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  लेख  ये म्यूजिक, अब म्यूजिक चैनलों के काम का नहीं
लेख

ये म्यूजिक, अब म्यूजिक चैनलों के काम का नहीं

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —April 18, 2008 11:41 PM IST0
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एक जमाने में एमटीवी या चैनल वी पर संगीत का ही बोल-बाला हुआ करता था। लेकिन आज इनके सबसे सुपरहिट रियलिटी शो का दूर-दूर तक तरुन्नुम से कोई नाता नहीं रहा।


इस बारे में तफ्सील से बता रहे हैं हमारे संवाददाता


ईशानी शर्मा तो म्यूजिक के लिए दीवानी हैं। वह हर दिन, घंटों अपनी सहेलियों के साथ मनोरंजन चैनलों पर आ रहे नए-नए म्यूजिक शोज के बारे में बतियाती रहती हैं। उन्हीं के साथ स्कूल में पढ़ते हैं, रजत रस्तोगी और अल्पना मोहन। लेकिन इन्हें ईशानी की तरह म्यूजिक नहीं, बल्कि म्यूजिक चैनलों पर आने वाले नॉन म्यूजिक टैलेंट हंट शोज ज्यादा पसंद हैं। टीवी की इस नई दुनिया में आपका स्वागत है।


यहां आज आम इंटरटेनमेंट चैनलों (साथ में न्यूज चैनलों पर भी) पर जहां म्यूजिक शोज के जरिये लोगों को लुभाने और अपनी रेटिंग्स बढ़ाने की जुगत में लगे हुए हैं। वहीं म्यूजिक चैनलों की पसंद हार्डकोर रियलिटी शोज बन चुके हैं, जिनका म्यूजिक से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। इनमें तो आपको देखने को मिलेगी, जोड़-तोड़ की राजनीति, पीठ पीछे की बुराई और कड़ी प्रतियोगिता।


अब आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसे शोज की जगह तो आम इंटरटेनमेंट चैनल पर होने चाहिए, लेकिन फिर भी इसे म्यूजिक चैनल्स पर क्यों दिखाया जा रहा। जी नहीं, संगीत की सप्लाई कम नहीं हो गई है। बस अब यह म्यूजिक चैनलों को भा नहीं रहे। तो क्या यह हिंदुस्तान में म्यूजिक चैनलों के अंत की शुरुआत है?


भरोसा है संगीत पर


विकास वर्मा के मुताबिक तो कतई नहीं। पीटर मुखर्जी के आईएनएक्स मीडिया ग्रुप में म्यूजिक और इंटरटेनमेंट चैनलों के इस प्रमुख का कहना है, ‘पिछले कुछ महीनों में चीजें जिस तरीके से बदली हैं, उससे मैं बेहद खुश हूं। 9एक्सएम ने लॉन्च होने के कुछ ही दिनों के बीच काफी जबरदस्त रेटिंग जुटा ली है। हम तो इस फील्ड में अब नंबर 1 बन चुके हैं।’ हालांकि, यह तो वर्मा साहब की बात है।


अगर आप बाजार में किसी टीनएजर से पूछें कि उसकी 9एक्सएम के बारे में क्या राय है, तो ज्यादा उम्मीद इसी बात है कि वह आपसे ही पलट कर पूछ लेगा, ‘आखिर यह कौन सी बला है?’ इस चैनल के दर्शकों की तादाद काफी कम है, लेकिन फिर भी इसमें एक खासियत यह है कि यह एक अब भी एक ‘म्यूजिक चैनल’ है। वर्मा कहते हैं कि, ‘हमें इस बात की बेहद खुशी है कि हमने अपने ब्रांड नेम के वायदे को पूरा किया है। अपने प्रतिद्वंद्वियों से इतर हम अब भी म्यूजिक के सहारे ही चल रहे हैं।’


