होगी।

उल्लेखनीय है कि छोटे उद्यमियों को अपनी कार्यशील पूंजी के लिए बिना कुछ गिरवी रखकर नकदी प्रवाह कर्ज की बहुत आवश्यकता होती है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि अधिकांश बैंक कर्ज देने के लिए बड़ी कंपनियों को वरीयता देते हैं, जिससे एमएसएमई के लिए कर्ज लेने के विकल्प सीमित हो जाते हैं। जब भुगतान अतीत और कर्ज ब्योरा उपलब्ध होगा तो इससे एमएसएमई के लिए कर्ज की राह सुगम होगी और वित्तीय बाजारों में गहराई आएगी। इससे वित्तीय समावेशन से जुड़ी आरबीआई की मुहिम को भी बल मिलेगा। 

आरबीआई के पूर्व डिप्टी-गवर्नर विरल आचार्य का भी मानना है कि पीसीआर में पीसीबी की तुलना में कहीं अधिक बेहतर डेटा कवरेज सुनिश्चित होता है। ऐसे में पीसीआर के समर्थन की आवश्यकता है और इस दिशा में सरकार के साथ परामर्श कर उसे कॉम्प्रिहेंसिव पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री एक्ट द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। साथ ही उसमें अद्यतन निजता नियमावली का भी पालन किया जाए। 

इस बीच ऐसी खबरें भी आई हैं कि आरबीआई पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री ऑफ इंडिया बिल के प्रारूप पर सक्रिय है। माना जा रहा है कि आरंभ में रजिस्ट्री के अंतर्गत केवल बैंकों को पहुंच मिलेगी और अन्य इकाइयों को बाद में जोड़ा जाएगा। आरबीआई की रिपोर्ट में इसका संकेत भी है। रिपोर्ट के अनुसार नई व्यवस्था के लिए तंत्रीय आवश्यकता का अध्ययन कर लिया गया है और व्यापक साख सूचना कोष के लिए सिस्टम डिजाइन एवं विकास की प्रक्रिया प्रगति पर है। हालांकि इसमें पीसीआर-नामकरण का संदर्भ नहीं है। 

First Published - December 12, 2022 | 2:36 PM IST

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