बैंकरों के लिए अब फंसे कर्ज की वसूली का सरदर्द कम होगा। बजट में कहा गया है कि बैंकों के भारी भरकम फंसे हुए कर्ज के लिए परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) और परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) की स्थापना की जाएगी। ये कंपनियां फंसे कर्ज का निपटान और प्रबंधन करेंगी तथा उन्हें वैकल्पिक निवेश फंड तथा अन्य निवेशकों को बेचेंगी।
जब 28 एआरसी पहले से मौजूद हैं तो हम बैंकों को बैड बैंक के स्वामित्व की इजाजत क्यों दे रहे हैं? इसके अलावा येस बैंक नियामकीय मंजूरी के बाद एक नई एआरसी शुरू करेगा। दरअसल मजबूत निवेशकों वाली कुछ एआरसी के अलावा शेष के पास ऐसे ऋण खरीदने के लिए पूंजी नहीं है। ऋणशोधन कानून कई वजहों से फंसे कर्ज की वसूली में पिछड़ा रहा। इस कानून के तहत कम से कम एक लाख रुपये के ऋण डिफॉल्ट से राष्ट्रीय कंपनी लॉ पंचाट (एनसीएलटी) निपटेगा। मार्च 2020 मेंं इसकी सीमा बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दी गई ताकि कोविड-19 महामारी के दौरान छोटे और मझोले उपक्रमों को ऋणशोधन प्रक्रिया से बाहर रखा जाए।
जून 2020 मेंं जब सरकार ने कोविड के दौर में नए मामले दायर करने को लेकर छह महीने की रियायत की घोषणा की तब एनसीएलटी के समक्ष करीब 11,000 मामले लंबित थे। इस अवधि को 25 मार्च, 2021 तक बढ़ा दिया गया। आमतौर पर मामला दायर किए जाने के बाद एनसीएलटी की मंजूरी में एक पखवाड़े से एक महीने तक का वक्त लगता है। मामले को 180 दिन में निपटाना होता है लेकिन इसके लिए 90 दिन की अतिरिक्त अवधि मिल सकती है। यह मामले की जटिलता पर निर्भर करता है। 270 दिन की इस समय सीमा में वाद पर व्यय समय नहीं आता जो प्राय: अधिक होता है। अधिनियम में अगस्त 2019 में संशोधन किया गया था ताकि मामला स्वीकार किए जाने के 330 दिन के भीतर कार्रवाई पूरी की जा सके लेकिन व्यवहार में इसमें अधिक समय लगता है। बोली गंवाने वाले नई बोली लगा सकते हैं और नए बोलीकर्ता भी शामिल हो सकते हैं। कानून में परिवर्तन किया गया ताकि एक समयसीमा के बाद नई बोली न लगाई जा सके। परंतु बेहतर बोली के लिए इसमें इजाफा किया जा सकता है। देनदारी चूकने वाले अपील संस्था, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी जा सकते हैं। इस प्रक्रिया में कई परिसंपत्तियों का मूल्य नष्ट हो जाता है। एनसीएलटी संचालित प्रक्रिया में अधिकांश परिसंपत्तियां अपना मूल्य गंवा बैठती हैं। माना जा रहा है कि बैड बैंक इस समस्या को हल करेगा।
शुरुआत में 500 करोड़ रुपये या अधिक के फंसे कर्ज के साथ कुल 2.25 लाख करोड़ रुपये की पूंजी एआरसी को स्थानांतरित की जाएगी। बोली के अभाव में फंसे हुए कर्ज के लिए कोई मूल्य निर्धारण मुश्किल होगा। यही कारण है कि एआरसी निर्माण मेंं चुनिंदा विधिक बदलावों की आवश्यकता होगी। किताबी मूल्य पर 50,000 करोड़ रुपये से 75,000 करोड़ रुपये की राशि बैंकोंं से एआरसी को स्थानांतरित की जाएगी। बैंकों को 15 फीसदी नकद और 85 फीसदी सुरक्षा प्राप्ति की पेशकश की जाएगी। ये सुरक्षा प्रतिभूतियां बैंकों का निवेश हैं। फंसा हुआ कर्ज जो एआरसी को बेचा जाता है उसे बैंक के बही खातों से निवेश श्रेणी मेंं स्थानांतरित किया जाएगा। एक बार वसूली पूरी होने के बाद इन प्राप्तियों को भुनाया जाएगा। जिस समय ऋण स्थानांतरित किया गया, यदि मूल्य उससे अधिक होता है तो इसे बैंकों को सौंपा जाएगा क्योंकि एआरसी का स्वामित्व उनके पास होगा। कम वसूली होने पर बैंकों को कम राशि मिलेगी।
यदि कोई ताप बिजली परियोजना या सड़क परियोजना अथवा हवाई अड्डा ऋण चुकाने में नाकाम रहा है तो उसे कुछ धनराशि की आवश्यकता हो सकती है जो एएमसी से मिलेगी। बैंकिंग क्षेत्र के साथ वास्तविक अर्थव्यवस्था को भी इसका लाभ मिलेगा। इसके अलावा यदि एआरसी खरीदारों के रूप में वैकल्पिक निवेश फंड आकर्षित कर सकती है तो प्राप्तियों का बाजार निर्मित होगा और सुधार प्रक्रिया को गति मिलेगी।
एएमसी को बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं होती लेकिन एआरसी को होती है। इसके बिना वह फंसे कर्ज को कैसे खरीदेगी? 75,000 करोड़ रुपये का फंसा कर्ज खरीदने के लिए उसे 11,250 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। यह राशि कहां से आएगी? क्या बैंक इसमें मदद करेंगे? इसके अलावा जैसा कि कहा जा रहा है, यह लेनदेन नकदी निरपेक्ष कैसे होगा?
