Mobile PLI: मोबाइल फोन क्षेत्र को उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अधीन उल्लेखनीय वृद्धि हासिल हुई है और यहां बनने वाले प्रत्येक चार फोनों में से औसतन एक फोन का निर्यात कर दिया जाता है। इनका निर्यात मूल्य भी 2022 के 7.2 अरब डॉलर से लगभग दोगुना होकर 2023 में करीब 14 अरब डॉलर हो गया।
इस वृद्धि को मजबूत करने के लिए सरकार ने हाल ही में चुनिंदा मोबाइल फोन घटकों पर आयात शुल्क 15 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया। यह घोषणा बजट से ठीक पहले की गई। इस संदर्भ में हम टैरिफ में कटौती के प्रभाव का आकलन करने के साथ-साथ देश के मोबाइल फोन उद्योग की मौजूदा हालत, अतीत की चुनौतियों और संभावित वृद्धि परिदृश्य का भी आकलन करेंगे।
अनुमान है कि दरों में हालिया कटौती के बाद घरेलू स्तर पर बिकने वाले मोबाइल फोनों की कीमतों में कमी आएगी लेकिन इससे निर्यात में सुधार नहीं होगा क्योंकि बड़ी कंपनियां विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में स्थित हैं जहां निर्यात के लिए उत्पाद बनाने पर हर प्रकार का आयात शुल्क मुक्त है। उदाहरण के लिए ऐपल भारत में अपने साझेदारों फॉक्सकॉन और विस्ट्रॉन की मदद से मोबाइल फोन बनाती है और ये दोनों ही एसईजेड में स्थित हैं।
दरों में कटौती में कई सस्ते कलपुर्जे मसलन बैटरी कवर और लेंस आदि शामिल हैं। इनके लिए एक चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम पहले से लागू है जहां स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 15 फीसदी की शुल्क दर लागू है। देश में मोबाइल फोन क्षेत्र की हालिया वृद्धि का श्रेय सरकार के तीन निर्णयों को दिया जा सकता है:
(1) मोबाइल फोन पर 20 फीसदी का आयात शुल्क ताकि तैयार फोन के आयात को हतोत्साहित किया जा सके।
(2) कलपुर्जों पर 0-10 फीसदी का कम आयात शुल्क ताकि स्थानीय उत्पादन को मदद पहुंचाई जा सके।
(3) चरणबद्ध ढंग से बढ़ते उत्पादन पर 4-6 फीसदी का पीएलआई प्रोत्साहन। भारत का बड़ा और बढ़ता बाजार अतिरिक्त आकर्षण है।
कर प्रोत्साहन और बड़े बाजार ने बड़ी कंपनियों को आकर्षित किया। ताजा आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि उनके निवेश और उत्पादन के बीच कमजोर संबंध है। दिसंबर 2023 तक मोबाइल फोन निर्माताओं ने 7,400 करोड़ रुपये का निवेश करके 4.12 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल फोन बनाए। यानी हर लगाए गए रुपये से 55 रुपये का उत्पादन हुआ। पीएलआई योजना के अंत तक यह आंकड़ा 100 रुपये तक पहुंच सकता है। कुछ मामलों में पीएलआई प्रोत्साहन कुल निवेश से आगे निकल सकता है। कम निवेश के साथ दिक्कत यह है कि इसमें केवल कलपुर्जों को ऊपरी तौर पर जोड़ा जाता है। इससे भी बुरी बात यह है कि कई उत्पादक एक बार प्रोत्साहन समाप्त होने के बाद उत्पादन बंद कर देते हैं।
मौजूदा उत्पादन व्यवस्था के साथ एक और दिक्कत यह है कि महंगे कलपुर्जों के आयात पर अधिक निर्भर है। जब तक भारत इन कलपुर्जों का स्थानीय स्तर पर उत्पादन नहीं शुरू करता है तब तक उसका मोबाइल फोन उद्योग पूरी तरह प्रोत्साहन पर निर्भर बना रह सकता है। इससे उसकी बुनियाद मजबूत नहीं होगी। इसे हासिल करना असंभव नहीं है। बल्कि नोकिया के मामले में हम देख चुके हैं कि पहले ऐसा किया जा चुका है।
नोकिया फिनलैंड की कंपनी है जिसने 2006 में तमिलनाडु के श्रीपेरुंबुदुर में नोकिया एसईजेड की स्थापना के बाद मोबाइल फोन बनाना शुरू किया था। उसने हर हिस्से का आयात करने के बजाय कलपुर्जे बनाने की व्यवस्था को भी यहीं स्थानांतरित कर लिया। यह नीति कारगर रही और उत्पादन तथा निर्यात दोनों में इजाफा हुआ।
2010 और 2013 के बीच निर्यात दो अरब डॉलर से अधिक हो गया। उल्लेखनीय है कि नोकिया को उस समय कामयाबी मिली जब भारत में मोबाइल फोन पर आयात शुल्क नहीं था जबकि फिलहाल वह 20 फीसदी है। इससे पता चलता है कि नोकिया इंडिया में दुनिया भर में प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता थी। अब आते हैं इसके दुखद हिस्से पर।
