देश के निजी क्षेत्र ने लंदन स्थित मुख्यालय वाली कंपनी वनवेब के रूप में अंतरिक्ष संचार के क्षेत्र में अच्छी शुरुआत की है। यह भारती एंटरप्राइजेज और यूनाइटेड किंगडम की सरकार का संयुक्त उपक्रम है जिसने गत रविवार को अंतरिक्ष की कक्षा में 618 उपग्रहों को स्थापित करने का काम पूरा कर लिया।
निश्चित तौर पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इनमें से कई उपग्रहों के प्रक्षेपण में अहम भूमिका निभाई। केंद्र सरकार ने भी निजी क्षेत्र को इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में लाने में सक्रिय भूमिका निभाई ताकि डिजिटल खाई को पाटा जा सके और दूरदराज तथा पहाड़ी इलाकों में रहने वालों को उच्च गति वाला ब्रॉडबैंड हासिल हो सके। परंतु अगर स्पेक्ट्रम आवंटन की सरकारी नीति और अंतरिक्ष संचार में विदेशी निवेश लाने में और देर हुई तो यह पूरी प्रक्रिया रुक जाएगी।
इस बात पर स्पष्टता होनी चाहिए कि उपग्रह आधारित संचार (सैटकॉम) के लिए स्पेक्ट्रम क्षेत्रीय दूरसंचार सेवाओं की तरह नीलामी प्रक्रिया के बाद आवंटित किया जाएगा या फिर यह प्रशासित मूल्य के मॉडल के आधार पर आवंटित किया जाएगा।
इस बारे में उद्योग जगत का नजरिया बंटा हुआ है। उदाहरण के लिए 2जी और 5जी बैंड में पारंपरिक दूरसंचार सेवाओं पर ध्यान केंद्रित रखने वालों की दलील है कि सैटकॉम के लिए नीलामी की प्रक्रिया से ही आगे बढ़ना चाहिए। बहरहाल वन वेब में सबसे बड़े अंशधारक भारती समूह का कहना है कि अंतरिक्ष संचार के लिए स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासित कीमतों के जरिये किया जाना चाहिए।
विश्व स्तर पर सरकारों ने सैटकॉम कंपनियों के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए नीलामी का तरीका नहीं अपनाया। नीलामी का विरोध करने वालों का कहना है कि सैटकॉम के मामले में यह व्यावहारिक नहीं रहेगा। गत वर्ष दिसंबर में एक औद्योगिक कार्यक्रम में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के चेयरमैन पी डी वाघेला ने संकेत दिया था कि भारत पहला देश होगा जो अंतरिक्ष और सैटकॉम के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी करेगा।
उम्मीद थी कि ट्राई जनवरी तक अंतरिक्ष संचार के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन पर एक मशविरा पत्र पेश करेगा और इस वर्ष मई तक अपनी अनुशंसा करेगा लेकिन उक्त पत्र अब तक पेश नहीं किया गया। इसके अलावा अंतरिक्ष संचार उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर भी नीति की प्रतीक्षा है।
स्पेसकॉम नीति जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मानक शामिल होंगे, उसे अंतरिक्ष विभाग और दूरसंचार विभाग तैयार कर रहे हैं। एक बार विदेशी निवेश के नियम स्पष्ट हो जाने के बाद यूके सरकार के साथ वनवेब और फ्रांसीसी कंपनी यूटेलसेट जैसे भारती के साझेदार भारत में भी सेवा दे सकेंगे।
भारती एंटरप्राइजेज के चेयरमैन और वनवेब के कार्यकारी चेयरमैन सुनील मित्तल को आशा है कि भारत में जुलाई-अगस्त तक सैटेलाइट संचार शुरू हो जाएगा। उसके पहले स्पेसकॉम नीति की अधिसूचना लानी होगी। तभी वनवेब की यूके स्थित होल्डिंग कंपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ला सकेगी और वनवेब इंडिया कम्युनिकेशंस में हिस्सेदारी ले सकेगी। फिलहाल उसमें 100 फीसदी हिस्सेदारी भारती समूह की है। वनवेब में यूटेलसेट की हिस्सेदारी को भी सैटकॉम नीति की अधिसूचना का अनुसरण करना होगा।
वनवेब के अलावा कुछ वैश्विक कारोबारी मसलन ईलॉन मस्क की स्टारलिंक की भी इस बाजार में आने की योजना है। नियामकीय ढांचे के अभाव के चलते स्टारलिंक को भारत छोड़ना पड़ा था। बिना नीति के कुछ नहीं होगा।
वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष की दौड़ में जेफ बेजोस और मस्क ही आगे हैं, हालांकि उनकी अंतरिक्ष संबंधी महत्त्वाकांक्षाएं संचार तक सीमित नहीं हैं। वनवेब द्वारा 36 उपग्रहों के अंतिम सेट के सफल प्रक्षेपण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस घटना ने वैश्विक वाणिज्यक सेवा प्रक्षेपण प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को नए सिरे से मजबूती दी है। यह आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाया गया कदम है। अब सरकार को अपनी नीतियों की मदद से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत जल्द से जल्द अंतरिक्ष संचार का लाभ ले सके।