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नियामक और सरकार के निर्देश के बीच नियमन

Last Updated- May 30, 2023 | 11:15 PM IST
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हाल में बिजली मंत्रालय द्वारा केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग को जारी निर्देश नियामकीय स्वायत्तता या इस क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास दोनों के लिए ठीक नहीं है। बता रहे हैं के पी कृष्णन

बिजली मंत्रालय ने 8 मई को लिखे एक पत्र में केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) को एक असामान्य वैधानिक निर्देश दिया। पत्र में कहा गया है कि ‘नियमन तैयार करते समय सीईआरसी के लिए सभी संबंधित पक्षों के साथ सलाह-मशविरा करना आवश्यक है।

सरकार इन पक्षों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसे ध्यान में रखते हुए नियमन तैयार करने के चरण में सीईआरसी को बिजली मंत्रालय से अवश्य विचार-विमर्श करना चाहिए। इसका लाभ यह होगा कि सीईआरसी द्वारा तैयार नियमन सरकार द्वारा तैयार प्रावधान एवं सुधार के कदमों के साथ सरलता से तालमेल बैठा पाएंगे। इससे सरकार को धारा 107 के अंतर्गत बात में अलग से किसी तरह के निर्देश देने की आवश्यकता भी नहीं रहेगी।’

सरकार की तरफ से सीईआरसी को लिखा पत्र कहीं न कहीं एक टकराव का संकेत दे रहा है। यह टकराव बिजली मंत्रालय और सीईआरसी के बीच पेचीदा संबंधों को भी दर्शाता है। भारत में नियमन को लेकर अब तक का जो अनुभव रहा है उस आधार पर कहा जा सकता है कि नियामकों ने कई बार असामान्य व्यवहार किए हैं और सरकार ने भी उनके खिलाफ सामान्य एवं सूझ-बूझ भरे कदम नहीं उठाए हैं।

सरकार और इससे सीधे जुड़े लोगों को यह समझने की आवश्यकता है कि नियामक एक प्रतिष्ठित संस्था है और उनके लिए यह भी समझना आवश्यक है कि यह किसी मंत्रालय के अधीन काम नहीं करता है। मगर जिन नीतियों एवं प्रावधानों को आधार बना कर नियामकों की स्थापना की गई है उनसे नियामकों एवं मंत्रालयों के बीच टकराव को टाला नहीं जा सकता है। टकराव टालने की बात तो दूर, इसके लिए एक पूरी पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है।

विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 76 के अंतर्गत सीईआरसी का गठन किया गया है। इसी अधिनियम की धारा 79 के तहत सीईआरसी को सरकार को परामर्श देने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि सीईआरसी को पूरी जवाबदेही के साथ काम करना चाहिए और उसके क्रियाकलाप निर्धारित योजनाओं एवं नीतियों के अनुकूल होने चाहिए। धारा 94 एवं 95 के अंतर्गत सीईआरसी को नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय की तरह कार्य करने का अधिकार और ऐसी कार्यवाही को न्यायिक प्रक्रिया के समान दर्जा दिया गया है।

यह किसी संगठन के परिसर में प्रवेश कर जानकारियां ले सकता है और दस्तावेज जब्त कर सकता है। धारा 178 के तहत इसे कानून (नियमन) लिखने और इसी के अंतर्गत उप-धारा 3 के अंतर्गत इसे कानूनों के अनुसार चलने के अधिकार दिए गए हैं।

विद्युत अधिनियम में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) को दूसरे विषयों पर नियमन तैयार करने बिजली मंत्रालय को कानून बनाने के अधिकार दिए गए हैं। विधान तैयार करने की दूसरी प्रक्रियाओं की तरह ही ये अधिकार विद्युत अधिनियम के तहत तैयार इकाइयों के संचालन पर नियमन तैयार करने के लिए दिए गए हैं और इनकी जद में ज्यादातर प्रक्रिया एवं प्रक्रियात्मक पहलू आते हैं।

विद्युत क्षेत्र के नियमन के अधिकार काफी हद तक सीईआरसी एवं सीईए को दिए गए हैं। स्पष्ट है कि सीईआरसी सांविधिक नियामकीय प्राधिकरण (एसआरए) है।

एसआरए नियम तैयार करते हैं जो किसी उद्योग की कार्यशैली तय करते हैं। ये नियमों के उल्लंघन की जांच करते हैं और भारत में एक विशिष्ट व्यवस्था के तौर पर दंड (अधिकारों के विभाजन के सिद्धांत के विपरीत जाकर) देते हैं।

एसआरए दो कारणों से गठित किए जाते हैं। पहला, इनका गठन निजी निवेशकों को यह भरोसा दिलाने के लिए होता है कि नियम-कायदे सार्वजनिक क्षेत्र के लिए अनुचित तरीके से अवसर तैयार नहीं करेंगे।

