भारतीय रिजर्व बैंक की मंगलवार को जारी सालाना रिपोर्ट में मौद्रिक नीति समिति के इस आकलन को दोहराया गया कि चालू वित्त वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट आएगी। लॉकडाउन में शिथिलता के बाद आर्थिक गतिविधियों में सुधार हो रहा है लेकिन वर्ष की पहली तिमाही में सरकारी खर्च में अहम बढ़ोतरी से जरूरी राहत मिलने की आशा है। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक की रिपोर्ट का यह कहना सही है कि भविष्य की राजकोषीय नीति भारी भरकम बकाया कर्ज और महामारी के दौरान एकत्रित देनदारियों से काफी हद तक प्रभावित होगी। कर्ज और घाटा कम करने की एक विश्वसनीय योजना तैयार करना आवश्यक है। ऐसे में समझदारी इसी बात में होगी कि समग्र मांग में सरकारी व्यय की हिस्सेदारी कम की जाए और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में बढ़ा जाए। यह बात व्यापक तौर पर आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव की बातों से मेल खाती है। गत सप्ताह एक साक्षात्कार में डॉ. सुब्बाराव ने कहा था कि एक बार संकट समाप्त होने के बाद राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ चुका होगा, कर्ज का बोझ भी बहुत बढ़ जाएगा और वित्तीय क्षेत्र की हालत बहुत अधिक खराब होगी। साफ जाहिर है कि ये तमाम कारक मध्यम अवधि में वृद्धि को प्रभावित करेंगे और आर्थिक गतिविधियों में आरंभिक तेजी के बाद इनका असर दिखेगा।
ऐसे में यह बात अहम है कि 21वीं सदी के तीसरे दशक के बारे में अनुमान और आकलन करते समय औसत का ध्यान नहीं रखा जाए। बीते दो दशकों में हमने 7 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल की है लेकिन इस बार यह आंकड़ा काफी कम होने की आशंका है। सरकार को भविष्य के अनुमान लगाते समय सावधानी बरतनी चाहिए। मसलन वृद्वि, गरीबी में कमी और कल्याण योजनाओं को सतत जारी रखने के मामले में क्या संभावनाएं हैं? सरकार को बजट का व्यापक पुनर्आकलन करना चाहिए ताकि व्यय को नए सिरे से तय किया जा सके। धीमी वृद्धि के निहितार्थ सामरिक मोर्चे पर भी एकदम स्पष्ट हैं क्योंकि चीन में कामकाजी आबादी की बढ़ती उम्र के बावजूद वह एक बार फिर दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने का वादा कर रहा है।ऐसे में इन वृहद आर्थिक बाधाओं के बीच भारत अच्छा प्रदर्शन कैसे कर सकता है? इस सवाल का जवाब सस्ते तेल की आपूर्ति, धीमी वैश्विक वृद्धि और नीतिगत बदलावों के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने जैसे अनुकूल तथ्यों में छिपा है। नीतिगत बदलावों की बात करें तो सरकार की योजना बहु मॉडल औद्योगिक क्लस्टर बनाने और किसी प्रकार विनिर्माण के मोर्चे पर प्रगति करने की है। परंतु भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला के साथ एकीकरण के साथ-साथ औद्योगिक आवास और शहरी प्रबंधन के क्षेत्र में नए रुख की भी आवश्यकता होगी।
एक लक्ष्य यह भी होगा कि आवास और परिवहन की लागत कम करके श्रम की लागत को किसी प्रकार कम किया जाए। इसके अतिरिक्त विनिर्माताओं के लिए बिजली की लागत कम रखने के लिए क्रॉस सब्सिडी समाप्त करनी होगी और परिवहन क्षेत्र की क्रॉस सब्सिडी भी समाप्त करनी होगी जो मालवहन की लागत बढ़ाती है। वित्तीय क्षेत्र में बदलाव लाकर सस्ता और पर्याप्त ऋण सुनिश्चित करना होगा, खासतौर पर सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों के लिए। श्रम नीतियों को भी लचीला बनाना होगा लेकिन यह ध्यान रखते हुए कि श्रमिकों की सुरक्षा को क्षति न पहुंचे। आगे चलकर उत्पादकता लाभ तभी हासिल होंगे जब बड़ी आबादी बेहतर शिक्षित, पोषित और स्वस्थ होगी। मध्यम से दीर्घावधि में सुधार काफी हद तक कोविड के बाद की नीतिगत प्रतिक्रिया पर निर्भर है। फौरी बदलाव वृद्धि संभावना को सीमित करेंगे। इसके अलावा भारत को जल्दी ही एक नई मझोली राजकोषीय योजना की आवश्यकता होगी क्योंकि ज्यादा घाटा और कर्ज आर्थिक स्थिरता और वृद्धि के लिए जोखिम बढ़ा सकते हैं।