बुनियादी ढांचे पर होने वाली चर्चाएं अमूमन ऊर्जा, परिवहन और पानी तक ही केंद्रित रहती हैं, लेकिन 2022 में लागू की गई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक पॉलिसी अब तक उपेक्षित रहे भंडारण बुनियादी ढांचा क्षेत्र की स्थिति को उजागर करने में काफी हद तक कामयाब रही है। औद्योगिक एवं वाणिज्यिक भंडारण क्षमता के बुनियादी ढांचे को तो डेवलपर आज की जरूरतों के हिसाब से ढाल रहे हैं, लेकिन कृषि क्षेत्र से जुड़ी भंडारण क्षमता बुरी तरह उपेक्षा की शिकार है। ये भंडारण अभी भी पुराने ढर्रे पर ही काम कर रहे हैं, जिन पर फौरी तौर पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
इन्वेस्ट इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का भंडारण बाजार 2022 के बाद से 15.64 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है, लेकिन यह वृद्धि अधिकांशत: औद्योगिक एवं वाणिज्यिक भंडारण क्षमता के जरिये ही दिख रही है। कृषि क्षेत्र में हालत बिल्कुल उलट है, जो कई संकटों से जूझ रहा है। आधुनिक भंडारण ढांचा और इससे जुड़ी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण कृषि अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। खासकर फसल कटाई के बाद उपज की बड़े पैमाने पर बरबादी हो रही है। ऐसे देश में जहां ग्रामीण आबादी की जीवनधारा ही कृषि आधारित हो और लगभग आधे लोगों की रोजी-रोटी इसी से चलती हो, वहां भंडारण क्षमताओं को लेकर इस प्रकार की उपेक्षा काफी गंभीर मामला है।
इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर रिसर्च के अनुसार कृषि भंडारण क्षमता जून 2023 में 14.5 करोड़ टन थी, जिनके वर्ष 2026-27 तक 22.3 करोड़ टन तक बढ़ाने की सख्त जरूरत है। भारत में फसल कटाई के बाद उपज की बरबादी बहुत ज्यादा होती है। इसे देखते हुए कृषि भंडारण क्षमता के विकास पर ध्यान दिया जाना बहुत ही आवश्यक है।
वर्ष 2022 में सरकार समर्थित एक अध्ययन से पता चलता है कि देश में फसल कटाई से लेकर खपत तक के सफर में सब्जी और फलों में 5 से 13 प्रतिशत की बरबादी होती है, जबकि तिलहन और मसालों जैसी अन्य फसलों में यह हानि 3 से 7 प्रतिशत तक है। इससे वार्षिक स्तर पर अर्थव्यवस्था को अनुमानित 1.52 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
देश में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज तथा परिवहन के साधनों के अभाव में मूल्य वर्धित कृषि उपज न तो समय पर संरक्षित हो पाती है और न ही आगे आपूर्ति की जाती है। इससे पूरी आपूर्ति श्रृंखला के दौरान भारी मात्रा में कीमती उपज बरबाद हो जाती है। यह नुकसान 3.7 से 3.9 करोड़ टन भंडारण क्षमता उपलब्ध होने के बावजूद हो रहा है।
कृषि भंडारण क्षमता का भौगोलिक स्तर पर उचित वितरण नहीं होने से भी समस्या गंभीर हो रही है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, पंजाब और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में तो अधिक भंडारण क्षमता है जबकि बिहार और मध्य प्रदेश में इसकी भारी कमी है। खास यह कि ज्यादातर कोल्ड स्टोरेज में केवल एक ही फसल (अनाज और आलू) रखने की व्यवस्था होती है। अन्य फसलों के भंडारण की सुविधा इनमें नहीं होती। इसलिए देशभर में भंडारण क्षमता को उन्नत कर इनमें सभी या एक से अधिक कृषि उपज रखने की व्यवस्था किए जाने की सख्त जरूरत है।
वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट ऐंड रेग्युलेटरी अथॉरिटी (डब्ल्यूडीआरए) को इस दिशा में काम करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। गोदाम (विकास एवं नियमन) अधिनियम 2007 के तहत गठित इस एजेंसी से उम्मीद की जाती है कि यह भंडारण क्षमताओं के विकास, संचालन विनियमन और रसीद व्यवस्था को बढ़ावा दे।
नियामकीय संस्था भविष्य को ध्यान में रखकर रणनीतियां बनाएं और भंडारण क्षेत्र में गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय भूमिका निभाए। डब्ल्यूडीआरए की पंजीकरण व्यवस्था को व्यापक हितधारकों से सलाह-मशविरा लेकर वास्तविकता के आधार पर तार्किक बनाना होगा। आज डब्ल्यूडीआरए से पंजीकृत भंडार की संख्या गिनती की 10 भी नहीं है।
जिम्मेदारियों का विकेंद्रीकरण कर और राज्यों को व्यापक नियामकीय भूमिका निभाने की इजाजत देकर डब्ल्यूडीआरए को अन्य महत्त्वपूर्ण काम अपने हाथ में लेने चाहिए। इससे भंडारण क्षमता का विस्तार तो होगा ही, इनके आधुनिकीकरण, निगरानी और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करने में भी मदद मिलेगी। भंडारण सुविधाओं की वास्तविक उपलब्धता के बारे में सटीक जानकारी देने, इनकी क्षमता का पूर्ण उपयोग, ई-नाम यानी इलेक्ट्रॉनिक-नैशनल एग्रीकल्चरल मार्केट (कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए देश भर में काम करने वाला इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म) आदि की स्थिति जानने के लिए एक डिजिटल पोर्टल शुरू किया जाना चाहिए। इससे बाजार में नए अवसरों के द्वार खुलेंगे। ई-नाम से जुड़ना खासतौर पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पारदर्शी कीमतों के बारे में जानकारी हासिल करने और किसानों को उनके क्षेत्र से बाहर के बाजारों तक पहुंच उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
