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सॉफ्ट या हार्ड पावर?

भारतीय विदेश मंत्री को इतनी अ​धिक जगह दी गई है जो अन्यथा हेनरी किसिंजर को मिलती रही है।

Last Updated- June 23, 2023 | 10:01 PM IST
PM Modi received a grand welcome at the White House, said - this is the honor of 140 crore Indians
PTI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा से जुड़े औपचारिक शोरशराबे और दिखावे से इतर यह सवाल पूछना बनता है कि बीते कुछ दिनों की कई घटनाओं में से सर्वा​धिक महत्त्वपूर्ण घटना कौन सी थी? नरेंद्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र में योग करना, जनरल इलेक्ट्रिक तथा हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स के बीच लड़ाकू विमान इंजन बनाने की साझेदारी, कुछ प​श्चिमी प्रकाशन समूहों का भारत को लेकर नया राग, या फिर खतरनाक ड्रोन्स और वा​णि​ज्यिक विमानों का बड़ा ऑर्डर।

मोटे तौर पर देखा जाए तो यह या तो सॉफ्ट पावर या फिर हार्ड पावर का प्रदर्शन है। यहां सॉफ्ट पावर से तात्पर्य है बिना बल प्रयोग के किसी देश को प्रभावित करना जबकि हार्ड पावर में बलप्रयोग, दमदारी की कूटनीति आदि शामिल होते हैं। सॉफ्ट पावर के उदाहरण की बात करें तो इकॉनमिस्ट ने गत सप्ताह अपने अंक में आधा दर्जन रिपोर्ट एक भारतीय ‘पैकेज’ में पेश कीं जिसकी आवरण कथा में ‘अपरिहार्य’ बन चुके भारत को अमेरिका का ‘नया बेहतरीन दोस्त’ बताया गया है, मोदी को दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता बताया गया है, भारतीय प्रवासियों को सबसे बड़ा और दुनिया का सबसे प्रभावशाली समुदाय बताया गया है और तेजी से बढ़ते रक्षा और सुरक्षा समझौतों का जिक्र किया गया है।

इसके अलावा भारतीय विदेश मंत्री को इतनी अ​धिक जगह दी गई है जो अन्यथा हेनरी किसिंजर को मिलती रही है। अगर एक ऐसा प्रकाशन जो भारत की ओर से एक नेता, संगठन या काम को बढ़ावा देने को लेकर शंकालु रहा हो, वह खुद ब खुद ऐसा कुछ करे तो यकीनन अवधारणा में तब्दीली तो आई है।

परंतु ​सवाल तो पूछे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए क्या भारतीय प्रवासी समुदाय भारत या अमेरिका की सॉफ्ट पावर का प्रमाण है? नि​श्चित तौर पर अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने 15 वर्ष पहले परमाणु समझौते के लिए लॉबीइंग की थी और अब वे तादाद और संप​त्ति के लिहाज से इतने महत्त्वपूर्ण तो हैं कि अमेरिकी राजनेता उनकी अनदेखी न करें। परंतु यह दलील दी जा सकती है कि अगर श्रेष्ठ अमेरिकी भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने आएं तथा भारतीय पासपोर्ट पाने के लिए लाइन लगाएं तब अवश्य इसे सही मायनों में भारत की सॉफ्ट पावर कहा जा सकता है।

जब मामला इसके उलट हो और अ​धिकांश संपन्न और सक्षम भारतीय अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हों, रोजगार के अवसर अमेरिकी टेक कंपनियों में हों, उन्हें अमेरिकी वित्तीय तंत्र की ताकत पर यकीन हो, उस देश की प्रकृति समावेशी हो, वहां जीवन जीना सहज हो और अमेरिकी की लोकप्रिय संस्कृति उन्हें लुभाती हो तो कहा जा सकता है कि यह अमेरिकी सॉफ्ट पावर का उदाहरण है। यह बात अप्रत्यक्ष तरीके से भारतीय व्यवस्था की कमियों को ही दिखाती है कि कई भारतीय अरबपति रेतीले इलाके में ​स्थित दुबई में रहने के लिए देश छोड़कर जा रहे हैं।

ऐसे में साफ है कि द्विपक्षीय रिश्तों में हार्ड पावर ही मायने रखती है। भारत का बढ़ता सैन्य और आ​र्थिक कद और उसके बाजार की संभावना। इंडिगो और एयर इंडिया ने ढेर सारे विमानों का जो ऑर्डर दिया है वह तो इसका केवल एक प्रमाण है। सभी जानते हैं कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्दी ही वह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार अमेरिकी अर्थव्यवस्था के 15 फीसदी के बराबर है लेकिन वै​श्विक वृद्धि में उसका योगदान अमेरिकी योगदान के 60 फीसदी के बराबर है क्योंकि वह चार गुना तेजी से वृद्धि हासिल कर रहा है।

भारत की सेना भी मायने रखती है, खासतौर पर हिंद महासागर में जहां उसे एक दर्जन अमेरिकी पोसेडियन विमानों तथा 31 सी गार्डियन ड्रोन्स की निगरानी और हमलावर क्षमता मिल जाए तो वह चीन की लगातार बढ़ती नौसेना का मुकाबला कर सकती है। भारत का रक्षा बजट दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट है और यह दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा आयातक है।

कई प​श्चिमी कंपनियों को भारत में सुखद भविष्य नजर आता है। उदाहरण के लिए जनरल इलेक्ट्रिक जो हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स के साथ मिलकर भारत में तेजस मार्क 2 के लिए इंजन बनाएगी और फ्रांस की दसॉ कंपनी को 50 से अ​धिक नए राफेल विमानों का ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। इनमें से आधे से अ​धिक नए विक्रांत एयरक्राफ्ट कैरियर के लिए होंगे।

भारत अपनी ​विदेश नीति पर अ​धिक जोर दे सकता है, रूसी तेल खरीदते हुए प​श्चिमी देशों को धता बता सकता है, उसके अ​धिनायकवादी और अल्पसंख्यक विरोधी रुख को लेकर प​श्चिमी चिंताओं की अनदेखी कर सकता है और अब तक जिन प्रमुख अंतरराष्ट्रीय क्लबों से उसे बाहर रखा गया धीरे-धीरे उनमें शामिल हो सकता है।

दूसरी ओर अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने बीते एक दशक से अ​धिक समय में सहजता से यूरोपीय संघ (ब्रिटेन को शामिल करके भी) को पीछे छोड़ दिया है और अब वह उससे 25 फीसदी बड़ी है। यह बड़ी टेक कंपनियों का घर है, तकनीक और पूंजी का स्रोत है तथा बहुपक्षीय मुद्दों मसलन व्यापार और जलवायु परिवर्तन से निपटने में उसकी अहम भूमिका है। ऐसे में जहां योग, प्रवासियों तथा सॉफ्ट पावर के अन्य तरह के प्रदर्शन के बारे में बात करना अच्छा लगता है, वहीं इस रिश्ते को आगे ले जाने वाला कारक हार्ड पावर है। सॉफ्ट पावर इसमें योगदान करती है।

First Published - June 23, 2023 | 10:01 PM IST

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