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फूल निर्यात में चुनौतियों का समाधान जरूरी

फूलों का बाजार मौजूदा, करीब 29,200  करोड़ रुपये से बढ़कर 2033 तक 74,400 करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा जो लगभग 11  फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर की वृद्धि दर्ज करेगा।

Last Updated- April 30, 2025 | 10:41 PM IST
Bulldozer runs on UP's oldest flower market, government will settle flower traders in new market
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत भले ही दुनिया में फूलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और सरकार ने फूलों की खेती को शत-प्रतिशत निर्यातोन्मुख उभरता क्षेत्र घोषित किया है लेकिन वैश्विक फूल बाजार में देश की हिस्सेदारी बहुत कम है। वर्ष 2023-24  में भारत ने केवल 19,678  टन फूलों के उत्पादों का निर्यात किया जिसका मूल्य करीब 717.83 करोड़ रुपये था।

यह फूलों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केवल 0.6  फीसदी है। इसके अलावा अधिकांश निर्यात में आमतौर पर गुलाब, लिली, गुलनार और गुलदाउदी शामिल होते हैं। अन्य फूलों की निर्यात क्षमता का अभी तक पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया गया है जिनमें कुछ दुर्लभ प्रकार के आर्किड और कई खास तरह के देसी फूल शामिल हैं। ऐसा ही मामला फूलों से बने मूल्यवर्धित सामानों का है जैसे कि सूखे फूल, फूल वाले सजावटी सामान, उच्च स्तरीय देसी इत्र और खास तरह के तेल। इन उत्पादों को अगर ठीक से बढ़ावा दिया जाए तो विदेश में इनके लिए अच्छा बाजार मिल सकता है।

इस बात को लेकर चिंता और गंभीर होती जा रही है क्योंकि वैश्विक फूल बाजार में भारत के एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभरने का स्वभाविक फायदा है। देश के विभिन्न हिस्से में खेती से जुड़ी जलवायु परिस्थितियां भी अलग हैं जिसके कारण सभी प्रकार के फूलों के उत्पादन के जरिये पूरे वर्ष भर अंतरराष्ट्रीय मांग पूरी की जा सकती है, खासतौर पर सर्दियों के दौरान जब पारंपरिक तौर पर फूल निर्यात करने वाले देशों से आपूर्ति काफी कम हो जाती है।

साथ ही, ग्रीनहाउस में नियंत्रित वातावरण में अच्छी गुणवत्ता वाले फूल उगाना, भारत में अपेक्षाकृत रूप से आसान होने के साथ ही लागत के लिहाज से भी बेहतर है जिसके कारण भारतीय फूल अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्द्धी कीमत पर उपलब्ध हो जाते हैं। पश्चिमी देशों के विपरीत, भारत में पॉलिहाउस के लिए आमतौर पर गर्मी में कृत्रिम रूप से कूलिंग करने या सर्दी में गर्म माहौल बनाने की आवश्यकता नहीं होती है।

कई विदेशी फूलों की ऑफ सीजन खेती भी खुले खेतों या नियंत्रित परिस्थितियों में संभव है। सस्ते और कुशल श्रम की प्रमुख उपलब्धता का भी एक अतिरिक्त फायदा है। इसके अलावा भारत भौगोलिक रूप से दो महत्त्वपूर्ण निर्यात स्थलों, यूरोप (जिसमें हॉलैंड फूलों के व्यापार का प्रमुख केंद्र है) और पूर्वी एशिया (जिसमें जापान, प्रमुख खपत केंद्र है) के बीच मौजूद है।

कई अध्ययनों से यह संकेत मिलता है कि फूलों की खेती, कई पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक फायदेमंद है खासतौर पर छोटे और सीमांत कृषि क्षेत्रों जहां पर देश के 90 फीसदी से अधिक जोत भूमि हैं। वर्ष 2024-25 के आर्थिक सर्वेक्षण में आकर्षक व्यवसायों में फूलों की खेती का विशेष उल्लेख है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि अनाज, दालें और तिलहन की पारंपरिक फसलों के अंतराल में फूलों के पौधों को लगाना वास्तव में कई प्रचलित फसल चक्रों की तुलना में अधिक लाभकारी है। इसमें यह पाया गया है कि हाल के वर्षों में पारंपरिक फूलों की खेती के बजाय निर्यात पर आधारित फूलों की ओर ध्यान देने से जुड़ा बड़ा बदलाव देखा गया है।