विद्युत उत्पादन में लगा कोई निजी निवेशक चाहेगा कि एसआरए ऐसे नियम तैयार करे जो सभी विद्युत उत्पादन करने वाली कंपनियों को समान भाव से देखे। निजी निवेशक यह पसंद नहीं करता है कि ऐसे नियम बिजली मंत्रालय तैयार करे जिसके नियंत्रण में एनटीपीसी काम करती है।

दूसरा, चूंकि, लाइसेंस आवंटन, जांच, दंड एवं नियम तय करने की प्रक्रिया कुछ के लिए फायदेमंद हो सकती है तो कुछ को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए ये चीजें किसी निर्वाचित राजनीतिक व्यक्ति के नियंत्रण वाले मंत्रालय के पास नहीं रहे बल्कि ये अधिकार एक तटस्थ तकनीकी संगठन को दिए जाएं। जब ये सारे कार्य उचित ढंग से होते हैं तो निजी निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और वे उत्पादकता एवं निवेश बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।

भारत में प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) पहला ऐसा आधुनिक नियामक था। 1992 में इसने कंट्रोलर ऑफ कैपिटल इश्यूज की जगह ले ली जो वित्त मंत्रालय में संयुक्त सचिव के स्तर के अधिकारी हुआ करते थे। सेबी अधिनियम, 1992 के अंतर्गत नियामक के लिए तैयार नियमों की अधिसूचना जारी करने से पहले इन पर सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य था।

सभी दृष्टिकोण से उपयुक्त एसआरए तैयार करने की प्रक्रिया के तहत सेबी अधिनियम में 1995 में संशोधन कर यह शर्त समाप्त कर दी गई। सेबी के लिए इसके द्वारा तैयार नियमों पर अब सरकार की सहमति लेना आवश्यक नहीं है। सेबी को नियामकीय अधिकार मिलने से भारतीय इक्विटी बाजार में बड़े बदलाव आए हैं। मगर ये ऊंचे एवं अच्छे विचार कई तरह की कठिनाइयों में फंस गए हैं।

एसआरए उचित तरीके से काम -स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता, पारदर्शिता, कानून एवं उत्तरदायित्व का निर्वहन- करें इसके लिए जरूरी नियंत्रण एवं संतुलन तैयार करने में सावधानी से तैयार किए गए कानूनों की जरूरत होती है।

एसआरए के संबंध में भारत में वर्तमान कानून इस दृष्टिकोण से अपर्याप्त हैं। कानून तैयार करने में त्रुटियां रह जाने से एसआरए की कार्यशैली प्रभावित हुई है। इस वजह से कई अवसरों पर एसआरए के व्यवहार अनुचित रहे हैं तो मंत्रालयों का व्यवहार भी अटपटा रहा है।

भारत में नियामक गठित करने के प्रयोग तभी सफल रहे हैं जब दोनों तरफ (नियामक एवं मंत्रालय) अच्छे एवं सक्षम लोग मौजूद रहे हैं। अधिक से अधिक मंत्रालय नीति के प्रश्नों अपने विचार रख सकते हैं मगर कभी भी कामकाज में दखल देने की उनसे अपेक्षा नहीं की जाती है।

विद्युत मंत्रालय की तरफ से सीईआरसी को लिखे पत्र के शब्द दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह समानता के अवसर को प्रभावित कर रहा है और सरकार को ऐसी भूमिका दे रही है जिसका जिक्र कानून में है ही नहीं। कानून के अनुसार सीईआरसी को स्वयं नियम तैयार करने हैं और उन पर उसे सरकार से सहमति लेने की कोई जरूरत नहीं है। जब विधायिका को प्रावधानों में सुधार की जरूरत दिखी है तो उसने अपना मत रखा है।

उदाहरण के लिए बड़े बंदरगाहों के लिए शुल्क प्राधिकरण (टीएएमपी) या भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के साथ ऐसी बात नहीं है। इन संस्थानों में तैयार कानून पर सरकार की सहमति जरूरी है। मगर समस्या की जड़ें काफी गहरी हैं। अंततः जिस कानून के तहत सीईआरसी का गठन हुआ है उसी में खामियां हैं। इस कानून में कानून के अनुसार चलने वाली एजेंसी, जवाबदेही ढांचा एवं स्वतंत्रता, नियंत्रण एवं संतुलन की गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है।

नीति निर्धारकों से 1991-2015 के बीच नियामक तैयार करने में चूक हुई। इस अवधि में उनके पास इनसे जुड़ी बारीक बातों को समझने की समझ नहीं थी।

कालांतर में मजबूत नियामक तैयार करने समझ-बूझ विकसित हुई तो वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग की रिपोर्ट आई। सारे जवाब मसौदा भारतीय सुधार संहिता में हैं। इस संहिता में एक मजबूत नियामक तैयार करने के लिए 140 क्षेत्रों से संबंधित निष्पक्ष पहलुओं का जिक्र है।
(लेखक सीपीआर में मानद प्राध्यापक हैं)

First Published - May 30, 2023 | 11:15 PM IST

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