वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को वर्ष 2022-23 की आर्थिक समीक्षा संसद में पेश की। समीक्षा का सबसे अहम निष्कर्ष यह है कि महामारी के कारण मची उथलपुथल से निजात मिल चुकी है और भारतीय अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि में उच्च वृद्धि हासिल करने को तैयार है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने भी बाद में इस बात को विस्तार से प्रस्तुत किया।
हालांकि आर्थिक समीक्षा में मुख्य आर्थिक सलाहकार के नेतृत्व में वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों का नजरिया ही शामिल होता है और जरूरी नहीं कि उनकी बातें तथा अनुशंसाएं हमेशा केंद्रीय बजट में नजर ही आएं। बहरहाल, यह इस बात को लेकर एक व्यापक समझ उत्पन्न करता है कि सरकार उभरते राजनीतिक हालात को किस तरह देख रही है। इस वर्ष की समीक्षा ने जहां आर्थिक परिदृश्य को विस्तार से समझाया, वहीं साथ ही वृद्धि को लेकर उसके अनुमान भी आशावादी हैं।
समीक्षा का मानना है कि आगामी वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहेगी। आर्थिक और भूराजनीतिक हालात के आधार पर वास्तविक वृद्धि दर 6 से 6.8 फीसदी के बीच रह सकती है। वर्तमान आर्थिक और भूराजनीतिक हालात को देखें तो वास्तविक वृद्धि ऊपरी नहीं बल्कि निचले दायरे के आसपास रह सकती है। 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमापन आ सकता है क्योंकि कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मंदी का शिकार होने की आशंका है।
विकसित देशों में मौद्रिक और वित्तीय सख्ती जारी रह सकती है और ब्याज दरें भी कुछ समय तक ऊंची बनी रह सकती हैं। इसके अलावा भूराजनीतिक माहौल भी अनिश्चित बना रहेगा और यूक्रेन युद्ध भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। ये तमाम बातें बाह्य मोर्चे पर चालू खाते और पूंजी खाते को प्रभावित करेंगी और वृद्धि पर भी इनका असर होगा। समीक्षा में चालू खाते के जोखिम को उचित ही रेखांकित किया गया है।
समीक्षा में निजी क्षेत्र के पूंजी निर्माण को लेकर भी शुरुआती संकेत हैं। यह उत्साह बढ़ाने वाली बात है तथा वृद्धि के लिए मददगार होगी लेकिन व्यापक वृहद आर्थिक अनिश्चितता शायद कंपनियों को इस बात के लिए प्रेरित न करे कि वे बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण शुरू करें। यह देखना दिलचस्प होगा कि बजट में नॉमिनल आर्थिक वृद्धि का क्या अनुमान पेश किया जाता है।
समीक्षा में यह अनुमान भी जताया गया है कि 2014 के बाद से लागू किए गए सुधारों की बदौलत देश की संभावित वृद्धि 7-8 फीसदी तक पहुंच सकती है। यहां यह दलील दी गई है कि सुधारों की बदौलत उच्च वृद्धि इसलिए नहीं हासिल हो सकी कि हमें एक के बाद एक झटके लगते रहे।
कॉर्पोरेट जगत और बैंकिंग क्षेत्र दोनों की बैलेंस शीट वित्तीय संकट के बाद तनाव में रही और इस बात ने भी वृद्धि को प्रभावित किया। समय के साथ बैलेंस शीट में सुधार हुआ तो 2018 में इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस ऐंड लीजिंग सर्विसेज लिमिटेड का पतन हो गया। उसके पश्चात कुछ अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की समस्या ने वित्तीय क्षेत्र को प्रभावित किया। 2020 में अर्थव्यवस्था पर महामारी ने असर डाला जिसके चलते उसमें तेज गिरावट आई।
अब जबकि अर्थव्यवस्था को महामारी के झटके से मुक्त माना जा रहा है तो बीते वर्षों के सुधारों के सकारात्मक परिणामों के चलते वृद्धि दर में इजाफा देखने को मिल सकता है। यह कहा जा सकता है कि समय के साथ सुधार अर्थव्यवस्था के लिए मददगार होंगे लेकिन उनमें से कुछ मसलन वस्तु एवं सेवा कर तथा ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता आदि को अभी और बेहतर बनाना है। उभरते भूराजनीतिक हालात और घरेलू सार्वजनिक वित्त की स्थिति भी वृद्धि को प्रभावित करेगी। निरंतर 7-8 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करने के लिए और अधिक नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी। ऐसे में व्यापार भी एक क्षेत्र है जिस पर ध्यान दिया जा सकता है।