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जरूरी सुधार

Last Updated- December 11, 2022 | 7:17 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आखिरकार सामने आ रही आर्थिक हकीकत के साथ संतुलन कायम करने का निर्णय लिया है। मौद्रिक नीति समिति ने अपनी नियमित बैठकों से इतर एक बैठक में बुधवार को फैसला किया कि नीतिगत रीपो दर में तत्काल प्रभाव से 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की जाएगी। उसने स्थायी जमा सुविधा और सीमांत स्थायी सुविधा दरों को भी इसी अनुरूप समायोजित किया। आरबीआई ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 50 आधार अंकों का इजाफा किया जो 21 मई से प्रभावी होगा। अब यह दर 4.5 प्रतिशत हो गई है। दरें तय करने वाली इस समिति ने अप्रैल की बैठक में नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रहने दिया था, हालांकि आरबीआई ने नकदी समायोजन सुविधा को सामान्य करने के लिए स्थायी जमा सुविधा पेश कर दी थी। एक अनियमित बैठक में नीतिगत कदम उठाने की बुनियादी वजह है मुद्रास्फीति का असहज करने वाले स्तर तक पहुंचना।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर मार्च में बढ़कर 6.95 प्रतिशत हो गई। अप्रैल के आंकड़े अगले सप्ताह जारी किए जाएंगे लेकिन अनुमान है कि ये और अधिक होंगे। ऐसी कई वजह हैं जिनके चलते मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती है। कच्चा तेल तथा अन्य जिंसों की कीमतें ऊंची हैं। इससे मुद्रास्फीति और अधिक हो सकती है। वैश्विक खाद्य कीमतों में भी अहम इजाफा हुआ है जिसके पीछे आंशिक रूप से रूस-यूक्रेन सैन्य संघर्ष भी एक वजह है। खाद्यान्न के मामले में भारत अपेक्षाकृत सहज स्तर पर है लेकिन वैश्विक स्तर पर ऊंची खाद्यान्न कीमतें जरूर असर डालेंगी। उदाहरण के लिए खाद्य तेलों की ऊंची कीमतें, महत्त्वपूर्ण चुनौती होंगी। इसके अलावा दुनिया के कुछ हिस्सों, खासकर चीन में कोविड के मामलों में इजाफा होने के कारण आपूर्ति शृंखला की चुनौतियां भी कीमतों को प्रभावित कर रही हैं। इस संदर्भ में ही आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में उचित ही कहा है, ‘इस बात का जोखिम है कि अगर मुद्रास्फीति लंबे समय तक इस ऊंचे स्तर पर बनी रहती है तो, यह मुद्रास्फीति से जुड़ी अपेक्षाओं को बेपटरी कर सकता है जो अपने आप में वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।’
हालांकि तथ्य यह है कि ये सारी बातें अप्रैल में समिति की बैठक के समय ही स्पष्ट थीं। सवाल यह है कि उस वक्त समिति को किस बात ने रोका। वास्तव में केंद्रीय बैंक समायोजन हटाने में पीछे रह गया। यह सही है कि यूक्रेन युद्ध के कारण मूल्य जोखिम बढ़ा है लेकिन आरबीआई मुद्रास्फीति को काफी समय से कम करके आंक रहा था। बीते 24 महीनों की औसत मुद्रास्फीति की दर 5.8 फीसदी रही। अप्रैल में यह अनुमान लगाया गया था कि मुद्रास्फीति की दर लगातार तीन तिमाहियों में तय दायरे से ऊंची रह सकती है जो कानून के मुताबिक मुद्रास्फीति संबंधी लक्ष्य हासिल करने में विफलता मानी जाएगी। ऐसे में नीतिगत कदम को गलती में सुधार के रूप में देखा जा सकता है। व्यवस्था में नकदी की स्थिति बहुत बढ़ी हुई है और सीआरआर में इजाफा इसे आंशिक रूप से ही हल करेगा। यद्यपि नीतिगत सामान्यीकरण अपेक्षाकृत तेज गति से होगा।
यदि आरबीआई ने मुद्रास्फीति के दबाव पर निरंतर ध्यान दिया होता और वृद्धि के समर्थन और मूल्य स्थिरता में जरूरी संतुलन कायम करने पर ध्यान दिया होता तो उसे यूं आपातकालीन ढंग से मूल्य में इजाफा न करना पड़ता। विकसित देशों के केंद्रीय बैंक भी नीतिगत समायोजन को शिथिल कर सकते हैं। इस संदर्भ में भी भारत लंबे समय तक अलग-थलग नहीं रह सकता था क्योंकि ऐसा करने पर पूंजी प्रवाह और मुद्रा बाजार का कामकाज प्रभावित होगा। ऐसे में नीतिगत कदम का स्वागत किया जाना चाहिए, हालांकि अनियमित बैठक और आपातकालीन ढंग से दरों में इजाफा करने से बचा जा सकता था। यह व्यवस्था की दृष्टि से बेहतर नहीं दिखता।

First Published - May 5, 2022 | 1:01 AM IST

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