RBI and Policy Rate: बैंकिंग और वित्त पर नव वर्ष की शुरुआत में प्रकाशित होने वाले कॉलम की थीम कुछ इस तरह से होती है- नए साल का रुझान। लेकिन हम इससे पहले पिछले वर्ष का थोड़ा जायजा ले लेते हैं।
वर्ष की शुरुआत में 10 वर्षीय बॉन्ड पर प्राप्तियां 7.33 प्रतिशत थीं जो 8 मार्च को 7.445 प्रतिशत की ऊंचाई पर और 7 मई को 6.945 फीसदी सबसे निचले स्तर पर पहुंचीं। साल के अंत में ये 7.175 पर बंद हुई। बैंकिंग क्षेत्र की जमाओं का पोर्टफोलियो 1 जनवरी से 15 दिसंबर के दौरान 14 प्रतिशत बढ़कर 197.92 लाख करोड़ रुपये हो गया जबकि ऋण में 20.2 फीसदी का इजाफा हुआ और यह 158.05 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 22 दिसंबर को बढ़कर 620.44 अरब डॉलर पर पहुंच गया जो वर्ष की शुरुआत में 562.85 अरब डालर था। रुपया भी साल के अंत में डॉलर के मुकाबले 83.21 पर बंद हुआ जो वर्ष की शुरुआत में 82.66 पर था जबकि इसने 10 नवंबर को 83.50 को निचला स्तर बनाया और सबसे मजबूत यह 23 जनवरी को 80.885 पर था।
आखिरकार खुदरा मुद्रस्फीति, जो जनवरी में 6.52 प्रतिशत थी, नवंबर में गिरकर 5.33 फीसदी रह गई। 11 महीने की इस अवधि में मुद्रास्फीति ने मई में 4.31 प्रतिशत का निचला स्तर देखा तो जुलाई में 7.44 प्रतिशत का ऊंचा स्तर भी।
जरा आगे की ओर देखते हैं।
हम दावा कर सकते हैं कि भारत अब वैश्विक घटनाओं से प्रभावित नहीं होता और इसकी भी परवाह नहीं होती कि अमेरिका में फेडरल रिजर्व क्या कर रहा है। लेकिन तथ्य फिर भी यह है कि रिजर्व बैंक वर्ष 2024 में क्या करेगा, यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि फेडरल क्या करता है। संयोग से दोनों देशों में इस साल चुनाव होने हैं। भारत में पहले और अमेरिका में बाद में।
महंगाई के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास से बेहतर इसे कोई नहीं जानता। वर्ष 2023 के मध्य में ऐसा लग रहा था कि भारत के केंद्रीय बैंक ने चुपके से मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4 फीसदी से बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर दिया है जो उसके दायरे का ऊपरी हिस्सा है (लक्ष्य है चार प्रतिशत और इससे 2 फीसदी कम या ज्यादा)।
लेकिन पिछले कुछ महीनो में दास हमें हर जगह यह याद दिलाते रहे कि लक्ष्य 4 फीसदी ही है और जब तक यह हासिल नहीं हो जाता, वो इसे छोड़ेंगे नहीं। लिहाजा एक बात पक्की है। नीति दरों में कटौती की उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं होगी। इस वित्तीय वर्ष के लिए मार्च तक खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 5.4 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 25 की मार्च और जून तिमाही के लिए यह 5.02 फीसदी है। उसके बाद सितंबर तिमाही में इसके चार प्रतिशत तक गिरने और दिसंबर में बढ़कर 4.7 फीसदी हो जाने का अनुमान है।
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पिछली बार हमने 4 फीसदी की मुद्रास्फीति कब देखी थी? सितंबर 2019 में यह 3.99 प्रतिशत थी। असल में अगस्त 2018 और सितंबर 2019 के बीच के 11 महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से भी कम थी। उसके बाद यह 4 फीसदी के करीब रही और जनवरी 2021 में एक बार 4.06 प्रतिशत रही। दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले 4 साल में खुदरा मुद्रास्फीति लक्ष्य से लगातार ऊपर बनी हुई है। यह न केवल आम लोगों के धन का मूल्य कम कर रही है बल्कि उनकी उपभोग क्षमता भी घटा रही है। अगर महंगाई काबू नहीं आई तो इससे वृद्धि पर असर पड़ेगाI
क्योंकि आरबीआई दरों में टिकाऊ कटौती से पहले मुद्रास्फीति के भूत को चार फ़ीसदी की बोतल में बंद करना चाहता है। लिहाजा दर कटौती के लिए इंतजार करना पड़ेगा। इस साल यह कटौती होनी चाहिए लेकिन यह वृद्धि और मुद्रास्फीति की चाल और अमेरिका में फेड के कदमों पर निर्भर करेगा।
