पहली बार वामपंथी दल और ममता बनर्जी मंच पर एकसाथ? यह सोचने में ही असहज लगता है लेकिन नीतीश कुमार ने शायद दोनों को एकजुट करने के असंभव कार्य को अंजाम दे दिया है।
नीतीश ने तकरीबन एक महीने तक विरोधियों से बातचीत की और बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन को गले लगाया। नीतीश ने दिल्ली में अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात कर विपक्षी एकजुटता को जीवित किया। नीतीश ने दिल्ली दौरे से पहले बैठकों के लिए मुद्दे तैयार किए जो उनके दल जनता दल (यूनाइटेड) या जदयू के फायदे में हैं। हालांकि उनके दिल्ली दौरे से पहले कुछ लोग भविष्यवाणी कर रहे थे कि उनकी कोशिशें सफल नहीं होंगी।
नीतीश ने पटना में जद (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कहा, ‘यदि सभी (विपक्षी) दल एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को घटाकर 50 सीटों पर सीमित किया जा सकता है। मैं इस अभियान के लिए अपने को समर्पित कर रहा हूं। ‘ हालांकि उनके दल और उन्हें भी यह बखूबी जानकारी है कि उन्होंने बीते कई सालों में अपने दोस्तों से मुलाकात तक नहीं की है।
उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व और कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी से अप्रैल 2017 में अंतिम मुलाकात की थी। उसके तीन महीने बाद उन्होंने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में राजद से संबंध तोड़ लिए थे और 2015 में चुनाव जीती महागठबंधन सरकार को मंझधार में ही छोड़ दिया था। फिर वह राजग में शामिल हो गए थे।
नीतीश ने राहुल गांधी के साथ करीब एक घंटे गुप्त बातचीत की थी। इन दोनों के बीच पहले कभी इतनी लंबी बातचीत नहीं हुई थी। वह माकपा के दिल्ली स्थित मुख्यालय एकेजी भवन गए और माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी से मुलाकात की।
इस एक घंटे की मुलाकात के बाद नीतीश ने वामपंथी दलों में करीबियों से मुलाकात की। येचुरी के राजनीतिक गुरु हरकिशन सिंह सुरजीत ने धुर विपक्षी दलों का गठबंधन 1998 में कराया था। इससे 2004 में कांग्रेस समर्थित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सत्ता में वापसी हुई थी।
येचुरी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए स्पष्ट किया,’पहला, इसका एजेंडा सभी पार्टियों को एकजुट करना है लेकिन इसमें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय नहीं हुआ है। जब समय आएगा, तब हम प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करेंगे और आपको इस बारे में जानकारी देंगे। उन्होंने कहा कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम का प्रारूप तय करने के लिए शीघ्र ही ‘कार्य’ शुरू हो जाएगा।
मुलायम सिंह यादव जब अस्पताल में भर्ती थे तब उन्होंने फोन किया था और उनके पुत्र अखिलेश को अपने पाले में लाए। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता घनश्याम तिवारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘2024 के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों को एक मंच पर एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार आदर्श नेता हैं।’ उन्होंने कहा,’नीतीश के पूरे देश के नेताओं से लंबे समय से संबंध रहे हैं। नीतीश संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करते हैं। ‘
नीतीश ने असंभव से दिखने वाले गठजोड़ के लिए शरद पवार से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद नीतीश ने विपक्षी दलों की एकजुटता का समर्थन किया। उन्होंने संवाददाताओं से कहा,’हम दोनों पवार और मैं विपक्षी दलों को एकजुट रखने पर सहमत हैं। इस गठबंधन के नेता के बारे में फैसला बाद में होगा। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि सभी को एकजुट किया जाए।’