हालांकि फूलों की खेती में कुछ बड़ी बाधाएं हैं जो इसकी प्रगति को बाधित करती हैं। इनमें सबसे अहम हैं- विश्वस्तरीय फूलों की पैदावार के लिए बीज सामग्री की कमी, फूलों की कटाई के बाद उसके प्रबंधन व आपूर्ति आदि से जुड़ी समुचित व्यवस्था न होना, और निर्यात वाले फूलों के उत्पादों की विशेष जरूरत को देखते हुए एक एकीकृत कोल्ड चेन की कमी। फूलों के परिवहन और मार्केटिंग की मौजूदा व्यवस्था काफी पुरानी है और यह फूल जैसे नाजुक और कोमल उत्पादों के लिए अनुपयुक्त है। अक्सर ताजे फूलों को बाजारों या नीलामी केंद्रों तक ले जाने के लिए टोकरियों, जूट के बोरों, साधारण डिब्बे की पैकिंग का इस्तेमाल किया जाता है या यहां तक कि अखबारों में भी लपेटा जाता है। निर्यातकों को रेफ्रिजरेटेड भंडारण और परिवहन सुविधाओं की कमी, महंगी हवाई माल भाड़ा दरों और अधिक आयात शुल्क जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, विमानन कंपनियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे सड़ने वाले फूलों के माल की ढुलाई को प्राथमिकता दें, लेकिन वे अक्सर ऐसा नहीं करते हैं।

इन कमियों के बावजूद, उद्योग के विश्लेषक भारत में फूलों की खेती की संभावनाओं को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि फूलों का बाजार मौजूदा, करीब 29,200  करोड़ रुपये से बढ़कर 2033 तक 74,400 करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा जो लगभग 11  फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर की वृद्धि दर्ज करेगा।

वैसे तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती मांग वृद्धि का मुख्य चालक है लेकिन फूलों के ई-कॉमर्स (ऑनलाइन मार्केटिंग) बाजार के उभार से इस क्षेत्र को काफी बढ़ावा मिला है। इसके अलावा, कृषि मंत्रालय फूल उत्पादन को बढ़ावा देने और फूल बाजारों को नया रूप देने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रहा है। दूसरी ओर कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, कटे हुए फूलों, गुच्छे से निकले फूलों, सूखे हुए फूलों, सजावटी पत्ते, गमले के पौधे, फूलों के बीज और पौधे, इत्र तथा तेल जैसी मूल्यवर्धित वस्तुओं सहित सभी प्रकार के फूलों की खेती के उत्पादों के निर्यात के लिए प्रचार संबंधी सहायता दे रहा है। यह निर्यात के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा बनाने के लिए उद्यमियों को निर्यात सब्सिडी सहित विभिन्न प्रोत्साहन भी देता है।

सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने निर्यात आधारित फूलों की खेती को बढ़ावा देने के तरीकों और साधनों का सुझाव देने के लिए बेंगलूरु, पुणे, दिल्ली और हैदराबाद को इस उद्देश्य के लिए केंद्र के रूप में विकसित किए जाने वाले प्रमुख स्थल के रूप में पहचान की है। इनमें, बेंगलूरु और पुणे को सबसे बेहतर साइट माना जाता है क्योंकि इन क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्रों में फूल की खेती के लिए आदर्श जलवायु परिस्थितियां (15 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान) हैं। अन्य सुझाए गए स्थानों में भी लॉजिस्टिक्स के लिहाज से कुछ फायदे हैं, ये  उत्पादन केंद्रों और निर्यात गंतव्यों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं।

ये सुझाव विचार किए जाने योग्य हैं। साथ ही, फूल उत्पादकों, मार्केटिंग करने वालों और निर्यातकों के द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों का भी तत्काल समाधान करने की जरूरत है ताकि फूलों की खेती में सुचारु तरीके से वृद्धि होती रहे।

First Published - April 30, 2025 | 10:18 PM IST

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