मुद्रास्फीति की दर में अनुमान से अधिक नरमी आने के बाद अमेरिकी बाजार प्रतिभागियों में यह उम्मीद बढ़ गई थी कि फेडरल रिजर्व जल्दी ही दरों में इजाफा करने का चक्र समाप्त कर देगा। अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर अक्टूबर के 7.7 फीसदी से कम होकर नवंबर में 7.1 फीसदी रह गई। बहरहाल, बाजार को अनुमानों को समायोजित करना होगा।
फेडरल रिजर्व ने बुधवार को फेडरल फंड दरों में 50 आधार अंकों का इजाफा किया जो 75 आधार अंकों की पिछली बढ़ोतरी से कम लेकिन अपेक्षित राह पर ही थी। फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने नीति पेश करने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक रुकने की किसी जल्दबाजी में नहीं है। उन्होंने कहा कि फेड को यह मानने के लिए और प्रमाणों की आवश्यकता है कि मुद्रास्फीति में स्थायी गिरावट आएगी।
यह बात ध्यान देने लायक है कि मुद्रास्फीति की दर अभी भी फेड के मध्यम अवधि के दो फीसदी के लक्ष्य से काफी ऊंची है। पॉवेल ने यह बात भी रेखांकित की कि फेड ने काफी हद तक लक्ष्य हासिल कर लिया है लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना है। फेड द्वारा जारी किए गए ताजा आर्थिक अनुमान के अनुसार फेडरल फंड्स की दरें सितंबर के 4.6 फीसदी के अनुमान की तुलना में 5.1 फीसदी तक ऊपर जाएंगी।
इसे अलग तरह से देखें तो अमेरिका में नीतिगत ब्याज दरें अभी भी 75 आधार अंक तक ऊपर जा सकती हैं। फेड के नीति निर्माताओं का अनुमान है कि दरें 2024 में कम होंगी। ऐसे में 2023 में दरों में कमी की कुछ बाजारों की अपेक्षा शायद पूरी न हो। फेड की ओर से दरों को निरंतर सख्त बनाना और बैलेंस शीट के आकार में कमी मौद्रिक हालात को और सख्त बनाएगी। अन्य बड़े केंद्रीय बैंक मसलन बैंक ऑफ इंगलैंड और यूरोपियन केंद्रीय बैंक दरों को लेकर जो कदम उठाएंगे वे वैश्विक वित्तीय हालात की सख्ती में योगदान देंगे।
नीति निर्माण अब एक नए दौर में पहुंच गया है जहां केंद्रीय बैंक दरों में धीमी गति से इजाफा करेंगे लेकिन वे उन्हें तब तक ऊंचे स्तर पर रख सकते हैं जब तक कि उच्च मुद्रास्फीति पर नियंत्रण नहीं हासिल कर लिया जाता। ऊंची ब्याज दर तथा सख्त वित्तीय हालात वृद्धि को प्रभावित करेंगे और इसके परिणामस्वरूप विकसित देशों का एक बड़ा हिस्सा मंदी की चपेट में आ जाएगा। कमजोर वैश्विक मांग से मुद्रास्फीति कमजोर होगी, हालांकि अभी यह देखा जाना है कि लक्ष्य के करीब आने में कितना समय लगता है।
काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका में मुद्रास्फीति के हालात कौन सा रुख लेते हैं क्योंकि अन्य केंद्रीय बैंकों के कदम फेड के रुख से प्रभावित होंगे। फिलहाल जो हालात हैं उनके मुताबिक अमेरिकी श्रम बाजार बहुत मजबूत है और वेतन भत्तों में वृद्धि मुद्रास्फीति को कुछ और समय तक ऊंचे स्तर पर रख सकती है।
भारत में भी खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर में 11 महीनों के निचले स्तर पर आ गई और यह रिजर्व बैंक के तय दायरे की ऊपरी सीमा के भी नीचे रही। भारतीय केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में गत सप्ताह 35 आधार अंकों की वृद्धि की थी जिससे मौजूदा चक्र में ही दरों में कुल इजाफा 225 आधार अंक हो गया।
मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन अभी भी यह 4 फीसदी के स्तर से काफी ऊपर है। ऐसा मोटे तौर पर सब्जियों की कीमत के कारण हुआ और मूल मुद्रास्फीति अभी भी चिंता की वजह है। वैश्विक नीतिगत परिदृश्य को देखें तो रिजर्व बैंक को अभी मुद्रा बाजार में अस्थिरता से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। भारतीय नीति निर्माताओं के लिए बड़ी चुनौती यह होगी कि अगली कुछ तिमाहियों में वृद्धि को गति कैसे दी जाए।