इलेक्ट्रॉनिक निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट (ई-एनडब्ल्यूआर) की भूमिका भी बढ़ानी होगी। पारंपरिक कागज वाली रसीद की जगह लाया गया ई-एनडब्ल्यूआर एक डिजिटल दस्तावेज होता है, जिसे डब्ल्यूडीआरए से पंजीकृत भंडारण जारी करते हैं। इसका उद्देश्य ऋण उपलब्धता बढ़ाने के साथ-साथ वस्तुओं को एक से दूसरी जगह ले जाए बिना बिक्री करना तथा भंडारण में पारदर्शिता लाकर कृषि उत्पाद भंडारण और कारोबार को आसान बनाना है। ट्रेडिंग प्लेटफार्म से जुड़ने की संभावनाओं और नियामकीय निगरानी व्यवस्था में सुधार के बावजूद ई-एनडब्ल्यूआर को अपनाने की गति बहुत धीमी रही है।
वेयरहाउस रेटिंग की व्यवस्था भी थोड़ी सख्त बनानी होगी। इससे उसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी और ऋणदाताओं में भरोसा जमेगा। इससे अंतत: किसानों के लिए वित्तीय लाभ के द्वार खोलने एवं बाजार की कार्यक्षमता में सुधार करने में मदद मिलेगी। इस दिशा में इसी साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सहकारी क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा अनाज गोदाम जैसी पहल शुरू की गई है।
इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य 1.25 लाख करोड़ रुपये की लागत से अगले पांच साल में उत्पन्न होने वाले 7 करोड़ टन अनाज के रखरखाव के लिए भंडारण सुविधाएं विकसित करना है। प्रायोगिक परियोजना की शुरुआत हो चुकी है। भंडारण क्षमता बनाने और अन्य जरूरी कृषि संबंधी बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए 500 प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटीज (पीएसीएस) की नींव रख दी गई है, लेकिन आधुनिक कृषि-भंडारण अभियान को राज्यों और सहकारी क्षेत्र की जकड़न से बाहर निकालना होगा।
केंद्र सरकार ने देशभर में कृषि भंडारण के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना इनमें सबसे खास है जो एग्रो प्रसंस्करण कलस्टर की एग्रो-मैरीन प्रसंस्करण एवं विकास की योजना है। कुल 46 अरब रुपये बजट वाली इस योजना को 2026 तक बढ़ा दिया गया है। इसका जोर मेगा फूड पार्क और संयुक्त कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला पर अधिक है, ताकि भंडारण सुविधाओं को बढ़ाकर फसल कटाई के बाद उपज में होने वाली हानि से बचा जा सके।
भंडारण सुविधाओं के विस्तार के लिए भारतीय खाद्य निगम एवं राज्य एजेंसियों के साथ सहयोग से प्राइवेट एंटरप्रिन्योर्स गारंटी योजना शुरू की गई है। संयुक्त कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला जैसी योजनाओं से भंडारण क्षमताओं का आधारभूत ढांचा मजबूत करने में मदद मिल सकती है, जबकि राष्ट्रीय नीतियों के अनुसार आधुनिक स्टील सिलोस का विकास करने से अनाज भंडारण सुविधाओं में वृद्धि होगी।
यदि इस क्षेत्र में अग्रणी बनना है तो राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के वेयरहाउस इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से हर्मेटिक स्टोरेज और मशीनीकृत लोडिंग/अनलोडिंग जैसी आधुनिक भंडारण तकनीकों को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनानी होंगी। साथ ही ब्याज में छूट जैसी योजनाओं समेत अन्य वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाने की भी आवश्यकता है। ऐसे विकासोन्मुखी प्रयासों से भंडारण क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। जिला या क्लस्टर स्तर पर गुणवत्ता परख, ग्रेडिंग और परीक्षण सुविधाएं स्थापित कर उन्हें भंडारण व्यवस्था से जोड़ा जा सकता है।
चूंकि भारत 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, इसलिए उसे कृषि भंडारण के बुनियादी ढांचे जैसी अर्थव्यवस्था की कमजोर कडि़यों को मजबूत करने पर प्राथमिकता से ध्यान देना होगा। इन चुनौतियों की पहचान कर और दूरदर्शी रणनीति अपनाकर डब्ल्यूडीआरए देश की कृषि रीढ़ को मजबूत और लचीला बना सकता है। एक दृढ़ और सहायक नियामकीय वातावरण के जरिये जब तक आधुनिक, भरोसेमंद एवं सक्षम कृषि भंडारण पारिस्थितिकी तंत्र खड़ा नहीं होगा तब तक भारत के विकास की कहानी अधूरी ही कही जाएगी।
(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ और द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंध ट्रस्टी हैं। लेख में वृंदा सिंह का सहयोग)