सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने 24 फरवरी को सावधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की चौथी सालाना रिपोर्ट जारी की। यह सर्वेक्षण जुलाई 2021 से जून 2022 के बीच कराया गया था। यह भारत का आधिकारिक श्रम सर्वेक्षण होता है। इसके नतीजे निजी स्तर पर कराए जाने वाले सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) से भिन्न होते हैं।
पीएलएफएस में दो परिभाषाओं- सामान्य स्थिति (यूजुअल स्टेटस या यूएस) और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (करेंट वीकली स्टेटस या सीडब्ल्यूएस) के आधार पर श्रम आंकड़ों का आकलन किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति पूरे साल में केवल 30 दिनों तक ‘सहायक’ गतिविधियों में संलग्न रहता है तो यूएस के अंतर्गत उसे कार्यरत व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
सीडब्ल्यूएस के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति सर्वेक्षण की तिथि से पूर्व की सात दिनों की अवधि में एक दिन कम से कम एक घंटा काम कर रहा था तो उसे कार्यरत व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इस तरह रोजगार की स्थिति को बेरोजगार या श्रम बल से बाहर जैसी स्थितियों की तुलना में वरीयता दी जाती है।
ऐसी उदार परिभाषाओं के आधार पर आंकड़ों का इस्तेमाल भारत में रोजगार से जुड़ी चुनौतियों की सही तस्वीर पेश नहीं कर पाता है। इन परिभाषाओं का उद्देश्य महज रोजगार के आंकड़ों को आधिकारिक उत्पादन (राष्ट्रीय खाते) आंकड़ों के अनुरूप दिखाना होता है। मगर इस तरह का प्रयास रोजगार की राह देख रहे चिंतित लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है और न ही यह नीति निर्धारकों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए जिन्हें भारत में रोजगार के समक्ष चुनौतियों का समाधान करना है।
अगर कोई व्यक्ति परिवार नियंत्रित खेतों में एक सप्ताह में एक घंटा काम करता है तो उसे पीएलएफएस के तहत कार्यरत माना जाएगा। मगर न तो वह व्यक्ति स्वयं को रोजगार में लगा मानता है और न ही नीति निर्धारकों को उसे कार्यरत समझना चाहिए। विस्तृत पीएलएफएस आंकड़े हमें ऐसे अपूर्ण रोजगार प्राप्त लोगों (बिना भुगतान वाले पारिवारिक कामगार) को छांटकर भारत में रोजगार की चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने में हमारी मदद करते हैं।
सीपीएचएस में किसी व्यक्ति को तभी कार्यरत माना जाता है जब वह व्यक्ति सर्वेक्षण की अवधि के दौरान दिन में अधिकांश समय काम करता है। यह कई गुना अधिक वास्तविक परिभाषा है। पीएलएफएस के अनुसार वर्ष 2021-22 में यूएस द्वारा परिभाषित बेरोजगारी दर 4.1 प्रतिशत थी। यह सीडब्ल्यूएस के अंतर्गत 6.6 प्रतिशत के साथ अधिक थी। सीएमआईई के सीपीएचएस के अनुसार जुलाई 2021 से जून 2022 की अवधि के दौरान यह दर 7.5 प्रतिशत रही थी।
ये तीनों विधियां इस बात की पुष्टि करती हैं कि 2020-21 की तुलना में 2021-22 में बेरोजगारी दर में कमी आई। यूएस के अनुसार यह दर 4.2 प्रतिशत से मामूली कम होकर 4.1 प्रतिशत रह गई। सीडब्ल्यूएस के अनुसार यह 7.5 प्रतिशत से कम होकर 6.6 प्रतिशत रह गई। सीपीएचएस के अनुसार बेरोजगारी दर 7.7 प्रतिशत से कम होकर 7.5 प्रतिशत रह गई।
