पिछले कुछ वर्षों के दौरान बुनियादी ढांचे पर किए जाने वाले खर्च को प्राथमिकता देने का प्रदर्शन स्थिर रहा है और इसकी पहचान आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने वाले एक माध्यम के तौर पर की गई है। आंकड़े निश्चित तौर पर बुनियादी ढांचा क्षेत्र के खर्च में बड़ी वृद्धि को दर्शाते हैं। उम्मीद ऐसी है कि वर्ष 2023-24 के बजट में 33 प्रतिशत की वृद्धि के साथ इस रुझान को जारी रखा जाएगा जिससे इस क्षेत्र के लिए खर्च का दायरा 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
पिछले साल बजट के बाद की चर्चा के दौरान वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने एक गोपनीय रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजनाओं पर खर्च किए गए प्रत्येक 1 रुपये से 0.90 रुपये की आर्थिक वृद्धि होती है जबकि बुनियादी ढांचे पर खर्च किए गए 1.0 रुपये से सकल घरेलू उत्पाद में 3.0 रुपये जुड़ जाते हैं। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों पर यह दृष्टिकोण हावी है और करीब 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च पिछले साल की तुलना में 33 प्रतिशत की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है जो काफी हद तक सही क्रम में है।
अब अगली प्राथमिकता का क्षेत्र शहरी बुनियादी ढांचे के लिए धन मुहैया कराना है। हाल की दो रिपोर्टें – नगरपालिका वित्त पर भारतीय रिजर्व बैंक की पहली रिपोर्ट और भारत के शहरी बुनियादी ढांचे के लिए धन पर विश्व बैंक की रिपोर्ट कई गंभीर खामियों के संकेत देती हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत को अगले 15 वर्षों में शहरी बुनियादी ढांचे में 840 अरब डॉलर ( 6.9 लाख करोड़ रुपये) निवेश करने की आवश्यकता होगी।
वित्त मंत्री के पिछले बजट भाषण में नगरपालिका की क्षमता निर्माण वृद्धि के उपायों पर जोर दिया गया था और इस बजट में व्यापक रूप से नगरपालिका बॉन्ड के लिए एक विशेष पैकेज मिलने की उम्मीद है। इसमें संभवतः केंद्र सरकार की भागीदारी, ऋण वृद्धि और ब्याज रियायत जैसे प्रोत्साहन शामिल हो सकते हैं जो इस महत्त्वपूर्ण पूंजी बाजार साधन को शुरू करने के उपायों के रूप में दिख सकते हैं।
एक गंभीर चिंता यह है कि सार्वजनिक कार्यों पर राज्यों के संयुक्त निवेश में मंदी का आलम है। नियम के अनुसार राज्य राष्ट्रीय निवेश में लगभग आधा योगदान करते हैं। हालांकि केंद्र सरकार के निवेश में तेजी है लेकिन आंकड़े चिंताजनक रूप से इस वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में राज्यों के पूंजीगत खर्च में मंदी के संकेत देते हैं। केंद्रीय बजट में इसका संज्ञान लेने की जरूरत है।
राज्य के बुनियादी ढांचे का प्रायोजक बनने के लिए बजट में करीब 1 लाख करोड़ रुपये की समर्थन योजना की आवश्यकता थी और इस तरह के प्रावधान में अब राज्य के खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए संशोधन किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर पूरी हो चुकी प्रत्येक राज्य-स्तरीय परियोजना की लागत का 10 प्रतिशत ‘कैश बैक’ करके, इसका इस्तेमाल नई परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है।
अगली बड़ी चुनौती निजी क्षेत्र को फिर से भारी निवेश करने के लिए प्रेरित करना है। दूरसंचार, डेटा केंद्रों और अक्षय ऊर्जा को छोड़कर, निजी क्षेत्र की नई संयंत्र परियोजनाओं में निवेश करने की रफ्तार में कमी दिखी है। अपने पिछले बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था, ‘पीपीपी (सार्वजनिक निजी भागीदारी) सहित विभिन्न परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता बढ़ाने के उपाय किए जाएंगे।’ पीपीपी के पुनरुद्धार के संबंध में अब तक किए गए प्रत्यक्ष उपायों में आर्थिक मामलों के विभाग की विस्तारित शाखा के रूप में इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस सेक्रेटेरियट (आईएफएस) की स्थापना शामिल है।