क्या फेडरल रिजर्व गर्मियों से पहले दरों में कटौती शुरू करेगा? बहुत संभव है क्योंकि 2020 के बाद पहली बार नवंबर में कीमतों में गिरावट आई और यह 2.6 फीसदी रही जो फेडरल के 2 फीसदी के लक्ष्य से बहुत दूर नहीं है। यह सच है कि फेड दरों में कटौती की हड़बड़ी नहीं करेगा लेकिन वह कभी भी दरों में तीन कटौती यानी कुल 0.75 फीसदी की कमी कर सकता है। फेड की पहली दर कटौती के बाद हम आरबीआई के नीतिगत रुख में बदलाव देख सकते हैं और इसके बाद की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दर कटौती हो सकती है।
अगर वाकई फेड दरों में तीन कटौती करता है तो आरबीआई इस साल कितनी कटौती करेगा? यह निर्भर करेगा मुद्रास्फीति के रुझान पर और वास्तविक ब्याज दरों पर। आखिरी दर वृद्धि फरवरी 2023 में 25 आधार अंक की हुई थी जो मई 2022 में दर वृद्धि का सिलसिला शुरू होने के बाद सबसे कम थी। इन 10 महीनों में नीतिगत दरें 4 फीसदी से बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो गईं। इससे पहले फरवरी 2019 में नीति दरों ने 6.5 प्रतिशत का स्तर छुआ था। तब खुदरा मुद्रास्फीति 2.57 प्रतिशत थी। दरों में इतनी जल्दी कटौती की उम्मीद क्यों नहीं करनी चाहिए? यह समझने के लिए हमको वास्तविक दरों या तटस्थ दरों को देखना चाहिए।
वास्तविक दर वह है जो किसी बचतकर्ता या ऋणदाता को मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद प्राप्त होती है। इस दर को तय करने का कोई बेंचमार्क नहीं है। यह नीति दर भी हो सकती है ( रीपो दर जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को धन उधार देता है जो अभी 6.50 प्रतिशत है) या एक साल के ट्रेजरी बिल (जो करीब 7.6 प्रतिशत है)। वित्त वर्ष 2024 के लिए आरबीआई का खुदरा मुद्रास्फीति अनुमान 5.4 फीसदी है। अगर केंद्रीय बैंक वास्तविक ब्याज दरों को 1.25 से 5 प्रतिशत के बीच रखना चाहता है तो दरों में कटौती करके उन्हें 6 प्रतिशत पर लाया जा सकता है लेकिन तभी जब मुद्रास्फीति महीनों तक 4.5 से 4.75 प्रतिशत के बीच बनी रहे।
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बैंक जमा राशियां जुटाने के लिए लगातार जूझते रहेंगे क्योंकि बचतकर्ता निवेश के अन्य रास्ते तलाश रहे हैं। जब तक मुद्रास्फीति नियंत्रित नहीं होगी, जमा दरें ऊंची बनी रहेंगी। इससे बैंकों की ब्याज आय पर असर होगा क्योंकि कम लागत की चालू और बचत खाता राशियों में लगातार गिरावट आएगी।
इससे कुछ बैंकों की कर्ज देने की क्षमता भी प्रभावित होगी। ये बैंक अभी अपनी पूंजी से ऊंची ऋण वृद्धि को मदद दे रहे हैं क्योंकि उनके जमा पोर्टफोलियो में उतनी तेजी से बढ़ोतरी नहीं हुई है जितनी ऋण वृद्धि में हुई है। ऐसा भी वक्त आ सकता है जब उनके पास कर्ज की रफ्तार धीमी करने के सिवा कोई विकल्प नहीं होगा।
बैंकिंग उद्योग के परिसंपत्ति खातों की गुणवत्ता पिछले एक दशक में इस समय सबसे अच्छी है। इस स्तर पर यह कब तक बनी रहेगी? गैर जमानती निजी ऋण क्षेत्र में कुछ चूक हो रही है हालांकिअभी यह बहुत चौंकाने वाले तरीके से सामने नहीं आई है। कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां जो छोटी अवधि के गैर जमानती उपभोक्ता ऋण क्षेत्र में हैं, वे संकट में फंस सकती हैं। रिजर्व बैंक की उन पर काक दृष्टि है। डिजिटल धोखाधड़ी और फिशिंग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यहां तक कि फिक्स्ड डिपाजिट को भी हैक कर लिया गया है। यह क्षेत्र चर्चा में बना रहेगा और कई लोन ऐप नियामक की जांच नजर में रहेंगेI
अंत में, रिजर्व बैंक का बैंकों में संचालन पर जोर बना रहेगा। इसके साथ-साथ इस साल ग्राहक देखभाल भी उसके केंद्र में आ सकती है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)