यूक्रेन पर आक्रमण करने के पहले रूस दुनिया में तेल का सबसे बड़ा निर्यातक था। इसके अलावा यूरोप की गैस आपूर्ति का करीब एक तिहाई रूस से आता था। यूरोप के नेताओं के मन में अतीत की ऊर्जा नीति में की गई गलतियों को लेकर पश्चाताप का भाव है क्योंकि तेल पाइपलाइन रूस के तेल क्षेत्रों में स्थापित की गईं। रूस को जहां एक महाशक्ति माना जाता है, वहीं हकीकत में उसका सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी स्पेन के आकार का है। वह प्राकृतिक संसाधनों और खाद्यान्न के मामले में अत्यधिक मजबूत है। रूस की अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा निर्यात से आने वाला धन अत्यंत आवश्यक है और यूक्रेन के साथ युद्ध में भी वही धन काम आ रहा है। पश्चिम की बात करें तो एनएलजी टर्मिनल बनाना, भंडारण या पाइपलाइन तैयार करना दो से तीन वर्ष का काम है। ऐसे में बदलाव इतना आसान नहीं है। अब तक कीमतों में जो इजाफा हुआ है, मात्रा में कमी के कारण उसकी भरपाई हो गई और रूसी निर्यात युद्ध के पहले की तुलना में बढ़ा ही है। लेकिन प्रतिबंध धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहे हैं।
अधिनायकवादी राजनीतिक दल तो हर जगह मौजूद हैं। यूरोप में 85 प्रतिशत लोग रूस पर ऊर्जा निर्भरता कम करने के हिमायती हैं। ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया और फिर पोलैंड बनाम जॉर्जिया, क्राइमिया और फिर यूक्रेन की समरूपता को व्यापक तौर पर देखा ही जाता है। राजनीतिक नेतृत्व बदलाव की आर्थिक कीमत को उचित ठहराने में कामयाब होता है।
हाल के महीनों में रूस द्वारा पोलैंड, बल्गारिया और फिनलैंड को गैस बेचे जाने पर रोक लग गई है। रूस शायद अक्टूबर तक अपनी सैन्य पकड़ मजबूत बनाने की इच्छा रखता हो, वह दिसंबर में गैस आपूर्ति बाधित करने की धमकी देकर नवंबर में यूक्रेन को यूरोपीय देशों का समर्थन तितरबितर कराने का प्रयास कर सकता है। लेकिन इसके साथ ही रूसी सेना को अक्टूबर तक पकड़ बनानी होगी जिसके लिए निर्यात से धन अर्जित करना आवश्यक है।
रूस के लिए सबसे उपयुक्त रणनीति शायद यही होगी कि: (अ) वैश्विक तेल बाजार को नाराज करते हुए ईंधन कीमतों को बढ़ा दे, (ब) आपूर्ति बाधित करने की धमकी देकर यूरोप की विदेश नीति को प्रभावित करे, लेकिन (स) एक ऐसे नतीजे के लिए वार्ता करे जहां पूर्वी यूरोप पर आधिपत्य किया जा सके और ईंधन की बिक्री से भारी राजस्व भी हासिल हो सके।
यूरोप ऊर्जा आयात के लिए रूस पर निर्भरता समाप्त करना चाहता है। यूरोप में एलएनजी आयात बढ़ा है। एलएनजी संयंत्र स्थापित करने की होड़ मची हुई है। कार्बन प्रतिस्थापन में निवेश अप्रत्याशित गति से हो रहा है क्योंकि इससे एक तीर से दो निशाने सधते हैं। इन परियोजनाओं की क्रियान्वयन गति यूक्रेन मामले में यूरोप को मजबूती देगी। यूरोप में एलएनजी की बढ़ती मांग के कारण वैश्विक बाजार में एलएनजी की कीमत बढ़ेगी जिससे भारत समेत तमाम देश प्रभावित होंगे।
मजबूत नेता लोकतंत्र को कमजोर मानते हैं। हमें लोकतांत्रिक देशों की बौद्धिकता, तकनीकी क्षमता, आर्थिक एवं सांस्कृतिक शक्ति को कम करके नहीं आंकना चाहिए। रूस से ऊर्जा आयात कम करना मुश्किल है लेकिन यूरोप इस दिशा में काफी प्रगति करेगा। रूस के ऊर्जा निर्यात को कम करने से वैश्विक ऊर्जा बाजार में सतत दबाव बनेगा। अनुमान है कि कम से कम एक वर्ष तक ईंधन कीमतें ऊंची बनी रहेंगी।
