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टैरिफ, निवेश और अनिश्चितता: अमेरिका की नीतियों का वैश्विक आर्थिक परिदृश्य

शुल्क दरें इकलौती अनिश्चितता नहीं हैं। उदाहरण के लिए आव्रजन से संबंधित नीतिगत बदलाव भी विकसित और कम आय वाले देशों, दोनों जगहों पर वृद्धि को प्रभावित करेंगे

Last Updated- October 14, 2025 | 11:23 PM IST
Donald Trump

अमेरिका की व्यापार नीति से संबंधित अनिश्चितता अभी भी वैश्विक आर्थिक बहस पर हावी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) के अक्टूबर संस्करण में कहा गया कि वैश्विक वृद्धि में कमी के जोखिम अप्रैल की तुलना में थोड़े कम हुए हैं लेकिन अभी भी वे ऊंचे स्तर पर हैं। अब ध्यान कीमतों, खपत और निवेश पर शुल्क दरों के प्रभाव की ओर स्थानांतरित हो रहा है।

आईएमएफ ने चालू वर्ष के लिए अमेरिका के वृद्धि पूर्वानुमानों को जुलाई की तुलना में 10 आधार अंक बढ़ाकर 2 फीसदी कर दिया है। भारत के चालू वर्ष के वृद्धि संबंधी अनुमानों में भी संशोधन किया गया है और इन्हें 20 आधार अंक बढ़ाकर 6.6 फीसदी कर दिया गया है। कई अन्य पूर्वानुमान लगाने वालों ने भी चालू वर्ष के लिए भारत के वृद्धि अनुमानों में संशोधन किया है। अनुमानों में यह सुधार पहली तिमाही में अपेक्षा से बेहतर वृद्धि संबंधी परिणामों के कारण हुआ है।

बहरहाल, अनिश्चितता को देखते हुए वृद्धि संबंधी अनुमानों में मामूली संशोधन शायद बहुत अधिक मायने न रखे। अमेरिका ने भारत से होने वाले आयात पर 50 फीसदी का प्रतिबंधात्मक शुल्क लागू किया है। भारत के वार्ताकार इस सप्ताह अमेरिका जा रहे हैं और उम्मीद है कि दोनों देश जल्दी ही किसी साझा लाभ वाले व्यापार समझौते तक पहुंचेंगे। भारत पर अमेरिकी शुल्क जहां तुलनात्मक रूप से ऊंचा है वहीं भारत अनिश्चितता से जूझ रहा इकलौता देश नहीं है।

जैसा कि डब्ल्यूईओ ने भी कहा उच्च अमेरिकी शुल्क दर बाहरी मांग को कम कर रही है जिससे बड़ी निर्यात आधारित अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा असर हो रहा है। व्यापार नीति की अनिश्चितता कंपनियों के बीच निवेश की मांग को भी प्रभावित कर रही है। प्रमाण दिखाते हैं कि आर्थिक नीति अनिश्चितता में एक मानक विचलन का इजाफा निवेश में दो फीसदी की गिरावट लाता है। इसका असर करीब दो साल बाद चरम पर पहुंचता है। कंपनियां अनिश्चितता के कारण निवेश को टालना चाहती हैं।

यह बात भी ध्यान देने लायक है कि शुल्क दरें इकलौती अनिश्चितता नहीं हैं। उदाहरण के लिए आव्रजन से संबंधित नीतिगत बदलाव भी विकसित और कम आय वाले देशों, दोनों जगहों पर वृद्धि को प्रभावित करेंगे। अनुमानों के मुताबिक कार्यबल में शामिल अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों का लगभग एक-चौथाई हिस्सा उत्तरी अमेरिका में है, जिनमें से अधिकांश अमेरिका में हैं।

अमेरिका में आव्रजन नीतियों में बदलाव ने उत्पादन पर असर डाला होगा। इसके अलावा कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जिनमें प्रवासी कामगारों का दबदबा है। विनिर्माण, आतिथ्य और कृषि आदि उद्योग ऐसे ही क्षेत्र हैं जहां अपेक्षाकृत मुद्रास्फीति का अधिक दबाव देखने को मिल सकता है। अमेरिका में कुल मुद्रास्फीति की दर में इजाफा होने की उम्मीद है जो फेडरल रिजर्व द्वारा मौद्रिक नीति को सहज बनाने के नजरिये से एक जोखिम हो सकता है।

वर्ष 2027 से 2030 के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था के सालाना औसतन 3.2 फीसदी की दर से विकसित होने की उम्मीद है। महामारी के पहले यानी 2000 से 2019 के बीच यह औसत दर 3.7 फीसदी थी। काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वैश्विक व्यापार से जुड़े मुद्दे किस प्रकार हल होते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव एक बार फिर बढ़ रहा है। अभी तक अधिकांश कारोबारी साझेदारों ने अमेरिका का विरोध नहीं करने का ही निर्णय लिया है। परंतु कुछ समझौतों में शामिल विचित्र शर्तों और अमेरिकी रुख में परिवर्तन को देखते हुए हालात बहुत जल्दी बदल भी सकते हैं।

विश्व व्यापार संगठन के अर्थशास्त्री हाल ही में 2025 के वस्तु व्यापार वृद्धि के अनुमानों को अगस्त के 0.9 फीसदी से बढ़ाकर 2.4 फीसदी कर चुके हैं। यह मोटे तौर पर उत्तरी अमेरिका में आयात की अग्रिम आपूर्ति के कारण संभव हुआ। हालांकि, 2026 के वृद्धि अनुमानों को पहले के 1.8 फीसदी से कम करके 0.5 फीसदी कर दिया गया है। वैश्विक सेवा निर्यात वृद्धि में भी धीमापन आने की उम्मीद है और यह 2024 के 6.8 फीसदी से कम होकर 2026 में 4.4 फीसदी रह सकती है। अमेरिका द्वारा उत्पन्न अनिश्चितता और व्यापारिक तनाव केवल वस्तुओं के व्यापार को ही नहीं, बल्कि सेवाओं और निवेश को भी प्रभावित करेंगे। भारत को अमेरिका के साथ संवाद बनाए रखने के साथ-साथ यूरोपीय संघ जैसे अन्य समझौतों को भी शीघ्रता से अंतिम रूप देने का प्रयास करना चाहिए।

First Published - October 14, 2025 | 11:19 PM IST

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