वित्त मंत्री हर वर्ष केंद्रीय बजट की प्रस्तुति के बाद शुरुआती प्रतिक्रियाओं के प्रबंधन में सिद्धहस्त हो चुके हैं। इससे शेयर बाजारों और टीवी स्टूडियो में भी हल्काफुल्का उत्साह पैदा होता है और जब तक वह ठंडा होता है, लोग बजट के बारीक अध्ययन से निकले संदेशों की अनदेखी करके आगे बढ़ चुके होते हैं।
निर्मला सीतारमण भी आय कर कटौती को लेकर उत्साह पैदा करके ऐसा करने में सफल रहीं। अगर विभिन्न कर रियायत योजनाओं को हटाए जाने का आकलन कर लिया जाए तो करदाताओं को उतना लाभ नहीं होगा जितना शुरू में घोषित किया गया था।
वित्त मंत्री ने जहां कहा कि उन्हें 35,000 करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई है, वहीं अगले वर्ष के आयकर राजस्व में प्रतिशत वृद्धि का उनका अनुमान उतना ही है जितना कि कॉर्पोरेशन कर राजस्व के लिए यानी 10.5 प्रतिशत। ऐसे में देखा जाए तो व्यावहारिक तौर पर 2023-24 में राजकोष को कोई नुकसान नहीं होगा। बहरहाल, कर व्यवस्था में गंभीर खामी है और दुनिया में कुछ ही ऐसे देश हैं जहां कर रियायत की सीमा इतनी अधिक है।
आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस राजकोषीय सुधार की घोषणा की गई थी उसे एक महीना पहले ही अंजाम दिया गया जब कोविड के समय शुरू की गई नि:शुल्क खाद्यान्न आपूर्ति को बंद किया गया। इसके अलावा उर्वरक सब्सिडी में बचत के कारण ही घाटे में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में 0.5 फीसदी के बराबर कमी प्रस्तावित की जा सकी।
संसद में बुधवार को पेश बजट में कोई अतिरिक्त राजकोषीय सुधार नहीं हुआ है। निश्चित तौर पर अब जबकि आर्थिक उत्पादन कोविड के झटके से उबर चुका है और आगे बढ़ रहा है तो यह समझना होगा कि घाटा 2019-20 के कोविड पूर्व के स्तर पर क्यों नहीं आया। तब यह जीडीपी का 4.6 फीसदी था और अगले वर्ष इसके 5.9 फीसदी रहने की बात कही गई है।
दरअसल सरकार बड़ा पूंजी निवेश कर रही है और गैर ब्याज राजस्व व्यय में कमी कर रही है। सार्वजनिक निवेश मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहचान रहा है और पांच वर्षों में पूंजी आवंटन 150 फीसदी बढ़ा है। घाटे की भरपाई खपत से नहीं अधोसंरचना आदि में निवेश से ही होनी चाहिए। यानी घाटे को ऊंचा रखने की एक कीमत है जो बढ़ते ब्याज बिल में नजर आती है। सार्वजनिक ऋण भी बढ़ रहा है। घाटे को कम करने, ब्याज तथा सार्वजनिक ऋण को थामने के लिए पूंजीगत व्यय पर थोड़ा अंकुश लगाना होगा।
मिसाल के तौर पर अरसे बाद रेलवे के पूंजी आवंटन में भारी इजाफा स्वागतयोग्य है लेकिन यह पूंजी निवेश के लिए अधिशेष तैयार नहीं करता और पूरी तरह बजट समर्थन पर निर्भर है। माल भाड़े से आने वाले राजस्व का ज्यादातर हिस्सा कोयला, लोहा, अनाज सीमेंट आदि से आता है जबकि यात्री किराये में ज्यादा हिस्सा दूसरे दर्जे, शयनयान और तृतीय वातानुकूलित श्रेणी से आता है। वंदे भारत जैसी उच्च श्रेणी वाली ट्रेनों की नई श्रेणियों से अभी सार्थक आय होनी है।
सरकार का कहना है कि निजी निवेश के आने तक आर्थिक गति बढ़ाने के लिए उसका पूंजी निवेश आवश्यक है। बजट में राष्ट्रीय शिक्षा मिशन और प्रधानमंत्री आवास योजना का बजट बढ़ाया गया है लेकिन जल जीवन मिशन में सबसे अधिक बढ़ोतरी नजर आ रही है क्योंकि चालू वर्ष में बजट खर्च नहीं हो सकेगा।
रक्षा क्षेत्र के आवंटन में मामूली इजाफा हुआ है जबकि प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना तथा ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम में कटौती हुई है। सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार में दिखाई गई उदारता पर कोई सवाल नहीं है लेकिन पूरी तस्वीर देखें तो थोड़ा संतुलन बेहतर होता।
सरकार को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि घाटे में फिर कटौती हुई और सार्वजनिक उधारी पर नियंत्रण रहा। इससे संसाधनों पर नियंत्रण बना रहेगा और निजी क्षेत्र के लिए अधिक पूंजी बचेगी। ब्याज दरें भी कम हो सकती हैं। इससे निजी निवेश और खपत बढ़ेगी तथा आर्थिक वृद्धि के मामले में हम औरों से बेहतर रहेंगे।
इसके अलावा अगर कर राजस्व अनुमान से बेहतर होता है तो उसका इस्तेमाल घाटा कम करने में किया जा सकता है। उसे चुनाव पूर्व तोहफों में खर्च नहीं किया जाना चाहिए। 2025-26 तक के बाकी दो वर्षों में घाटे में 1.4 फीसदी कमी करने की जरूरत है तभी उस वर्ष 4.5 फीसदी का लक्ष्य हासिल होगा।