चीजें संक्षिप्त रखने के लिए हम पीएलएफएस की सीडब्ल्यूएस विधि के साथ आगे बढ़ते हैं। पुरुष एवं महिलाओं के लिए बेरोजगारी दर में कमी आई है और शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में यह कमी दिखी है। शहरी क्षेत्र की महिलाओं के लिए बेरोजगारी दर सर्वाधिक और ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए इसमें सबसे कम कमी आई है। इसके बावजूद शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर लगातार सबसे ऊंची बनी हुई है और ग्रामीण महिलाओं के मामले में यह सबसे कम है।
2020-21 में शहरी महिलाओं के लिए बेरोजगारी दर 12.2 प्रतिशत और 2021-22 में 9.9 प्रतिशत थी। यानी यह बेरोजगारी दर में 2.3 प्रतिशत अंक की बड़ी गिरावट का संकेत है। इसी अवधि में तुलनात्मक रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए बेरोजगारी दर 4.8 प्रतिशत से कम होकर 4.3 प्रतिशत रह गई।
पीएलएफएस के अनुसार शहरी महिलाओं को अधिक प्रतिकूल श्रम बाजार की स्थितियों से निपटना पड़ता है। उनके मामले में श्रम बल भागीदारी दर (एलपीआर) 22.1 प्रतिशत के साथ सबसे कम है। शहरी महिलाओं में 9.9 प्रतिशत के साथ बेरोजगारी दर सबसे अधिक है। प्रत्येक पांच महिलाओं में एक से भी कम रोजगार में लगी हैं। शहरी महिलाओं में रोजगार दर (पीएलएफएस में इसे कामगार भागीदारी दर कहा जाता है) मात्र 19.9 प्रतिशत है।
सीपीएचएस में भी शहरी महिलाओं की ऐसी ही स्थिति का जिक्र है, मगर इसके नतीजे अधिक असहज स्थिति की ओर इशारा करते हैं। शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाएं थोड़ी ही बेहतर स्थिति में हैं। 2021-22 में ग्रामीण महिलाओं में रोजगार अनुपात 27.9 प्रतिशत था। ग्रामीण महिलाओं में बेरोजगारी दर मात्र 4.5 प्रतिशत थी मगर उनकी एलपीआर अब भी 29.2 प्रतिशत के साथ काफी कम है।
महिलाओं की एलपीआर के मामले में पीएलएफएस और सीपीएचएस के बीच पारिभाषित अंतर अधिक दिखता है। पीएलएफएस (27.2 प्रतिशता) में श्रम बल के रूप में वर्गीकृत महिलाएं सीपीएचएस (9.4 प्रतिशत) में वर्गीकृत महिलाओं की तुलना में तीन गुना हैं। हालांकि पुरुष के मामले में यह अंतर काफी कम यानी करीब 14 प्रतिशत है। पीएलएफएस के अनुसार पुरुष एलपीआर 75.9 प्रतिशत और सीपीएचएस के अनुसार 66.8 प्रतिशत थी।
रोजगार के संबंध में पीएलएफएस द्वारा तय कमतर परिभाषित सीमा पार करने वाली महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा सीपीएचएस द्वारा तय अपेक्षाकृत कड़ी शर्तों वाली सीमा पार नहीं कर पाता है। इसकी वजह उनके रोजगार की प्रकृति है। पीएलएफएस इसे ‘रोजगार में वृहद स्थिति’ (ब्रॉड स्टेटस इन एम्प्लॉयमेंट) कहता है।
पीएलएफएस की तालिका 38 में दर्शाया गया है कि कार्यरत महिलाओं में वास्तव में 60.6 प्रतिशत स्व-रोजगार प्राप्त थीं। इनमें आधी घरेलू उद्यम में सहायिका थीं। केवल 20 प्रतिशत महिलाएं ही वेतन पाने वाली नियमित कामगार थीं। महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक काम करती हैं। हालांकि घर की चहारदीवारी से बाहर श्रम बाजार में उनकी भागीदारी सीमित है।
(लेखक सीएमआई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं।)