नोकिया इंडिया को श्रम संगठनों का सामना करना पड़ा और राज्य के बिक्री कर विभाग ने भी उस पर आरोप लगाया कि नोकिया ने घरेलू बिक्री को निर्यात के रूप में दर्शाकर 2,400 करोड़ रुपये की कर चोरी की। नोकिया ने अपने बचाव में निर्यात के प्रमाण पेश किए और मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे राहत प्रदान की।
बहरहाल, उस समय एक नया विवाद पैदा हो गया जब आयकर विभाग ने यह कहते हुए 15,000 करोड़ रुपये की मांग कर दी कि नोकिया ने फिनलैंड की मूल कंपनी से सॉफ्टवेयर खरीद को गलत तरीके से पेश किया। यह विवाद फिनलैंड और भारत की अलग-अलग कर व्याख्याओं से उपजा था और इसके परिणामस्वरूप नोकिया की परिसंपत्तियां जब्त कर ली गईं। आखिरकार 2013 में नोकिया का संयंत्र बंद हो गया।
कंपनी के बंद होने के कई अहम परिणाम हुए। भारत का वार्षिक मोबाइल फोन निर्यात दो अरब डॉलर से घटकर 20 करोड़ डॉलर रह गया। करीब 17,000 लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। भारत दोबारा मोबाइल फोन आयात के लिए चीन पर निर्भर हो गया।
नोकिया के संयंत्र के बंद होने के पीछे शायद कुछ लोगों की आक्रामक कार्रवाई वजह रही हो लेकिन इसने एक विश्वसनीय निवेश केंद्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाई। नोकिया का दौर भारत के मोबाइल फोन उद्योग की पहली सफलता था।
आइए इस उद्योग के तीन संभावित विकास मार्गों की बात करते हैं।
(1) मौजूदा चरण में सरकार पीएलआई योजना का विस्तार कर रही है और कुछ हिस्सों पर आयात शुल्क में कमी करती जा रही है। देश में न्यूनतम स्थानीय उत्पादन होगा और मोबाइल फोन के कलपुर्जों को जोड़ने का काम होता रहेगा। हम उच्च उत्पादन और निर्यात आंकड़ों से प्रसन्न
बने रहेंगे।
(2) औद्योगिक उथल पुथल होती है और इसके कई कारण हैं। प्रमुख कंपनियां उत्पादन रोक सकती हैं और उन देशों में जा सकती हैं उन्हें अधिक प्रोत्साहन मिल रहा हो। यह भी हो सकता है कि चीन जरूरी कलपुर्जों की आपूर्ति बंध कर दे। भारत को विश्व व्यापार संगठन के नियमों का पालन कर सकता है जो कहते हैं कि मोबाइल फोन टैरिफ को 20 फीसदी से घटाकर शून्य किया जाए। एक तय अवधि के बाद सरकार भी पीएलआई जैसे प्रोत्साहन बंद कर सकती है।
भारतीय मोबाइल उद्योग को 2017 में पहली बार उथल पुथल का सामना करना पड़ा जब वस्तु एवं सेवा कर लागू हुआ। 2020 में दोबारा ऐसा हुआ जब मर्चंडाइस एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआईएस) के प्रोत्साहन बंद कर दिए गए। माइक्रोमैक्स, इंटेक्स, लावा, कार्बन और कई अन्य कंपनियां जो कम निवेश, उच्च आयात और उच्च उत्पादन के मॉडल पर उभरी थीं वे गायब हो गईं।
(3) स्थानीय कलपुर्जों का पारिस्थितिकी तंत्र विकसित होता है। दीर्घकालिक वृद्धि के लिहाज से यही सबसे वांछित नतीजा होगा। भारत को उन कंपनियों का समर्थन करना होगा जो तय समय में स्थानीयकरण को महत्व देती हों जैसा आरंभ में नोकिया ने किया था। इसके लिए अहम कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देना होगा। कोरिया, जापान, वियतनाम, ताइवान और अमेरिका आदि ऐसे देश हैं जो डिस्प्ले, मेमरी, कनेक्टर और सेमीकंडक्टर जैसे अहम और महंगे कलपुर्जे बनाते हैं। भारत चुनिंदा कलपुर्जों का वैश्विक आपूर्तिकर्ता बन सकता है।
भारत की आकांक्षा सबसे निचले तबके के चार अरब लोगों के लिए मोबाइल फोन बनाना है। कई कंपनियां नए और उन्नत मॉडल पेश कर रही हैं लेकिन साधारण और विश्वसनीय मोबाइल फोन की बहुत मांग है जिनकी बैटरी लाइफ लंबी हो और जिन पर पांच साल की गारंटी मिल रही हो। इन फोन में 27 नैनोमीटर चिप इस्तेमाल हो सकती है जिसे भारत आयात भी कर सकता है और अन्य कलपुर्जों के साथ उन्हें देश में भी बना सकता है। भारत में ऐसे फोन बनाकर उन्हें पूरी दुनिया तक पहुंचाने की क्षमता, कौशल और संसाधन तीनों हैं।
(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक हैं)