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वास्तविक मुद्दों का सही दिशा में समाधान करता बजट

इस वक्त देश में बेहद साहसिक और व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। समझा रहे हैं अजय छिब्बर

Last Updated- August 07, 2024 | 9:19 PM IST
वास्तविक मुद्दों का सही दिशा में समाधान करता बजट Budget 'nudges' in the right directions

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में आए पहले बजट में मतदाताओं के संदेश को समझने और स्वीकार करने की कोशिश की गई है। इस बजट का पूरा जोर रोजगार देने, कौशल विकास करने और ग्रामीण क्षेत्रों की हताशा दूर करने, लघु एवं मध्यम स्तर के उद्यमों के साथ-साथ उत्पादन के प्रमुख घटकों, श्रम एवं भूमि की बाधाओं को दूर करने पर है।

इस बजट में भी प्राथमिकता बुनियादी ढांचे को दी गई है, जो मोदी के दूसरे कार्यकाल के बजटों की विशेषता थी। यह सब राजकोषीय घाटे को और भी कम करते हुए किया गया है। ये सभी बदलाव सही दिशा में हैं। लेकिन क्या घोषित किए गए कई प्रस्ताव और योजनाएं पर्याप्त होंगी? मेरी राय में बेहद साहसिक और व्यापक सुधारों की आवश्यकता है।

बजट में प्रस्तावित रोजगार प्रोत्साहन योजना को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेरणा देने वाला कारक बताया है, जिससे कंपनियां अधिक श्रमिकों की भर्ती के लिए प्रोत्साहित होंगी। लेकिन इतने से ही बेरोजगारी में ज्यादा कमी नहीं आएगी। इसके लिए कंपनियां अपने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व की 10 फीसदी तक रकम इस्तेमाल कर सकेंगी, जिसके कारण उन्हें इसे अपनाने का प्रोत्साहन मिलेगा।

कौशल विकास पर खर्च में बढ़ोतरी भी स्वागतयोग्य कदम है। लेकिन भारत को जिस पैमाने पर रोजगार की आवश्यकता है वह रोजगार सब्सिडी से नहीं आएगा बल्कि श्रम के ज्यादा इस्तेमाल वाले विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निजी निवेश से आएगा। पर्यटन सेवाओं में तेज बढ़ोतरी से भी लोगों को रोजगार मिलेगा, जिस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। बेरोजगारी के मुद्दे को नजरअंदाज किए जाने के बजाय इसका संज्ञान लिया जा रहा है, जिससे संकेत मिलता है कि सरकार समस्या को समझती है लेकिन चुनावों के दौरान रोजगार के मुद्दे को महत्त्व नहीं दिया गया था।

बजट में इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्यों के साथ काम करते हुए श्रम, भूमि और पूंजी सहित बाजार सुधार पर जोर दिया जाए, जो स्वागत योग्य कदम है। मगर इसका स्वरूप परिभाषित नहीं किया गया है। फिर भी यह सही तरीके से हुआ तब भारत को रोजगार वृद्धि की राह पर बढ़ने में बहुत मदद मिलेगी।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) पर जोर दिया जाना भी स्वागतयोग्य कदम है लेकिन अगर पूरा तंत्र उनकी वृद्धि को हतोत्साहित करता है तब एमएसएमई को सीमित लाभ ही हो पाएगा। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत श्रमिक उन कंपनियों में हैं, जहां 10 से कम श्रमिक काम करते हैं। श्रम कानूनों को देखकर ही स्पष्ट हो जाता है कि कंपनियां छोटी ही क्यों बनी रहना चाहती हैं। दरअसल भारत में अधिकतर श्रम कानून उन कंपनियों पर लागू होते हैं, जिनमें 10 से अधिक श्रमिक काम करते हैं।

महंगी उत्पादन प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) से अधिकांशतः बड़ी कंपनियों को फायदा मिलता है और रोजगार के ज्यादा मौके भी तैयार नहीं होते। उसे कंपनी जगत के दबाव के बाद भी विस्तार नहीं दिया गया है। इसे अधिक धन की नहीं बल्कि समीक्षा और सुधार की जरूरत है।

स्वास्थ्य, शिक्षा और रक्षा सरकार के बुनियादी काम हैं और कई तरह की सब्सिडी तथा योजनाओं के बावजूद इन्हें कम धनराशि मिल रही है। खेती से जुड़े शोध एवं विकास पर बढ़ते खर्च में वृद्धि और तिलहन तथा दलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करने पर जोर दिया जाना स्वागतयोग्य कदम है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के संकट की बड़ी वजहों का समाधान नहीं निकाला गया है और यह संकट तब तक बना रहेगा, जब तक खेती के अलावा दूसरे क्षेत्रों में रोजगार के पर्याप्त मौके नहीं बनते।