सिक्कों की धुन


वर्मा बिल्कुल सही कह रहे हैं। एमटीवी की सबसे ज्यादा कमाई होती है अपने रियलिटी शो ‘रोडीज’ से, जोकि एक नॉन म्यूजिक शो है। चैनल वी की भी हालत जुदा नहीं है। उसे भी सबसे ज्यादा कमाई और रेटिंग देने वाले शो का नाम है ‘गेट गॉर्जियस’, जिसमें म्यूजिक का बस तड़का भर होता है। साफ दिख रहा है कि आज के म्यूजिक चैनल, म्यूजिक चैनल नहीं रहे। हालांकि, इस बात से ये दोनों चैनल इत्तेफाक नहीं रखते।


शायद, उनके ऑडिटरों के लिए सिक्कों की खनक ही असल संगीत बन गई है। इस बारे में तो एमटीवी के जनरल मैनेजर (कंटेंट) आशीष पाटिल भी बचाव की मुद्रा में नजर आते हैं। उनका कहना है कि,’आज लोगों की पसंद और नापसंद काफी बदल चुकी है।


हम तो वही दिखा रहे हैं, जो वो देखना चाहते हैं।’ कुछ ऐसा ही रवैया चैनल वी के कंटेंट हेड सौरभ कंवर का है। उनका कहना है कि,’आज इंटरटेनमेंट की दुकान काफी बड़ी हो चुकी है। इस दुकान में एक बड़ा हिस्सा आज फैशन और लाइफस्टाइल को समर्पित हो चुका है।’


इन दोनों का कहना है कि ये दोनों चैनल जो कुछ भी करते हैं, उसके केंद्र में संगीत ही होता है (सचमुच! दिखता तो नहीं है)। एमटीवी का कहना है कि उसके पूरे कंटेंट का 80 फीसदी हिस्सा संगीत ही होता है। चैनल वी तो इससे भी बड़ा आंकड़ा बताता है।


इतने हिस्से के भी ज्यादातर हिस्से में बार-बार बॉलीवुड फिल्मों के प्रोमो या ट्रेलर दिखाए जाते हैं। क्या यही है, उनका अपना कंटेंट? इस बारे में मीडिया विश्लेषक हंसते हुए बताते हैं कि, ‘म्यूजिक खरीदने में उन्हें काफी पैसा खर्च करना पड़ेगा, जबकि प्रोमोज दिखाने से तो इन चैनलों को मोटी कमाई होती है।’


‘रियलिटी’ ने बदल डाली पसंद


विशेषज्ञों का कहना है कि रियलिटी टीवी के आने से सचमुच लोगों की पसंद बदली है। इसलिए इन टीवी चैनलों को अपने प्रोग्रामों का स्टाइल भी बदलना पड़ा है। स्टारकॉम के कार्यकारी निदेशक तरुण निगम का कहना है कि,’पुराने ज्यूकबॉक्स फॉर्मेट या केवल गानों से इन्हें भविष्य में ज्यादा दर्शक नहीं मिल पाएंगे। इसलिए तो म्यूजिक चैनलों ने अपनी रणनीति ही बदल डाली है।


चूंकि, इन चैनलों का जोर नौजवानों पर ही होता है, इसीलिए तो यह एडवेंचर, फैशन और गैजेट्स को अपनी प्रोग्रामिंग का हिस्सा बना रहे हैं।’ पाटिल के मुताबिक एमटीवी ने हमेशा लोगों को अपने ‘जरा हटके’ स्टाइल से ही अपनी तरफ खींचा है। उनका कहना है कि, ‘पहले हम संगीत पर आधारित शोज करते रहते थे। ‘फुल्ली फालतू’ और ‘चिटोज चैट’ जैसे इन प्रोग्रामों में काफी हंसी-मजाक हुआ करता था।’


‘पिद्दू’ जैसे कार्यक्रम में गानों को ‘पिद्दूइज्म’ के साथ गाने दिखाए जाते हैं। दरअसल, पिद्दू का कैरेक्टर क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्दू को ध्यान में रख कर बनाया गया है। वैस, चैनल वी इस बात का दावा तो करती है कि वह अपने ‘गेट गॉर्जियस’ शो के जरिये अनजान फनकारों को बड़ा प्लेटफॉर्म देती है, ताकि वे अपने फन को दिखा सकें।


