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मुक्त व्यापार समझौतों के क्रियान्वयन की तैयारी

वर्ष 2010 से 2024 के बीच वैश्विक वस्त्र निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मामूली रूप से बढ़कर 5.2 फीसदी से 5.8 फीसदी हो गई है।

Last Updated- October 31, 2025 | 9:18 PM IST
India, UK trade ministers review progress of talks on proposed FTA

देश की व्यापार वार्ताओं मे खास औद्योगिक क्षेत्रों से संबंधित रणनीतियों का ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि उन क्षेत्रों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया जा सके। बता रही हैं अमिता बत्रा

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पूरी होने की ओर अग्रसर है। हालांकि, अमेरिका के साथ व्यापार समझौता (जब भी पूरा होगा) विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुरूप कानूनी रूप से बाध्यकारी मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) नहीं होगा। ऐसे में यह द्विपक्षीय व्यापार समझौता अनिश्चितता में घिरा रहेगा। इसलिए भारत के लिए निर्यात बाजार में विविधता लाने का लक्ष्य प्रमुख रहेगा और एफटीए इस लक्ष्य को हासिल करने में मददगार हो सकता है।

ऐसे परिदृश्य में यह बात उत्साह बढ़ाने वाली है कि इस वर्ष के आरंभ में ब्रिटेन के साथ व्यापक एफटीए पर हस्ताक्षर करने के बाद यूरोपीय संघ के साथ एफटीए तेजी से आगे बढ़ रहा है। बहरहाल यह बात ध्यान देने वाली है कि एफटीए के लाभ केवल तभी पूरी तरह उठाए जा सकते हैं जब उन्हें सभी साझेदार देशों द्वारा मंजूर किया गया हो और तरजीही बाजार पहुंच के प्रावधानों को पूरी तरह लागू किया गया हो।

इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि एफटीए के हस्ताक्षर और क्रियान्वयन के बीच मिलने वाली अंतरिम अवधि का इस्तेमाल व्यापार संभावनाओं को अधिकतम स्तर पर ले जाने के लिए किया जाए। वस्त्र एवं कपड़ा क्षेत्र को लेकर यह बात खासतौर पर प्रासंगिक है। यह क्षेत्र कृषि के बाद देश में रोजगार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है और अमेरिका द्वारा लगाए गए जवाबी शुल्क ने इस पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है। इतना ही नहीं, यही वह क्षेत्र है जहां हाल के वर्षों में भारत का निर्यात निराशाजनक रहा है। यह कमजोरी विश्व स्तर पर भी रही है और यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के लक्षित एफटीए बाजार में भी।

वर्ष 2010 से 2024 के बीच वैश्विक वस्त्र निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मामूली रूप से बढ़कर 5.2 फीसदी से 5.8 फीसदी हो गई है। हालांकि, कपड़ा क्षेत्र में जो वैश्विक वस्त्र निर्यात की प्रमुख श्रेणी है, भारत की हिस्सेदारी लगभग 3 फीसदी पर बनी हुई है और यह स्थिति सदी की शुरुआत से है। यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि विकासशील देशों ने, जो वैश्विक वस्त्र एवं कपड़ा निर्यात का 70फीसदी हिस्सा रखते हैं, पिछले कुछ वर्षों में अपनी हिस्सेदारी में वृद्धि दर्ज की है।

चीन एक दशक से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा कपड़ा एवं वस्त्र निर्यातक बना हुआ है। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे विकासशील देशों ने भी इस अवधि में सकारात्मक वृद्धि हासिल की है। दुनिया के कपड़ा निर्यात में वियतनाम की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में एक फीसदी से बढ़कर 2010 में 3 फीसदी पहुंच गई। वर्ष2024 में यह इससे दोगुना यानी 6 फीसदी हो गई। दुनिया के शीर्ष 10 कपड़ा एवं वस्त्र निर्यातकों में वियतनाम की निर्यात हिस्सेदारी में सबसे तेज वार्षिक वृद्धि देखी गई।

यूरोपीय संघ का एकीकृत बाजार अमेरिकी बाजार के करीब दोगुना है। वहां के दो प्रमुख कपड़ा एवं वस्त्र आयातकों जर्मनी और फ्रांस में भारत की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। इसकी तुलना में चीन इन दोनों देशों में शीर्ष पर है जबकि बांग्लादेश ने अपनी हिस्सेदारी 2010 से अब तक तीन गुना से अधिक कर ली है और वह दूसरा सबसे बड़ा निर्यात स्रोत है। बीते एक दशक में वियतनाम जर्मनी को कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात के मामले में शीर्ष 10 स्रोतों में उभरा है।

इसी प्रकार ब्रिटेन में जो कि वैश्विक कपड़ा एवं वस्त्र आयात बाजार में 4 फीसदी से कम का हिस्सेदार है, वहां स्रोत देश के रूप में भारत की हिस्सेदारी 2010-2022 के दौरान 7.8 फीसदी से कम होकर 6.3 फीसदी रह गई। इसी अवधि में बांग्लादेश ने अपनी हिस्सेदारी 5.8 फीसदी से बढ़ाकर 14.3 फीसदी पहुंचा दी। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश ने यूके के दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत को अपदस्थ कर दिया। वियतनाम भी समय के साथ ब्रिटेन के कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात साझेदारों में शीर्ष 10 में शामिल हो गया।