इस साल पीपीपी के पुनरुद्धार में आईएफएस अधिक आक्रामक भूमिका निभाने के लिए कदम उठा सकता है, विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पीपीपी ढांचा तैयार करने में। देश की वित्त मंत्री पहले ही संकेत दे चुकी हैं कि आगामी बजट में स्वास्थ्य और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यह स्वीकार किया गया है कि इन दोनों क्षेत्रों की बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए बजट खर्च अपर्याप्त होगा। ऐसे में आईएफएस को एक ऐसी योजना बनाने का प्रयास करना चाहिए जहां 1 रुपये का सरकारी व्यय 5 रुपये के निजी योगदान से संभव हो।
निरंतरता बरकरार रखने के संबंध में बजट को राष्ट्रीय कार्य-एजेंडा तैयार करने में अपनी भूमिका पहचानने की जरूरत है। इसे जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण की वित्त-व्यवस्था के लिए एक विशेष विकास वित्त संस्थान स्थापित करने पर विचार करने की आवश्यकता है, या वित्त-व्यवस्था की रियायती योजना के समर्थन के लिए नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
भारत के लिए प्रासंगिक कार्बन टैक्स और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग तंत्र की अवधारणाओं की जांच करने के लिए एक कार्यबल अहम होगा और ऊर्जा संरक्षण संशोधन विधेयक, 2022 को संसद की मंजूरी दरअसल इस बात की तस्दीक करता है कि सरकार को इस पर काम करने की जरूरत है। इसे ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना पर विचार करना चाहिए और बुनियादी ढांचे से जुड़े उप-क्षेत्रों की सामंजस्यपूर्ण सूची के तहत ग्रीन अमोनिया और ग्रीन हाइड्रोजन संयंत्रों को शामिल करना चाहिए।
रेल बजट को अलग से पेश किए जाने की परंपरा खत्म करने के बाद, रेलवे वित्त से जुड़े विवरण कम ही सुलभ रहे हैं। रेलवे के वित्त पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि परिचालन अनुपात (ओआर) सही वित्तीय प्रदर्शन को नहीं दर्शाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर पेंशन भुगतान पर वास्तविक खर्च को ध्यान में रखा गया होगा तब वर्ष 2019-20 में 98 के कथित परिचालन अनुपात के मुकाबले यह वास्तविक रूप से 114 होना चाहिए था।
विभिन्न मदों के तहत बुकिंग खर्च से जुड़े पहले भी कई अन्य मुद्दे रहे हैं, जैसे कि सुरक्षा और रखरखाव जैसे मदों में। यह खुशी की बात है कि रेल मंत्री ने परिचालन अनुपात के आंकड़े को सभी तरह से पारदर्शी बनाने की प्रतिबद्धता जताई है। यह देखते हुए कि रेलवे के लिए आवंटन सड़कों की तुलना में तेज दर से बढ़ने की उम्मीद है, ऐसे में केंद्रीय बजट में अधिक गहराई से विश्लेषण किया जाना चाहिए।
बुनियादी ढांचे में सीमेंट की बड़ी अहमियत है। यह एक ‘आम आदमी’ से जुड़ी जिंस है और इसके साथ ही बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है। आम बजट में यह घोषणा करना अच्छा होगा कि क्या सीमेंट पर 28 प्रतिशत की ऊंची दर पर कर जारी रखना वांछनीय है या नहीं क्योंकि अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में तेजी आई है। आमतौर पर उत्पादित सीमेंट का 65 प्रतिशत से अधिक इस्तेमाल करते हैं और इनपुट-कर क्रेडिट की अनुपलब्धता इस सेगमेंट को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है।
आर्थिक विकास के लिहाज से सार्वजनिक कार्यों की लागत कम करना और छोटे निर्माण कार्यों पर व्यापक राहत देना अल्पकालिक राजस्व कर छूट की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली हो सकता है। बजट भाषण में इसे जीएसटी परिषद के पास भेजने का उल्लेख किया जा सकता है। इन सात बिंदुओं के साथ केंद्रीय बजट एक बार फिर बुनियादी ढांचा क्षेत्र को फिर से सक्रिय करने का प्रयास कर सकता है।
(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी भी हैं)