देश में बेरोजगारी की दर अक्टूबर महीने में भी लगातार दूसरे महीने 5.2 फीसदी पर ही ठहरी हुई है। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (NSO) ने सोमवार को पीरियडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) का ताजा मासिक बुलेटिन जारी किया, जिसमें ये आंकड़े सामने आए हैं। अच्छी बात ये है कि इस दौरान काम करने वाले लोगों की तादाद और नौकरी ढूंढ रहे लोगों की संख्या दोनों में थोड़ा इजाफा हुआ है, यानी लेबर मार्केट में कुछ हलचल दिख रही है।
गांवों में तो राहत वाली खबर है। वहां बेरोजगारी दर सितंबर के 4.6 फीसदी से घटकर अक्टूबर में 4.4 फीसदी पर आ गई। लेकिन शहरों का माहौल उल्टा हो गया। शहरी इलाकों में बेरोजगारी तीन महीने के उच्चतम स्तर 7 फीसदी पर पहुंच गई, जो सितंबर में 6.8 फीसदी थी। मतलब शहरों में नौकरी की तलाश करने वालों पर दबाव बढ़ा है।
ये सारे आंकड़े 15 साल और उससे ज्यादा उम्र वालों के लिए हैं और करंट वीकली स्टेटस (CWS) के हिसाब से निकाले गए हैं। आसान भाषा में कहें तो पिछले सात दिनों में अगर कोई व्यक्ति एक घंटे भी काम नहीं कर पाया और नौकरी की तलाश में था या उपलब्ध था, तो उसे बेरोजगार माना गया है।
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मर्दों की बेरोजगारी दर 5.1 फीसदी पर जस की तस बनी रही, जबकि औरतों में मामूली सुधार हुआ। सितंबर में 5.5 फीसदी थी, जो अक्टूबर में 5.4 फीसदी पर आ गई।
लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी काम कर रहे या नौकरी ढूंढ रहे लोगों का कुल प्रतिशत थोड़ा सा बढ़कर 55.4 फीसदी हो गया, जो सितंबर में 55.3 फीसदी था। गाँवों में ये 57.4 से बढ़कर 57.8 फीसदी हो गया, पर शहरों में 50.9 से घटकर 50.5 फीसदी रह गया।
सबसे खुशी वाली बात ये है कि काम करने वालों का कुल अनुपात यानी वर्कर पॉपुलेशन रेशियो (WPR) अक्टूबर में 52.5 फीसदी रहा। इसमें सबसे बड़ा योगदान ग्रामीण इलाकों की महिलाओं का है। 15 साल से ऊपर की महिलाओं का WPR लगातार चौथे महीने बढ़ रहा है। जून में ये 30.2 फीसदी था, जो अक्टूबर तक 32.4 फीसदी पहुंच गया।
NSO ने साफ कहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ही कुल वर्कफोर्स में इस उछाल की मुख्य वजह है। जनवरी 2025 से सर्वे की नई पद्धति अपनाने के बाद अब हर महीने गाँव और शहर अलग-अलग और पूरे देश के आंकड़े ज्यादा सटीक तरीके से सामने आ रहे हैं।