इसलिए यह समझना आवश्यक है कि भले ही एफटीए भारत को तरजीही बाजार पहुंच प्रदान करेंगे, लेकिन वियतनाम को पहले से बढ़त प्राप्त है क्योंकि उसके यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ एफटीए 2020 और 2021 से प्रभावी हैं। वास्तव में, वियतनाम से प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी क्योंकि यूरोपीय संघ और ब्रिटेन को उसके कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात पर शुल्क को शून्य करने की समय सीमा क्रमशः 2027 और 2028 तक पूरी तरह लागू हो जाएगी।

इसके अतिरिक्त, वैसे तो ब्रिटेन के एफटीए में मूल देश के कड़े मूल्य संवर्धन नियम (आरओओ) वियतनाम को कुछ हद तक नुकसान में डालते हैं क्योंकि उसके कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात में आयातित सामग्री की मात्रा अधिक है। फिर भी यह भारत के लिए संतुष्ट होने की वजह नहीं होनी चाहिए। व्यापक और प्रगतिशील प्रशांत पार साझेदारी (सीपीटीपीपी) के तहत अधिक लचीले आरओओ, जिसमें वियतनाम और ब्रिटेन दोनों सदस्य हैं, कुछ प्रतिशत गैर-स्रोत सामग्री वाले आयात को सदस्य देशों में तरजीही बाजार पहुंच की अनुमति देते हैं। इसके अतिरिक्त, इन उच्च मानकों वाले, गहन एफटीए में भागीदारी ने वियतनाम को अपने घरेलू विनिर्माण मानकों को अंतरराष्ट्रीय नियामक मानदंडों के अनुरूप ढालने में बढ़त दिलाई है। यह विशेष रूप से यूरोपीय संघ के सततता-प्रेरित बाजार में वियतनामी निर्यात को तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है।

एक अन्य क्षेत्र जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है वह है कपड़ा एवं वस्त्र की वैश्विक मूल्य शृंखला में बदलाव। अन्य विनिर्माण क्षेत्रों मसलन इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की तुलना में कपड़ा एवं वस्त्र मूल्य शृंखला में अपेक्षाकृत अधिक घरेलू मूल्यवर्धन (डीवीए) रहा है। इस क्षेत्र में भारत का डीवीए 83.2 फीसदी है जो अन्य शीर्ष निर्यातक चीन (89.1 फीसदी) के समतुल्य है। परंतु इसका अर्थ तुलनात्मक प्रतिस्पर्धा नहीं है।
चीन तकनीक-सहायता प्राप्त और सुव्यवस्थित घरेलू एकीकरण के मामले में कपड़े से लेकर परिधान तक की जटिल आपूर्ति श्रृंखला में अग्रणी है।

वास्तव में, अत्यधिक एकीकृत और बड़े पैमाने पर कुशल उत्पादन प्रणाली ने पकड़ा एवं वस्त्र कंपनियों के चीन से स्थानांतरण की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है। चीन के प्रमुख रिटेल चेन प्लेटफॉर्म जैसे झेन और टेमू उपभोक्ता प्राथमिकताओं पर आधारित अपने विशाल डेटाबेस का उपयोग करते हुए मांग का अनुमान लगाने के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा, चीनी उत्पादन इकाइयों के विशाल नेटवर्क के साथ बैक-एंड एकीकरण स्थापित कर लेने के कारण, ये प्लेटफाॅर्म कच्चे माल और उत्पादन क्षमता को मांग के अनुरूप समन्वित कर पाते हैं।

कुशल लॉजिस्टिक्स और प्रबंधन प्रणालियों को इस मांग-आपूर्ति समन्वय के साथ जोड़कर, ये ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम को अपने कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात में प्रतिस्पर्धी कीमतों पर गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए लीड टाइम को कम करने में सफल रहे हैं।

इसकी तुलना में भारत का कपड़ा और वस्त्र क्षेत्र विश्व में सबसे लंबी आपूर्ति श्रृंखलाओं में से एक है, जिसमें किसान से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक कई मध्यस्थ शामिल होते हैं। परिणामस्वरूप लीड टाइम बढ़ जाता है और लॉजिस्टिक में देरी होती है, जिससे भारत में कपड़ा एवं वस्त्र मूल्य श्रृंखला के उत्पादन में लागत अधिक आती है और कार्यक्षमता में कमी रहती है।

इसके अतिरिक्त, लंबे समय से चली आ रही नीतिगत बाधाएं और श्रम बाजार की कठोरताएं इस क्षेत्र को आवश्यक पैमाने पर तकनीकी उन्नयन और कृत्रिम रेशों व तकनीकी वस्त्रों की ओर वैश्विक मांग के अनुरूप ढलने से रोकती रही हैं। ऐसे में यह अहम है कि भारत तेज गति से चल रही एफटीए वार्ताओं के साथ-साथ तकनीकी उन्नयन और वैश्विक मानकों के अनुरूप होने के लिए क्षेत्रगत उत्पादन रणनीतियां तैयार करे।

(लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में प्रोफेसर हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं।)

आंकड़े: वर्ल्ड ट्रेड स्टैटिस्टिक्स, 2024, डब्ल्यूटीओ और वर्ल्ड इंटीग्रेटेड ट्रेड सॉल्यूशन, विश्व बैंक से।

First Published - October 31, 2025 | 9:12 PM IST

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