लेकिन आज भी इन चैनलों पर एमटीवी मोस्ट वॉन्टेड या चैनल वी के हाउस अरेस्ट या ऊधम सिंह की याद काफी सताती है, जहां म्यूजिक का बोलबाला रहता था। वैसे, पाटिल का कहना है कि उनके चैनल में हमेशा लोगों के मनोरंजन को पहली प्राथमिकता दी जाती है।


नो स्टार वीजे


एक और बड़ी चीज जो म्यूजिक चैनल्स के साथ देखी गई है, वह है स्टार वीजे का पर्दे पर से गायब होना। एक दौर था, जब म्यूजिक चैनल्स अपने वीजे की वजह से जाने जाते थे। चाहे वह मलाइका अरोड़ा हो या फिर रणवीर शौरी या फिर विनय पाठक, सभी की एक ‘स्टार वैल्यू’ हुआ करती थी। लेकिन आज तो ऐसे वीजे दिखते ही नहीं।


पाटिल भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि,’यह कोई रणनीतिक फैसला नहीं है। हम आज अपने वीजे को आम लोगों की तरह ही देखना चाहते हैं। इसलिए तो आज एमटीवी पर आपको आयुषमान और एक्स रोडी बानी हमारे ‘वाजअप’ शो की एकरिंग करते दिखेंगे।’


फिल्मी गाने ही हैं असल संगीत?


संगीत के दीवाने इस बात से भी नाराज हैं कि ये चैनल आज फिल्मी गानों के अलावा कुछ दिखाते ही नहीं। इसकी एक बड़ी वजह है नए टैलेंट की कमी (‘इंडियन आइडल’ के जमाने में भी यह कमी?)। चैनल वी ने 2002 में अपने शो ‘पॉपस्टार्स’ के साथ रियलिटी टीवी की दुनिया में कदम रखा था। उस शो में आने वाले कल के म्यूजिक स्टार्स की खोज का दावा किया गया था। इस शो ने देसी संगीत जगत को ‘वीवा’ और ‘आसमां’ दिए, जो टांय टांय, फिस्स हो गए।


आज उनके बारे में सोचने की किसी को फुरसत भी नहीं है। इस बारे में कंवर का कहना है, ‘हम तो उन्हें म्यूजिक में अपना करियर बनाने का एक चांस भर ही दे सकते थे न। यह म्यूजिक इंडस्ट्री पर निर्भर करता है कि वह उन्हें कैसे लेती है।’ वैसे, पाटिल का कहना है कि, ‘एमटीवी तो हमेशा से ही नए कलाकारों को बढ़ावा देती है। अब रघु दीक्षित प्रोजेक्ट को ही ले लीजिए।


वह यहां पिछले दस सालों से अपना करियर बनाने की कोशिश कर रहा था। फिर हमारी कोशिशों की वजह से वह आज एक बड़ा स्टार बन पाया है। हमने रघु को ही अपने सबसे बड़े इवेंट, एमटीवी लाइक्रा अवार्ड्स की ओपनिंग की जिम्मेदारी थी।’ एमटीवी के उलट 9एक्सएम कलाकारों को प्रमोट करने से बचता है। वर्मा कहते हैं कि उनका चैनल नए कलाकारों को प्रमोट करने के बिजनेस में नहीं है।


भटकी राह


उन्होंने कहा, ‘हमारा फार्मुला बहुत साफ है। अगर आप इस चैनल पर आने के काबिल हैं, तो ही आपको मौका मिलेगा।’ उनका कहना है कि चैनल का मकसद दर्शकों को हिट म्यूजिक देना है और इस मामले में उनकी राय बिल्कुल साफ है। सारेगामा के उपाध्यक्ष अतुल चूड़ामणि की दलील है कि फिलहाल सिर्फ म्यूजिक वाला चैनल कोई भी नहीं है, इसलिए नए कलाकारों के लिए उचित प्लैटफॉर्म की कमी नजर आती है।


हालांकि पाटिल का कहना है कि इंडीपॉप के बढ़ते चलन की वजह से पंजाबी भांगड़ा जैसी लोक संगीत की विधाओं को काफी लोकप्रियता मिली है। चूड़ामणि का कहना कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में म्यूजिक चैनल अपने मूल मकसद से भटक गए हैं। आइए हम जानते हैं कि इस मामले में कलाकारों की क्या राय है?