पवार ने कोई टिप्पणी नहीं की। रोचक बात यह है कि नीतीश ने विपक्षी दलों की एकजुटता की अपनी योजना में सबसे महत्त्वपूर्ण नेताओं में से एक विपक्षी नेता ममता बनर्जी को शामिल किया। इसके बाद ही उन्होंने वामपंथी दलों से बातचीत की।
ममता ने एक आम सभा में विपक्षी एकजुटता का उल्लेख किया और लोगों ने जोरदार तालियों से उनके वक्तव्य का समर्थन किया। ममता ने कहा, ‘बंगाल में ‘खेला होबे’ (खेल शुरू होगा)। अब हम सभी एकजुट हैं। नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन और मैं हूं। इसमें हमारे दोस्त हैं। सभी दल एकजुट हैं। भाजपा को 280-300 सीट जीतने का घमंड है… याद रखें कि राजीव गांधी के पास 400 सीटें (1984) में थी लेकिन वे टिक नहीं पाए (1989 में)। (1989 के चुनाव में राजीव गांधी की कांग्रेस के टिकट पर ममता चुनाव हार गई थीं उन्होंने तब चुनावी धांधली और चुनाव में अनुचित तरीकों का इस्तेमाल किए जाने का आरोप लगाया था।’
पहली बार वामपंथी दल और ममता बनर्जी एक मंच पर एक साथ हैं? यह सोचने में ही असहज लगता है। लेकिन नीतीश ने असंभव से लगने वाले इस काम को अंजाम दिया और दोनों को एकजुट किया।
बीजू जनता दल (बीजद) के नेता जब दिल्ली में थे तो नीतीश ने मुलाकात की कोशिश की थी। लेकिन उनके रास्ते एक नहीं बन पाए। आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं। दिल्ली में एक समय रेड्डी और नीतीश दोनों थे लेकिन दोनों नेताओं ने मुलाकात नहीं की थी।
हरियाणा में 25 सितंबर को इंडियन नैशनल लोक दल (आईएनएलडी) की रैली है। इसमें कांग्रेस को आमंत्रित नहीं किया गया है। इसमें अन्य ममता, वामपंथी दल और जद (यू) मंच को साझा कर सकते हैं। क्या यह तीसरे मोर्चा होगा? इस बारे में नीतीश ने स्पष्ट कहा, ‘यदि मंच बन जाता है तो यह मुख्य मोर्चा होगा। यह तीसरा मोर्चा नहीं होगा। कांग्रेस, वामपंथी दलों, समाजवाद से प्रभावित दल और अन्य एक साथ आ जाते हैं तो यह राष्ट्रीय हित में होगा। यदि विभिन्न राज्यों में गैर भाजपा दल एकजुट हो जाते हैं तो देश में अच्छा माहौल बनेगा और गैरभाजपा दल ताकतवर बनकर उभरेंगे।’
प्रधानमंत्री कौन बनेगा, यह विपक्ष के सामने अनसुलझा सवाल है। प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश ने जोशीले और स्पष्ट ढंग से कोई दावा पेश नहीं किया है (उन्होंने पिछले सोमवार को कहा था।) लेकिन लोगों को उन पर विश्वास नहीं है? राजनीतिक विशेषज्ञ प्रशांत कुमार ने कहा कि हर स्थिति में नीतीश कुर्सी पर काबिज रहते हैं।
उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, ‘फेविकोल के निर्माताओं को उन्हें अपना ब्रांड ऐंबैससडर बनाने पर विचार करना चाहिए।’ प्रशांत स्वयं भी सक्रिय राजनीति में उतरने का विचार बना रहे हैं। किशोर ने कहा, ‘बीते एक दशक में नीतीश कुमार छह बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। वह हमेशा लोगों को भ्रमित रखते हैं कि वह किस के साथ हैं।’ किशोर को जद (यू)के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था।’
साझा न्यूनतम कार्यक्रम को तैयार करने में जयराम रमेश भी शामिल हैं। रमेश प्रारूपों व फाइलों की समीक्षा कर रहे हैं। हो सकता है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम में ज्यादा कुछ नहीं हो। साल 2024 के चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है और विपक्ष ने आईना दिखाना शुरू कर दिया है।