इंडिया जो कि भारत है, 2047 तक एक विकसित देश बन पाएगा या नहीं यह केवल इस बात पर निर्भर नहीं है कि बेंगलूरु, चेन्नई, मुंबई और हैदराबाद जैसे देश के सबसे विकसित शहरों में या गुजरात अथवा दिल्ली में क्या होता है।
यह सही है कि ये शहर और राज्य देश को आगे ले जाने के लिए अहम हैं लेकिन इसके साथ ही यह बात भी महत्त्वपूर्ण होगी कि उत्तर प्रदेश और बिहार जो देश के सबसे गरीब राज्य हैं तथा धीमी विकास दर वाला प्रदेश यानी पश्चिम बंगाल मिलकर देश की आबादी का एक तिहाई यानी करीब 46 करोड़ हैं, क्या ये तीनों प्रांत ऐसे इंजन की भूमिका निभा सकते हैं जो अर्थव्यवस्था को आगे ले जा सके? यह विडंबना ही है कि भारत का भविष्य काफी हद तक गंगा के मैदानी इलाकों पर निर्भर है। यह वह इलाका है जहां महान साम्राज्य और शिक्षा केंद्र पनपे लेकिन अब यह क्षेत्र देश के बाकी हिस्सों से पिछड़ गया है।
बिहार की औसत आय देश की औसत आय से करीब एक तिहाई (32 फीसदी) है जबकि उत्तर प्रदेश में यह आधी यानी 49 फीसदी है। वित्त वर्ष 2023 में दोनों प्रदेशों की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि राष्ट्रीय औसत से अधिक रही। बिहार में यह 10.7 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 8.4 फीसदी थी। परंतु 2012 से 2022 के दशक और उससे पहले उनकी वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कम थी।
वे लगातार पीछे छूट रहे थे। इनमें पश्चिम बंगाल सर्वाधिक संभावनाशील राज्य है लेकिन उसका प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा और 2012 से 2022 के बीच उसने केवल 3.9 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल की। बहरहाल, वित्त वर्ष 23 में हालात सुधरे और उसने 8.6 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल की।
इसके विपरीत अन्य गरीब राज्यों मसलन मध्य प्रदेश, ओडिशा और असम ने 2012-2022 के बीच राष्ट्रीय औसत की तुलना में तेजी से वृद्धि हासिल की और वित्त वर्ष 23 में यह तेजी बरकरार रही। बेहतर संचालन, बेहतर कार्यक्रम और अधोसंरचना में सुधार ने इन राज्यों का प्रदर्शन बेहतर बनाया।
विकसित भारत की राह गंगा के मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर जाती है। अगर ये राज्य वित्त वर्ष 23 का अपना प्रदर्शन लगातार बरकरार रखें तो भारत विकसित देश बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगा। उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों राज्यों में सरकारों ने बेहतर शासन और अधोसंरचना का वादा किया था लेकिन अगले पांच वर्ष यह दिखा देंगे कि ये वादे निरंतर बेहतर आर्थिक प्रदर्शन में तब्दील हुए या नहीं।
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उत्तर प्रदेश के लिए लक्ष्य यह है कि जब देश का जीडीपी 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचे तब तक राज्य की अर्थव्यवस्था का आकार एक लाख करोड़ डॉलर हो जाए। इसके लिए अर्थव्यवस्था का आकार तीन गुना करना होगा। यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है लेकिन 2030 तक इसे हासिल किया जा सकता है। बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों को अपनी औसत जीडीपी वृद्धि दर को 2012-22 के 5-5.5 फीसदी से बढ़ाकर अगले 25 वर्षों में 8-8.5 फीसदी करना होगा।
