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तकनीक से आसान होगा सूचना युद्ध से निपटना

Last Updated- May 18, 2023 | 10:34 PM IST
Information warfare and its limitations

संजय राय शेरपुरिया के कथित कारनामे आधुनिक भारत में सूचना युद्ध के प्रभाव पर रोशनी डालते हैं। तकनीक क्षेत्र में प्रगति (व्हाट्सऐप, फेसबुक और ट्विटर) ने सूचना युद्ध के लिए संभावनाओं के एक नए संसार को जन्म दिया है। कई बेजा तत्व इसका फायदा अनुचित कार्यों में उठा रहे हैं। स्वेच्छाचारी शासक इन तकनीकों की मदद से दूसरे देशों में वहां के स्थानीय लोगों से संपर्क साधे बिना आंतरिक मामलों में दखल दे रहे हैं। मशीन लर्निंग और लार्ज लैंग्वेज मॉडल में भारी निवेश को देखते हुए ऐसे गंभीर मामले और बढ़ सकते हैं।

‘द प्रिंट’ में हाल में प्रकाशित एक आलेख में अनन्या भारद्वाज ने संजय राय शेरपुरिया के कारनामों का उल्लेख किया है। शेरपुरिया ने कथित तौर पर अपने बारे में सार्वजनिक सूचना तंत्र तैयार किया था। गूगल पर इसकी खोज आराम से की जा सकती थी। किसी भी बात पर बिना सोच-विचार किए सरलता से विश्वास कर लेने वाले लोगों ने इसे सही भी मान लिया। शेरपुरिया ने फिर इस स्थिति का इस्तेमाल अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए किया।

जब एक चमत्कारिक शक्ति के रूप में स्मार्टफोन हमारे हाथों में आए तो हम सब काफी उत्साहित थे। शुरू में हम उन्हीं लोगों के साथ संवाद करते थे जिन्हें हम जानते थे एवं जिन पर विश्वास करते थे। मानव स्वभाव कुछ ऐसा है कि स्मार्टफोन के माध्यम से जो भी सूचनाएं पहुंचती थीं हम उन पर भरोसा करने लगे। गलत मंशा वाले लोगों ने इसका तेजी से फायदा उठाया और इसके साथ ही सूचना युद्ध के एक दौर की शुरुआत हो गई। ऐसे लोगों का मकसद हमें ऐसी बातों पर विश्वास दिलाना था जो वास्तव में मिथ्या थे।

सूचना युद्ध के तरीके अब वृदह स्तर पर पहुंच गए हैं और इनका औद्योगीकरण हो गया है। पूरी दुनिया में हजारों लोग रात-दिन हमसे झूठ बोल रहे हैं और हमारे आंखों के सामने दुनिया में उथल पुथल मचा रहे है। उदाहरण के लिए इंटरनेट रिसर्च एजेंसी (आईआरए) नाम से एक रूसी कंपनी की स्थापना की गई थी। इसकी स्थापना येवगेनी प्रिगोझिन ने की थी जो इस समय यूक्रेन सहित कई देशों में लड़ने वाली सेना ‘वागनर’ सेना के प्रमुख के तौर पर अधिक सुर्खियों में हैं।

आईआरए और अन्य रूसी एजेंट रूस के पक्ष में ब्रे​क्सिट जनमत करने, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे डॉनल्ड ट्रंप के पक्ष में करने आदि के लिए अभियान चला चुके हैं। ये तरीके भारतीय राजनीति में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। ब्रे​क्सिट जनमत संग्रह और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का बारीकी से अध्य्यन करने से जो बातें सामने आई हैं उनके अनुसार इस अभियान और इससे सीधे लाभ पाने वाले लोगों के बीच कोई सीधी सांठगांठ का होना जरूरी नहीं है।

उदाहरण के लिए व्लादीमिर पुतिन ने बोरिस जॉनसन के साथ मिलकर कोई अभियान नहीं चलाया था। पुतिन ने इसलिए ब्रे​क्सिट का समर्थन किया था क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि इस गैर-परंपरागत युद्ध में उतरना रूस के पक्ष में है। इस गैर-परंपरागत युद्ध में मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए कुछ रकम खर्च की थी और इससे रूस का एक रणनीतिक लक्ष्य (यूरोपीय देशों में एकता की कमी) पूरा हो रहा था।

भारत में नई दिल्ली में सूचना तंत्र युद्ध का तरीक कुछ अलग है। यहां पहले नजदीकी जाहिर की जाती है और उसके बाद मोल-भाव शुरू होता है। सूचना युद्ध के इस युग में कई लोगों ने यह दिखाने के लिए इंटरनेट आधारित अभियान चलाए हैं कि वे सरकार या देश के पक्ष में हैं। इसकी शुरुआत एक करीबी संबंध दिखाने के गैर-जरूरी प्रयास के साथ होती है। एक बार जब यह अभियान फोटोग्राफ, रीट्वीट या दूसरे जरिये से मजबूत हो जाता है तब इनका इस्तेमाल सत्ता में आने और नजदीकी दिखाने के बड़े साक्ष्य देने में किया जाता है।

इस तरह, अभियान और बढ़ता जाता है। मुंबई को दिल्ली से इस बारे में कम पता रहता है कि कौन किसके पक्ष में है, किसके हाथ में सत्ता है और कौन अधिक जल्द विश्वास के लायक है। सूचना युद्ध में छोटे निवेश से काफी बड़े परिणाम देखने को मिले हैं। आने वाले समय में सूचना युद्ध किसी तरह काम करेगा और हम किस तरह बेहतर कर सकते हैं?