क्या कहते हैं कलाकार


सिल्क रूट बैंड के प्रमुख गायक मोहित चौहान का कहना है कि एक जमाना था, जब अगर एमटीवी पर आपका म्यूजिक विडियो आ जाए तो इसे बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। लेकिन इंटरनेट जैसे नए प्लैटफॉर्म ने इस अवधारणा को पूरी तरह बदल दिया।


इसके अलावा ज्यादातर कलाकार छोटे पर्दे तक सीमित न रहकर बॉलीवुड तक पहुंचना चाहते हैं। म्यूजिक चैनल प्रमोशन कड़ी के अंतिम गायक नीति मोहन अब मशहूर संगीतकार ए. आर. रहमान के ट्रूप के सदस्य बन चुके हैं। वह पहले पॉपस्टार्स बैंड आसमां के सदस्य हुआ करते थे।


मोहन कहते हैं कि चैनल ने मुझे ब्रेक दिया और इस वजह से आप कह सकते हैं कि उनका मुझ पर अहसान है, लेकिन करियर के लिए उन पर पूरी तरह निर्भर रहना महज बेवकूफी के सिवा कुछ नहीं हो सकता। हालांकि पाटिल का दावा है कि दीक्षित ने उस वक्त अपने अलबम की कई कॉपियां बेच डालीं, जब वह उनकी संपत्ति हुआ करता था।


पाटिल कहते हैं कि ज्यादातर लोगों को अनजान कलाकारों को प्रमोट करने में चैनलों की भूमिका के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। इसका उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने बताया कि हमने अपने शो में रब्बी के गानों को अनगिनत बार बजाया। इसकी वजह यह थी कि हमें लगा कि इस शख्स में कुछ न कुछ बात जरूर है।


बढ़ती कमाई


इस बाबत एक अहम सवाल यह भी उठता है कि क्या ‘रोडीज’ और ‘गेट गॉर्जियस’ जैसे शो  की वजह से म्यूजिक चैनलों की ब्रांड इक्विटी कम हुई है? स्टारकॉम के निगम कहते हैं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। उनके मुताबिक, ‘जहां तक विज्ञापनों की बात है, प्रमोशन के मामले में सभी ब्रांडो के लिए एमटीवी और चैनल वी टॉप थ्री में शामिल हैं।’


पाटिल के मुताबिक, एमटीवी की विज्ञापनों से होने वाली कमाई 40 फीसदी से भी ज्यादा रफ्तार से बढ़ रही है। हालांकि कंवर ठीक-ठीक आंकड़े तो नहीं बताते हैं, लेकिन उनका भी कहना है कि चैनल वी की विज्ञापन संबंधी कमाई में भी लगातार इजाफा हो रहा है।


ऐसे हुई थी शुरुआत


म्यूजिक चैनलों की रणनीति और कार्यप्रणाली में बुनियादी रूप से बदलाव 2004 में शुरू हुआ। उस वक्त ऐसे चैनलों की कमाई में तेजी से कमी आ रही थी। उस वक्त एमटीवी ने वीएच1 के लॉन्च के साथ मुकाबले के लिए हिंदी मॉडल को अपनाया।


निगम बताते हैं कि यह वह दौर था, जब भारत में रियलिटी टीवी का प्रचलन बढ़ रहा था। उस वक्त म्यूजिक चैनलों में कुछ अलग हटकर दिखाने की जरूरत महसूस की जा रही थी। इसके मद्देनजर ‘रोडीज’ और ‘गेट गार्जियस’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए। यहां सवाल यह पैदा होता है कि क्या इस वजह से चैनलों की पहचान के गुम होने का खतरा था?