पंजाब और हरियाणा अनाज से दूर उच्च मूल्य वाली फसलों का रुख कर रहे हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश की तर्ज पर उत्तर प्रदेश और बिहार को दूसरी हरित क्रांति का लाभ मिल सकता है। गंगा के जरिये बेहतर नदी परिवहन, पर्यटन में निवेश में इजाफा करके गंगा के मैदानी इलाकों की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को उभारना भी दोनों प्रदेशों के लिए रोजगार बढ़ाने वाला साबित होगा। अगर गंगा यूरोप की राइन या डेन्यूब नदी की भारतीय समकक्ष बन सकी तो इन राज्यों का संपर्क तो बेहतर होगा ही बल्कि कोलकाता की किस्मत बदलने में भी मदद मिलेगी।
इन राज्यों का जननांकिकीय लाभांश भी इनके पक्ष में जाता है। दोनों राज्यों में श्रम योग्य आयु वाली आबादी कम से कम एक दशक तक और बढ़ती रहेगी जबकि समृद्ध राज्यों खासकर दक्षिण के राज्यों में इसमें कमी आएगी क्योंकि उनकी जन्म दर में कमी आ रही है। इन देशों की जन्म दर यूरोप के विकसित देशों के स्तर पर गिर गई है। अन्य स्थानों पर बेहतर संभावनाओं को देखते हुए कुछ लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से बाहर भी जाएंगे। महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और दक्षिण में यहां के प्रवासी श्रमिक जाते हैं।
बहरहाल बड़ी तादाद में लोगों को अपने ही राज्य में रोजगार की जरूरत होगी और वह भी खेती के अलावा अन्य रोजगारों में। ऐसे में शिक्षा और कौशल उन्नयन पर ध्यान देना अहम होगा। इसके अलावा अपराधों पर नियंत्रण करना होगा तथा अधोसंरचना विकास पर जोर देना होगा। मौजूदा बुनियादी ढांचे के तहत एक्सप्रेसवे पर ध्यान देना अहम है लेकिन ग्रामीण सड़कों और ग्रामीण विद्युतीकरण को भी प्राथमिकता देने की जरूरत है। सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं भी इन राज्यों के लिए बेहतर आय का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।
पश्चिम बंगाल को अपनी गिरावट थामने की आवश्यकता है। सन 1960 के दशक के अंत तक उसकी प्रति व्यक्ति आय महाराष्ट्र से अधिक थी लेकिन अब वह ओडिशा और छत्तीसगढ़ से भी नीचे आ गया है। उसके फलते फूलते उद्योग और वाणिज्य में गिरावट आई है।
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यह लंबे समय तक देश का बौद्धिक गढ़ रहा और बंगाली अभिमान का विषय भी रहा लेकिन वहां भी अन्य राज्य आगे निकल गए। एक के बाद एक सरकारों ने वृद्धि विरोधी नीतियों का अनुसरण किया जिससे निवेश राज्य से दूर जाता रहा। पश्चिम बंगाल को दोबारा कारोबार के अनुकूल राज्य के रूप में पेश करने के लिए काफी कोशिशों और नीतिगत निरंतरता की आवश्यकता होगी।
बंगाल का जो हिस्सा अब बांग्लादेश है वह भी गंगा के मैदानी इलाके में आता है और उसने प्रगति की राह दिखाई है। बांग्लादेश ने कपड़ा एवं वस्त्र निर्माण तथा निर्यात की मदद से प्रगति की और उसकी जीवन संभाव्यता तथा साक्षरता पश्चिम बंगाल से बेहतर है।
जैसे पंजाब के विभाजन के बाद हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन अच्छा रहा उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश और बिहार का विभाजन करके कई छोटे राज्य बनाए जा सकते हैं ताकि शासन व्यवस्था बेहतर की जा सके। यह आसान नहीं है लेकिन एक ऐसा विकल्प है जिस पर आगामी जनगणना के बाद विचार किया जाना चाहिए। उस जनगणना में यकीनन उत्तर प्रदेश और बिहार की आबादी में इजाफा नजर आएगा। ऐसा करके इस अवधारणा को बदला जा सकता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार देश के राजनीतिक गणित पर हावी हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे गंगा के मैदानी राज्यों में जो होगा वह यह तय करेगा कि भारत विकसित देश बनेगा या मध्य आय के जाल में उलझा रहेगा जहां क्षेत्रीय असमानताएं बड़े पैमाने पर मौजूद हैं और सामाजिक तथा राजनीतिक तनाव हावी हो रहे हैं। भारत का भविष्य इस बात पर निर्भर है कि उसकी पवित्रतम नदी गंगा के आसपास क्या होता है।