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नीतिगत समीक्षा: दरों के मोर्चे पर सीमित विकल्प

Last Updated- April 04, 2023 | 10:11 PM IST
चालू वित्त वर्ष में 8 फीसदी के आसपास रहेगी वृद्धि दर- शक्तिकांत दास, Indian economy likely to grow close to 8% in FY24, says RBI Governor

मई 2022 की शुरुआत में प्रारंभ हुई मौजूदा चक्र की पहली दर वृद्धि के बाद से इस सप्ताह होने वाली वित्त वर्ष 2024 की पहली मौद्रिक नीति की समीक्षा शायद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास के लिए सबसे कठिन होगी। पिछले साल मई में भारत के केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की एक बैठक में अपनी नीतिगत दर में 40 आधार अंकों की वृद्धि की थी, ताकि बढ़ती हुई महंगाई से निपटा जा सके जो जनवरी 2022 से अपने लक्ष्य के ऊपरी दायरे से ऊपर थी।

दो साल पहले मई 2000 में आरबीआई ने कोविड महामारी से प्रभावित सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए नीतिगत दर में इतनी ही कटौती की थी। रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दर में तीन बार 50 आधार अंकों की वृद्धि की गई और इसके बाद 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई और इसके बाद आरबीआई ने इसमें कटौती करनी शुरू कर दी। सबसे पहले दिसंबर 2022 में 35 आधार अंकों की वृद्धि की गई और फिर फरवरी में 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई, जिससे एमपीसी की पिछली बैठक में नीतिगत दर 6.5 प्रतिशत हो गई।

इस बीच नीतिगत रुख में कोई बदलाव नहीं आया। एमपीसी के छह में से दो सदस्यों ने पिछली दर वृद्धि का विरोध किया। मीडिया के साथ अपनी बातचीत में शक्तिकांत दास ने ‘आशावाद के मिजाज’ के बारे में बात की, लेकिन फरवरी में आगे के लिए कोई भी संकेत देने से परहेज किया। क्या आरबीआई इस हफ्ते नीतिगत दरों में बढ़ोतरी को रोकने की कोशिश करेगा? या  क्या हम मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए एक और दर वृद्धि देखेंगे, जो लगातार 10 महीनों तक मुद्रास्फीति लक्ष्य के ऊपरी दायरे से ऊपर रहने के बाद, दो महीनों के लिए 6 प्रतिशत से नीचे गिर गई और जनवरी तथा फरवरी में फिर से बढ़ गई? इस पर सीमित विकल्प ही बचे हैं। आखिर ऐसा क्यों होगा? सबसे पहले, इस बात पर गौर करते हैं कि फरवरी की नीति और अब वैश्विक बैंकिंग के स्तर पर क्या हुआ है।

मार्च में सिलिकन वैली बैंक दिवालिया हो गया जो खासकर प्रौद्योगिकी स्टार्टअप को ऋण देता था। वर्ष 2008 के आर्थिक संकट के बाद से यह अमेरिका के बैंक की सबसे बड़ी विफलता साबित हुई। कुछ ही दिनों के भीतर नियामकों ने कानूनी फर्मों और रियल एस्टेट कंपनियों को ऋण देने वाले ‘सिग्नेचर बैंक’ को अचानक बंद कर दिया ताकि व्यापक वित्तीय प्रणाली पर पड़ने वाले किसी भी तरह के प्रभाव को रोका जा सके।

स्विस बैंकिंग दिग्गज यूबीएस ने संकटग्रस्त प्रतिस्पर्द्धी क्रेडिट सुइस को बचाने के लिए कदम उठाया, जबकि निवेशक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जर्मनी के दिग्गज बैंक डॉयचे बैंक पर बाहरी घटनाक्रम का क्या असर पड़ेगा।

संकट की स्थिति पैदा होने के बाद से, अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंगलैंड और यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने अपनी नीतिगत दरों को 25 से 50 आधार अंक के बीच बढ़ाया है और इनके अलावा स्विस नैशनल बैंक,  सेंट्रल बैंक ऑफ नॉर्वे, सेंट्रल बैंक ऑफ दि रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) के साथ-साथ सेंट्रल बैंक ऑफ नाइजीरिया ने भी अपनी दरों में वृद्धि की है। सेंट्रल बैंक ऑफ ब्राजील, सेंट्रल बैंक ऑफ द रिपब्लिक ऑफ तुर्की, पीपल्स बैंक ऑफ चाइना, बैंक इंडोनेशिया और सेंट्रल बैंक ऑफ रशिया ने यथास्थिति बनाए रखी है, जबकि सेंट्रल बैंक ऑफ अर्जेंटीना और बैंक ऑफ जापान ने अपनी दरों में कटौती की है।

हमारे लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व की कार्रवाई मायने रखती है। अमेरिकी फेड नीति का घरेलू महंगी दर और वृद्धि की दरों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव जारी है।

बाजार नीति से जुड़ी उम्मीदों को लेकर बाजार में अलग-अलग राय है। मुझे बताया गया है कि पिछले सप्ताह आरबीआई गवर्नर की पारंपरिक तौर पर होने वाली नीति-पूर्व बैठक में भाग लेने वाले 11 अर्थशास्त्रियों में से सात ने नीतिगत वृद्धि का समर्थन किया था। सात में से एक ने 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी की तुलना में कम बढ़ोतरी की मांग की, जबकि बाकी ने फिलहाल थोड़ा ठहरने पर जोर दिया।

आरबीआई या तो समान गति को बनाए रख सकता है (इसे 25 आधार अंक की वृद्धि मानें) या निचले गियर (10 आधार अंक की वृद्धि) का विकल्प चुन सकता है। या यह ब्रेक भी दबा सकता है। सबसे पहले हम चर्चा करते हैं कि आरबीआई ब्रेक क्यों लगा सकता है।

