उम्मीद थी कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद अप्रत्यक्ष कर से मिलने वाला राजस्व बढ़ता ही जाएगा। यह उम्मीद दो सिद्धांतों पर आधारित थी। पहला, जीएसटी की संरचना कुछ इस प्रकार तैयार की गई है कि कच्चे माल से लेकर खुदरा कारोबार तक सभी इसके दायरे में आ गए हैं। इसके कारण कराधान के स्रोत बढ़ना स्वाभाविक है।
दूसरा सिद्धांत यह था कि जीएसटी के तहत कर अनुपालन बढ़ेगा क्योंकि इसके प्रावधान इस प्रकार के हैं कि इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लेने के लिए खरीदार स्वयं ही विक्रेताओं से सभी कागजी औपचारिकताएं पूरी करने के लिए कहेंगे और विक्रेताओं की ऐसा करने की आदत पड़ जाएगी।
जीएसटी दरों को औचित्यपूर्ण बनाने पर चर्चा चल रही है। हाल में संपन्न जीएसटी परिषद की बैठक में भी इसका जिक्र हुआ है। बैठक में 14.8 प्रतिशत की राजस्व तटस्थ दर बहाल करने पर चर्चा हुई, जो जीएसटी लागू होने से पहले थी। अब इसे 12.2 प्रतिशत कर दिया गया है। मगर बैठक में नियमों का अनुपालन पक्का करने के लिए आवश्यक हुनर विकसित करने पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि राज्य वाणिज्यिक कर विभाग में अधिकारियों में ऑडिट की अधिक क्षमता विकसित करना आवश्यक है।
केंद्र के कर विभाग में इस लिहाज से अच्छी स्थिति है क्योंकि 1996 से 2006 के बीच सरकार ने कनाडा सरकार के साथ मिलकर नई तरह की ऑडिट परियोजना शुरू की थी। इससे ऑडिट क्षमता सुधारने में काफी मदद मिली और इससे मानक प्रशिक्षण एवं ऑडिट नियमावली (मैनुअल) तैयार करने की शुरुआत हो गई।
हाल में केरल में संपन्न ऑडिट प्रशिक्षण परियोजना से मिले अनुभव बताते हैं कि प्रशिक्षण में सिखाई बातें सही ढंग से अमल में लाई जाएं तो राज्यों का राजस्व नुकसान काफी कम हो सकता है। एक महत्त्वपूर्ण सीख यह मिली कि पूरा प्रशिक्षण कार्यक्रम अधिकारियों एवं राज्य सरकार के साथ मिलकर तैयार किया जाना चाहिए ताकि उनकी प्रतिक्रिया एवं जरूरतों का ध्यान रखा जा सके। ऑडिट प्रशिक्षण परियोजना शुरू करने से पहले जरूरतों का विस्तार से आकलन करना बहुत जरूरी है।
नियमित कर रिटर्न सत्यापन की तुलना में ऑडिट प्रणाली अधिक फायदेमंद होती है मगर इसके लिए कौशल भी अधिक चाहिए। ऑडिट प्रशिक्षण परियोजना के लिए तीन हुनर – जीएसटी कानून की जानकारी, वित्तीय खातों की जानकारी और जिस क्षेत्र का ऑडिट होना है, उसकी पर्याप्त जानकारी – का समावेश करना होगा। सबसे पहले विभाग से कामकाजी जानकारी एवं हुनर के आधार पर कुछ लोगों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षित करना होगा। उसके बाद ये लोग दूसरे कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगे। इस कार्य में बाहरी प्रशिक्षक भी मदद करेंगे।
ऑडिट काफी फायदेमंद है क्योंकि यह मानक विधि पर काम करता है। यह विधि वैज्ञानिक है और हर जगह स्वीकार्य होती है। यह सात चरणों पर आधारित है। पहले चरण में जोखिम मानकों के आधार पर इकाइयों का चयन, दूसरे चरण में जुटाई गई जानकारी की समीक्षा (डेस्क रिव्यू), तीसरे चरण में आंतरिक नियंत्रण का मूल्यांकन, चौथे चरण में ऑडिट योजना की तैयारी, पांचवें चरण में योजना के अनुरूप ऑडिट करना, ऑडिट के बिंदुओं का मूल्यांकन करने के लिए निगरानी समिति की बैठक और सातवें चरण में ऑडिट के पश्चात होने वाली निगरानी शामिल है।
यह प्रणाली पारदर्शी है क्योंकि इसमें ऑडिट प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हुए कामकाज का पूरा ब्योरा रखा जाता है। कामकाज और सत्यापन के ये पत्र विभाग का ज्ञान भंडार (नॉलेज रिपॉजिटरी) बन गए हैं। केंद्र का अनुभव बताता है कि मासिक निगरानी समिति जैसी संस्थाएं तैयार करने की जरूरत है। इनमें वरिष्ठ अधिकारी होंगे, जो यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि ऑडिटर मामूली मसले नहीं उठाएं और समिति पेचीदा मसलों को ही आगे की कार्रवाई के लिए स्वीकार करे।
इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि प्रत्येक राज्य के लिए ऑडिट कार्यक्रम उस राज्य की अर्थव्यवस्था की संरचना के आधार पर तैयार किए जाएं। छोटी इकाइयों का ऑडिट करते समय इस बात का ख्याल रखना होगा कि उन्हें परेशानी नहीं हो। इसके लिए उनके परिसरों में जाने के बजाय उनके बारे में जुटाई गई जानकारी की समीक्षा करना बेहतर रहेगा। जीएसटी में ‘जी’ और ‘एस’ के लिए सूक्ष्म ऑडिट कार्यक्रम की जरूरत है क्योंकि ‘जी’ का अर्थ वस्तु है, जो हमारे हाथ में होती है। ‘एस’ सेवा होती है, जो अमूर्त होती है। इसके अलावा बड़ी इकाइयों की ऑडिट के लिए कंप्यूटर की मदद से चलने वाले ऑडिट कार्यक्रम (सीएएपी) की जरूरत है क्योंकि इनसे जुड़े आंकड़े अधिक होते हैं और उन्हें समझना भी थोड़ा जटिल होता है।
क्षमता प्रशिक्षण की कई परियोजनाएं अधिक कारगर साबित नहीं होती हैं क्योंकि अधिकारियों के पास सभी विधि, लेखा (अकाउंटिंग) और बेहतर संवाद क्षमता के साथ क्षेत्र विशेष का ज्ञान जैसे सभी जरूरी कौशल नहीं होते। दरों पर चर्चा एवं कानूनों को सरल बनाने का अधिकार जीएसटी परिषद के पास जरूर है मगर राज्यों के साथ मिलकर वाणिज्यिक कर विभागों के अधिकारियों को हुनरमंद बनाने पर केंद्र सरकार को ही ध्यान देना होगा। केंद्र और राज्यों के बीच इस साझेदारी में इकाइयों के ऑडिट के समय आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया जा सकता है।
चाणक्य ने सदियों पहले कहा था कि कर संग्रह का काम उसी तरह होना चाहिए जैसे मधुमक्खी फूलों से शहद निकालती है और फूल को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचता। मगर करदाताओं की यह शिकायत आम है कि सरकार कर जुटाने में असहज तरीकों का इस्तेमाल करती है। पर्याप्त सुरक्षा प्रावधानों वाली मजबूत ऑडिट प्रणाली करदाताओं को नुकसान पहुंचाए बिना अधिक राजस्व जुटाने में सरकार की मदद कर सकती है।