ऊंची ईंधन कीमतों को वृहद अर्थव्यवस्था से जोड़ कर देखते हैं। दुनिया भर के ईंधन आयात करने वाले देशों में अल्पावधि में कीमतों में नाम मात्र का लचीलापन रहता है। ऐसे में ऊंची आयात कीमतें बढ़े हुए कर और कम हुई बचत के समान रहती है। ऐसे में ज्यादा पूंजी की आवश्यकता होगी ताकि निवेश और बचत के बीच बढ़े हुए अंतर को पाटा जा सके।
विश्व अर्थव्यवस्था में लंबे समय तक ब्याज दर कम रही और इस बीच महामारी का आगमन भी हुआ। इसकी वजह से कर्ज का बोझ बढ़ा है।
अप्रत्याशित मुद्रास्फीति ने इसमें से कुछ कर्ज को दूर किया है। बहरहाल, कई कर्जदारों के लिए ऐसा परिदृश्य रचना मुश्किल नहीं है जहां ऋण स्थिरता की बुनियाद, नॉमिनल वृद्धि और पूंजी की लागत की तुलना 2023 में विपरीत हो जाएगी। उदाहरण के लिए इटली को अल्पावधि में लाभ हुआ था जब उच्च मुद्रास्फीति के कारण उसका कर्ज का बोझ कम हुआ था लेकिन 2023 तक वह विस्तारित कर/जीडीपी अनुपात का शिकार हो सकता है।
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति की समस्या को लेकर सचेत हुए हैं और सख्ती बरत रहे हैं। 2022 के शेष समय में अमेरिकी फेडरल रिजर्व 200 आधार अंकों और यूरोपीय केंद्रीय बैंक 130 आधार अंकों की बढ़ोतरी कर सकता है।
जब विकसित देशों में ब्याज दर बढ़ती है तो वैश्विक पूंजी दुनिया भर में जोखिम से बचती है और विकसित देशां के फंड और डेट की ओर वापसी करती है। उभरते बाजारों में प्रतिफल की दर बढ़ानी होती है ताकि पूंजी के बहिर्गमन को रोका जा सके। इसके लिए विनिमय दर अधिमूल्यन और परिसंपत्ति मूल्य में कमी का संतुलन कायम करना होता है।
विश्व अर्थव्यवस्था के सामने तब एक अस्वाभाविक संयोग पैदा होता है जहां (अ) ऊर्जा आयात करने वाले कई देशों में निवेश और बचत के अंतर को पाटने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है (ब) ऐसे समय पर जब ऋण का स्तर असाधारण रूप से ऊंचा होता है (स) ऐसे समय जब जीडीपी और व्यापार में वैश्विक वृद्धि धीमी होती है तथा (द) ऐसे समय पर जब विकसित देशों में असाधारण मौद्रिक सख्ती होती है। हमारे लिए यह स्थिति नयी है।
बेहतर संस्थानों वाले देशों में पूंजी खाता परिवर्तनीयता होती है और मुद्रास्फीति को लक्षित किया जाता है। जब निवेश बढ़ता है या बचत कम होती है तो विनिमय दर में कमी आती है और विदेशी पूंजी सहज रूप से आती है। इसके लिए लचीली विनिमय दर, पूंजी खाते की परिवर्तनीयता, मुद्रास्फीति को लक्षित करने तथा सरकारी उधारी की आवश्यकता होती है जिसे बाजार के अनुशासन का सामना करना होता है। कई देशों में यह व्यवस्था नहीं है वहां दिक्कतदेह हालात बन सकते हैं।
कुछ कंपनियों को ऋण संकट का सामना करना पड़ सकता है। कुछ देशों में वृहद नीति का कुप्रबंधन हो सकता है और वहां वृहद आर्थिक या वित्तीय संकट आ सकता है।
सात जनवरी, 2009 को सत्यम घोटाला सामने आया था। वह किसी एक व्यक्ति या कंपनी की कहानी नहीं थी। इसका संबंध वृहद घटनाओं से था जिनमें 2007 में लंदन मुद्रा बाजार की समस्या, 2008 के लीमन डिफॉल्ट से लेकर 26/11/2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले जैसी घटनाएं शामिल थीं। वृहद आर्थिक तनावों और व्यावहारिक नतीजों के बीच आपसी संबंध है।