पाटिल कहते हैं कि वह ऐसा नहीं मानते। वह इस बाबत पूरी तरह आश्वस्त थे कि रोडीज जैसे कार्यक्रम को लोगों का भरपूर प्यार मिलेगा। लगातार पांचवें साल ‘रोडीज’ एमटीवी की कमाई का अहम जरिया बना हुआ है।


इसके अलावा यह कार्यक्रम लोगों को आंखों को भी खूब भाता है। हालांकि चैनल वी के कार्यक्रम ‘गेट गॉर्जियस’ को उतनी लोकप्रियता भले ही नहीं मिली हो, लेकिन कंवर की दलील है कि इसका मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि चैनल वी अब म्यूजिक चैनल नहीं रह गया है।


वह कहते हैं कि वी वही पेश कर रहा है, जो दर्शक देखना चाहते हैं। इस खेल में सबसे अहम बात नया-नया प्रयोग है। इसे कोई कंपनी किस तरह करती है, यह चैनल की रवैये पर निर्भर करता है। जहां तक एमटीवी की बात है, यह एक ऐसा चैनल है जो लोगों का मनोरंजन करना चाहता है। मनोरंजन संगीत, लाइफस्टाइल और रोमांच किसी रूप में भी पेश किया जा सकता है।


बर्बादी की कहानी


‘रोडीज’ के कार्यकारी निर्माता रघु राम कहते हैं कि अगर म्यूजिक चैनल खुद को बदलते वक्त के साथ नहीं ढालेंगे तो ये खुद अपनी बर्बादी की कहानी लिखने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। वह कहते हैं कि एमटीवी एक म्यूजिक चैनल है, लेकिन इसमें हर तरह के कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। अब इस नजरिये से काम नहीं चल सकता कि अगर कोई म्यूजिक चैनल है, तो उस पर अन्य कार्यक्रम नहीं दिखाया जाना चाहिए।


इसके अलावा म्यूजिक चैनलों पर दिखाया जाने वाला संगीत अन्य चैनलों पर भी पर देखने को मिल सकता है। इसके मद्देनजर म्यूजिक चैनलों के लिए सिर्फ संगीत का सहारा लेना बेवकूफी भरा कदम होगा। राम के मुताबिक, इन सारी बातों के बावजूद एमटीवी संगीतकारों के लिए प्लेटफॉर्म मुहैया कराना चाहता है, क्योंकि संगीत भारतीयों की आत्मा में बसा हुआ है।


बरकरार रह पाएगा दबदबा?


निगम के मुताबिक, अगले कुछ वर्षों में म्यूजिक चैनलों पर पेश किए जाने वाले कार्यक्रमों में संगीत कार्यक्रमों की कमी (60 फीसदी कार्यक्रम म्यूजिक वाले और 40 फीसदी बिना म्यूजिक वाले) देखने को मिल सकती है। हालांकि पाटिल और कंवर इस बात पर कायम हैं कि उनके चैनलों में म्यूजिक का दबदबा बरकरार रहेगा। हालांकि अगर आप एमटीवी पर दिखाए जाने वाले 30 मिनट के कार्यक्रम ‘वाजअप’ को देखते होंगे तो आपको कुछ संकेत मिल सकते हैं।


आप पूछ सकते हैं कि इसमें संगीत कहां है? वर्मा का दावा है कि 9एक्सएम अपने प्रतिस्पर्धी चैनलों की राह पर नहीं चलेगा। वह कहते हैं कि आप हैमबर्गर जॉइंट में मसाल डोसा की उम्मीद नहीं कर सकते। वह कहते हैं कि उनके ब्रांड का ‘एम’ तो म्यूजिक के लिए ही है, सिर्फ म्यूजिक के लिए। बहरहाल ये दावे कितने सही साबित होंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

these musics now not favourable for music channels
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