दरअसल फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है जिसकी वजह से नीतिगत दर 4.75-5 प्रतिशत हो गई है, लेकिन यह एक मामूली वृद्धि है। भविष्य में ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर अग्रिम दिशानिर्देश कमजोर दिख रहे हैं क्योंकि फेडरल रिजर्व की ओर से कीमतों में स्थिरता और वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता जैसे कदम उठाए जा रहे हैं।

यह निश्चित नहीं है कि एफओएमसी की अगली बैठक में 25 आधार अंकों की एक और वृद्धि होगी या नहीं और अगर ऐसा होता भी है, तो यह इस चक्र में आखिरी वृद्धि हो सकती है। फेडरल फंड दर के लिए एफओएमसी के दृष्टिकोण को संक्षेप में पेश करने वाले चार्ट डॉट प्लॉट ने इसे 2023 के अंत तक 5.1 प्रतिशत पर ले जाने का अनुमान जताया है।

इससे एमपीसी के लिए दरों में किसी भी वृद्धि से बचने का रास्ता खुल गया है। पिछले दो महीनों में खुदरा महंगाई बढ़ी है और बुनियादी मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। लेकिन मुद्रास्फीति मार्च और वित्त वर्ष 2024 में कम हो जाएगी क्योंकि तथाकथित तौर पर आधार प्रभाव जोर पकड़ेगा। बुनियादी मुद्रास्फीति को लेकर क्या समस्या है? दरअसल यह एक दशक से एक निश्चित स्तर पर बना हुआ है। जनवरी 2012 से औसत बुनियादी मुद्रास्फीति 5.84 प्रतिशत रही है।

इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वृद्धि के लिए नकारात्मक जोखिम अब स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। फरवरी में आरबीआई ने वित्त वर्ष 2024 के लिए जीडीपी वृद्धि के 6.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। कई सेगमेंट की मांग में कमी देखी जा रही है। ब्याज दरों के बढ़ने से भावी मकान खरीदार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। सालाना आधार पर ऋण की मांग अक्टूबर के 17.9 प्रतिशत से घटकर मार्च की शुरुआत में 15.7 प्रतिशत हो गई है।

आमतौर पर, एक वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में सबसे अधिक ऋण की मांग देखी जाती है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए आरबीआई को ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए। हालांकि केंद्रीय बैंक का रुख लचीली मौद्रिक नीति को खत्म करने पर होना चाहिए क्योंकि इससे आगे सख्ती बरतने का उद्देश्य पूरा होगा। तंत्र में अतिरिक्त नकदी लगातार कम हो रही है और यह अब जीडीपी के 1 फीसदी से भी कम है, जो लगभग चार साल में सबसे कम है।

इत्तफाक से, नकदी में सख्त रुख अपनाने की वजह से वित्त वर्ष 2023 के आखिरी दिन पिछले शुक्रवार को कॉल मनी की दर 8 फीसदी से अधिक हो गई जो चार साल का उच्च स्तर है। कॉल मनी दर वह दर है जिसके आधार पर बैंक आपसी लेन-देन करते हैं। आखिरकार, चालू खाते के घाटे का खतरा अब बड़ा नहीं है। तेल सहित वैश्विक जिंसों की कीमतों में गिरावट, भारत के बाहरी खातों के लिए अच्छी है और इससे रुपये पर दबाव कम होता है।

इसलिए, दर 6.5 प्रतिशत बनी हुई है और रुख में कोई बदलाव नहीं है। जरूरत पड़ने पर आरबीआई जून में या उसके बाद भी दर बढ़ा सकता है। दर में 25 आधार अंक की बढ़ोतरी के लिए भी समान रूप से मजबूत तर्क दिए जा रहे हैं ताकि नीतिगत दर 6.75 फीसदी के स्तर पर हो और फिर यहां ठहराव का रुख अपनाया जाए।

मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4 प्रतिशत (+/- 2 प्रतिशत) है न कि 6 प्रतिशत। आरबीआई के अपने अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2024 में औसत महंगाई दर 5.3 फीसदी रहेगी। लेकिन अल नीनो के मंडराते खतरे के कारण मॉनसून और बेमौसम बारिश से रबी फसलों को नुकसान पहुंचने की आशंका बढ़ी है और इसी कारण से ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह करीब 5.5 प्रतिशत रहेगी। क्या शक्तिकांत दास महंगाई से मुकाबला करने की अपनी क्षमता को छोड़ने का जोखिम उठा सकते हैं?

भारत के वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता में मजबूती है और यह मूल्य स्थिरता बरकरार रखने के आरबीआई के उद्देश्य की राह में बाधा नहीं बनेगी। यह सावधानी बरतने में कुछ गलतियां भी कर सकता है और नीतिगत दर को बढ़ाकर 6.75 प्रतिशत कर सकता है- यह एक प्रकार की ऐसी वृद्धि है जिसे जरूरत पड़ने पर आने वाली बैठकों में हमेशा पलटा जा सकता है।

क्या 10 आधार अंक की वृद्धि, किसी भी मकसद को पूरा करेगी? यह क्या संकेत देगा?

मुझे लगता है कि अगर आरबीआई दरों में बढ़ोतरी करता है, तो वह सख्त मौद्रिक नीति वाले रुख से तटस्थता पर जोर दे सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि महंगाई चरम पर पहुंच गई है। ऐसे में जोखिम से बचने की सीमित गुंजाइश है।

First Published - April 4, 2023 | 10:11 PM IST

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