1. समाचार माध्यम (मीडिया) दो भागों में बंट रहा है। इनमें एक वह मीडिया है जिसके लिए पाठक कुछ रकम (सबस्क्रिप्शन) देते हैं और दूसरा वह है जिसमें सामग्री पढ़ने के लिए कोई शुल्क नहीं लगता है। सब​स्क्रिप्शन आधारित मीडिया (जैसे न्यू यॉर्क टाइम्स) सूचना युद्ध से अधिक प्रभावित नहीं होते हैं। मुख्यधारा के मीडिया को प्रभावित करने वाले दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी सच्चाई जानने के लिए ऐसे समाचार संस्थानों पर भरोसा करते हैं।

हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें गूगल पर खोजने से भ्रामक एवं गुमराह करने वाली सूचनाएं भी सामने आती हैं। इसे देखते हुए सबस्क्रिप्शन फीस के बदले विश्वसनीय सूचना देना एक कारोबारी अवसर के रूप में सामने आया है। विश्वसनीय लोगों द्वारा लिखे गए सूचना एवं विचारों के लिए सबस्क्रिप्शन लेना और सोशल मीडिया का इस्तेमाल रोकना हमारे हित में है। जो लोग मीडिया सब​स्क्रिप्शन के लिए भुगतान नहीं करते हैं दुनिया को लेकर उनकी समझ अलग होती है और वे साजिश एवं भ्रामक सूचनाओं से प्रभावित रहते हैं।

2. सूचना संग्राम एवं मानव सुरक्षा के बीच एक तरह से होड़ चल रही है। पहले व्हाट्सऐप पर आई सूचनाओं को अकाट्य सत्य माना जाता था मगर अब इन्हें लेकर लोगों की संजीदगी वैसी ही कम हो गई है जैसे ट्विटर पर मिल रही भ्रामक जानकारियों या भारतीय टेलीविजन पर चीखने-चिल्लाने वाले लोगों को लेकर गंभीरता कम हुई है।

एक समय आता है जब लोगों को लगता है कि उन्हें फुसलाया जा रहा है। 10 से 20 वर्ष पहले सूचना युद्ध को लेकर लोग जितने भोले थे अब उतने भोले नहीं रह गए हैं। यही कारण है कि पुतिन के लगातार समर्थन के बावजूद अमेरिका में 2016 से रिपब्लिकन पार्टी का प्रदर्शन सभी चुनावों में खराब रहा।

3. सूचना योद्धाओं के लिए आधुनिक मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर काफी उम्मीदें लेकर आया है। मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर कम खर्च पर वास्तविक दिखने वाले शब्द, चित्र और वीडियो तैयार कर सकते हैं। भारत में ऐसे लोग आसानी से और कम पैसों पर नहीं मिलते थे जो फर्जी शब्द लिखकर आसानी से लोगों की आंख में धूल झोंक सकते थे।

कई फर्जी सूचनाएं पहचानी जा सकती थी। पहले ये एक तरह से ये फर्जी सूचनाओं के खिलाफ सुरक्षा चक्र के रूप में काम करते थे मगर अब ये पहले से कमजोर हुए हैं।

4. ये घटनाक्रम बड़ी इंटरनेट कंपनियों, खासकर गूगल के हित में नहीं हैं। गूगल या यूट्यूब पर खोज करने पर कई बार आप सूचना युद्ध से जुड़ी सामग्री से रूबरू हो जाते हैं। इससे लोग गूगल का इस्तेमाल करने से दूर हो जाएंगे जो इसके लाखों करोड़ों डॉलर के बाजार पूंजीकरण के लिए ठीक नहीं है। इन समस्याओं से निपटने के लिए कुछ लोगों की टीम काम कर रही है।

ये सभी बातें निराशा की ओर ले जाती हैं मगर मामला पूरी तरह नहीं बिगड़ा है। विश्वसनीय स्रोतों- न्यू यॉर्क टाइम्स से लेकर ‘दी लीप ब्लॉग’- का महत्त्व बढ़ेगा। व्हाट्सऐप पर संदेश पढ़ने वाली बुजुर्ग महिलाएं धीरे-धीरे सूचनाओं को सच्चाई के कसौटी पर तौलना शुरू कर देंगी। भ्रामक वीडियो लोगों को पहले की तरह नहीं प्रभावित कर पाएंगे। सूचना युद्ध के बेहतरीन दिन संभवतः हमारे पीछे रह जाएंगे। (लेखक एक्सडीआरआई फोरम, पुणे में शोधकर्ता हैं)

First Published - May 18, 2023 | 10:34 PM IST

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