फंसे हुए कर्ज की बिक्री मेंं तेजी आएगी क्योंकि शुद्ध मूल्य का एक फॉर्मूला है और यह बात आड़े नहीं आएगी कि बैंक फंसे कर्ज को बेचने के क्रम में कितना भारवहन करने को तैयार होंगे? इसके अलावा कई सवालों के जवाब तलाशने होंगे। मसलन क्या मौजूदा एआरसी अब केवल छोटे ऋण यानी 500 करोड़ रुपये से कम ऋण पर ध्यान देंगी?
क्या बैड बैंक में स्वत: समाप्त होने वाला कोई प्रावधान भी होगा? आरबीआई किसी अधिग्रहीत परिसंपत्ति के निस्तारण के लिए आठ वर्ष का समय देता है। इसके बाद विक्रेता बैंक और एआरसी दोनों द्वारा इसे बट्टेखाते में डालना होता है। परंतु प्राप्ति धारक की मंजूरी से वसूली की कोशिश जारी रह सकती है। क्या यह समय सीमा बदलनी चाहिए? सवाल यह भी है कि कमान किसके हाथ में रहेगी सेवानिवृत्त सरकारी बैंकरों और अफसरशाहों के हाथ में?
इन्फ्रा डीएफआई
बैड बैंक जहां फंसे कर्ज के निपटान में मदद करेगा, वहीं बुनियादी क्षेत्र में फाइनैंसिंग के लिए विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) लंबी अवधि में परियोजनाओं की वित्तीय आवश्यकताओं को लेकर उत्प्रेरक का काम करेगी। परंतु ऋण देने के लिए धन राशि कहां से आएगी? सन 1990 के दशक के अंत में पुरानी डीएफआईबंद करनी पड़ी थीं क्योंकि सरकार की ओर से सस्ती धनराशि मिलनी बंद हो गई। इससे उनकी परिसंपत्ति और देनदारी में विसंगति उत्पन्न हो गई।
मीडिया रिपोर्ट की बात करें तो वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) का प्रस्तावित डीएफआई में विलय किया जाएगा। सरकार ने मई में 500 करोड़ रुपये के निवेश के बाद पुनर्पूंजीकरण के लिए 5,300 करोड़ रुपये डाले जिससे आईआईएफसीएल की पूंजी करीब 10,000 करोड़ रुपये हो गई। अब 10,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी के साथ कुल 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी इसमें रहेगी।
योजना में आईआईएफसीएल के 4,500 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज के निस्तारण की योजना सबसे पहले है। यह आईआईएफसीएल के बचाव की योजना है जिसने दिसंबर 2020 तक 15 वर्ष में 510 परियोजनाओं के लिए 95,176 करोड़ रुपये मंजूर किए और 43,313 करोड़ रुपये वितरित किए। प्रस्तावित डीएफआई की योजना अगले तीन वर्ष में 5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने की है। यह उचित नहीं प्रतीत होता। यदि इसे जवाबदेह पेशेवरों द्वारा चलाया जाए तो भी पैसा कहां से आएगा? सवाल यह है कि क्या नए डीएफआई के जरिए ऋण बढ़ाने वाला संस्थान तैयार करने की योजना है?
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