इसके लिए फसलों के मिश्रण में बदलाव कर अनाज और गन्ना से इतर भी देखना होगा क्योंकि ये दोनों भारी सब्सिडी पा रहे हैं, जल स्तर कम कर रहे हैं और देश के उत्तरी हिस्से की मिट्टी भी खराब कर रहे हैं। किंतु सरकार पहले ही पांच वर्षों के लिए देश की 60 फीसदी से अधिक आबादी को मुफ्त अनाज देने की घोषणा कर चुकी है। इसके लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को अधिक खरीद करने की जरूरत पड़ेगी, जिससे खाद्यान्न के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि होगी। ऐसे में गंभीर कृषि सुधार, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के लिए बड़ी चुनौती बने रहेंगे।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की ही तरह बुनियादी ढांचे में निवेश पर जोर इस सरकार के बजट का भी प्रमुख बिंदु है। लेकिन बजट में राजकोषीय घाटा कम करने के संकेत दिए गए हैं, जिसमें वित्त वर्ष 2025 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत के बराबर घाटे का अनुमान लगाया गया है, जो वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी के 5.9 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है।

वित्त वर्ष 2026 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.5 प्रतिशत के लक्ष्य तक पहुंचने की संभावना है परंतु भारत को सार्वजनिक ऋण अनुपात घटाकर 60 प्रतिशत पर लाने और अगले बड़े संकट के लिए राजकोष को मजबूत बनाने के लिए मध्यम अवधि के लिहाज से अधिक आक्रामक स्तर पर राजकोषीय घाटा कम करने की जरूरत है। ऐसा करने का एक तरीका व्यापक निजीकरण कार्यक्रम है, जिसमें बुनियादी ढांचे के निवेश पर जोर दिया जाए।

बजट में दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर कर बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत (10 प्रतिशत से अधिक) और अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर 20 प्रतिशत (15 प्रतिशत से अधिक) कर दिया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तरों के करीब है और समाज के आर्थिक रूप से समृद्ध वर्ग पर इसका प्रभाव पड़ेगा। इसमें संपत्ति और सोने पर पूंजीगत लाभ कर को 20 प्रतिशत से घटाकर 12.5 प्रतिशत किया गया है, जो दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर के बराबर है। साथ ही इंडेक्सेशन में बदलाव किया गया है, जिससे संपत्ति का लेन-देन अधिक पारदर्शी होने की उम्मीद है।

इसके अलावा विवादास्पद ऐंजल टैक्स को समाप्त करना अच्छा कदम है और इससे स्टार्टअप गतिविधि फिर तेज हो सकती हैं। आयकर पर मानक कटौती बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दी गई और कर स्लैब में वृद्धि करके मध्य आय वर्ग को कुछ राहत दी गई है। लेकिन केवल 2.2 प्रतिशत वयस्क जनसंख्या ही आयकर चुकाती है, जिसका आधार बढ़ाने की आवश्यकता है।

आयात शुल्क घाटाना या मोबाइल फोन, चुनिंदा चिकित्सा उपकरणों, महत्त्वपूर्ण खनिजों, सौर ऊर्जा में इस्तेमाल होने वाली पूंजीगत वस्तुओं, चमड़ा, कपड़ा उत्पादन से जुड़े कच्चे माल, निर्यात और धातु के लिए इसे खत्म करना सकारात्मक कदम है। इसने मोदी के दूसरे कार्यकाल में लागू की गई पांच वर्षों की शुल्क बढ़ोतरी के फैसले को पलट दिया गया है। यह भी एक आशावादी संकेत है कि अगर भारत को निर्यात में प्रमुख शक्ति बनना है तब उच्च आयात शुल्क मदद के बजाय नुकसान पहुंचाएंगे।

गठबंधन सरकार की जरूरतों के लिहाज से ही आंध्र प्रदेश और बिहार से जुड़ी परियोजनाओं के लिए बजट में विशेष आवंटन किया गया था और वित्त मंत्री ने अपने भाषण में इस पर काफी जोर दिया। लेकिन इन दोनों राज्यों को विशेष दर्जा नहीं दिया गया वरना अन्य राज्यों के लिए भी भविष्य में ऐसी मांग करने का रास्ता खुल गया होता। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गठबंधन सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) अभी संतुष्ट हैं। लेकिन क्या वे भविष्य में भी ऐसे ही रहेंगे, यह देखना बाकी है।

वित्त मंत्री ने मोदी के तीसरे कार्यकाल के इस बजट को अगले पांच वर्षों के लिए भारत की अमृत काल की यात्रा का खाका बताया है। बजट सही दिशा में है, लेकिन अगर भारत बेरोजगारों की बढ़ती भीड़ के साथ आर्थिक वृद्धि के बजाय रोजगार के साथ आर्थिक वृद्धि पर जोर देते हुए 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करना चाहता है तब अधिक मौलिक सुधारों और बदलावों की आवश्यकता होगी।

(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी सेंटर में विजिटिंग स्कॉलर हैं)

First Published - August 7, 2024 | 9:19 PM IST

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