खबर है कि सरकार ने बैंकों की एक प्रमुख संस्था, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) से बैंक कर्मचारियों के लिए 12वें द्विपक्षीय वेतन समझौते के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने और इसे 1 दिसंबर तक अंतिम रूप देने को कहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के कर्मचारियों का वेतन संशोधन 1 नवंबर, 2022 से लंबित है।
आईबीए और बैंक कर्मचारी यूनियनों के बीच तीन साल की गहन चर्चा के बाद 2020 में संपन्न हुई 11वीं द्विपक्षीय वेतन वार्ता में 15 प्रतिशत वेतन संशोधन पर सहमति बनी थी। लिपिक कर्मचारियों के लिए यह वेतन समझौते में कवर किए गए बैंकों के 3,385 करोड़ रुपये के वार्षिक खर्च में बदल गया। वहीं अधिकारियों को इसमें शामिल किए जाने पर पिछले वेतन संशोधन के चलते यह राशि 7,898 करोड़ रुपये के अतिरिक्त वार्षिक खर्च में तब्दील हो गई।
इस करार में पीएसबी सहित कुछ निजी और विदेशी बैंकों के करीब 3,79,000 अधिकारी और करीब 5,00,000 कर्मचारी शामिल थे। कुल मिलाकर, 29 बैंकों ने इस कवायद में हिस्सा लिया। एक समझौता करीब पांच साल तक चलता है। वित्त वर्ष 2022-23 में 32 सूचीबद्ध निजी बैंकों और पीएसबी का संयुक्त शुद्ध लाभ 40.56 प्रतिशत बढ़कर 2.29 लाख करोड़ रुपये हो गया।
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एक समूह के रूप में पीएसबी का मुनाफा 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 57 प्रतिशत अधिक है। पीएसबी के विपरीत, केवल निजी और विदेशी बैंकों के लिपिक श्रमिकों का वेतन इसके दायरे में आता है जिनके अधिकारी भी इस वेतन समझौते का हिस्सा हैं।
संयोग से नवंबर 2012 से प्रभावी 10वें द्विपक्षीय वेतन समझौते में पीएसबी के कर्मचारियों के वेतन में 15 प्रतिशत वृद्धि की पेशकश की गई है, जो पिछले समझौते की 17.5 प्रतिशत की वेतन वृद्धि से कम है। हालांकि, इसकी तुलना बिल्कुल नहीं की जा सकती थी क्योंकि पिछली वृद्धि की गणना का आधार, पेंशन और ग्रैच्युटी सहित एक कर्मचारी का पारिश्रमिक था जबकि 10 वें द्विपक्षीय समझौते में सेवानिवृत्ति का लाभ शामिल नहीं था। पिछले समझौते में पीएसबी के परिचालन और शुद्ध मुनाफे के आधार पर प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन की अवधारणा पेश की गई थी। निजी और विदेशी बैंकों के लिए यह वैकल्पिक था।
पीएसबी एक-दूसरे से बहुत अलग हैं, खासतौर पर जब प्रति कर्मचारी कारोबार और प्रति कर्मचारी लाभ, संपत्ति पर प्रतिफल और इक्विटी पर प्रतिफल जैसे मापदंडों की बात आती है और फिर भी वेतन के लिहाज से उनके कर्मचारियों को एक-समान माना जाता है। निश्चित तौर पर प्रदर्शन को पुरस्कार नहीं मिलता है।
पिछले वेतन समझौते में प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन को शामिल किया गया था जिसके जरिये इस मुद्दे को आंशिक रूप से निपटाने की कोशिश की गई। इस बार, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सरकार वेतन संशोधन में निष्पक्षता और समान हिस्सेदारी के महत्त्व पर जोर दे रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुआवजा संरचना, बैंकिंग उद्योग के अन्य खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धी बनी रहे।
यह तब महत्त्वपूर्ण है जब भयंकर प्रतिस्पर्धा हो रही है और बैंक जमा और ऋण दोनों के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। नौकरी की सुरक्षा के अलावा, कनिष्ठ और मध्यम स्तर पर सरकारी बैंकों के कर्मचारियों का ध्यान, निजी बैंकों के समकक्ष बैंकों की तुलना में बेहतर तरीके से रखा जाता है। जैसे-जैसे वे सीढ़ी चढ़ते हैं, अंतर कम होता जाता है।
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मोटे तौर पर, स्केल 4 (मुख्य प्रबंधकों) से निजी क्षेत्र के बैंकर, सार्वजनिक क्षेत्र के अपने समकक्ष बैंकरों की तुलना में अधिक कमाई करना शुरू कर देते हैं। यही कारण है कि स्केल 4 और उससे ऊपर पीएसबी में नौकरी छोड़ने की दर काफी अधिक है।
पर्याप्त मुआवजा दिए बिना ही प्रतिभाशाली लोगों को अपने साथ जोड़े रखना पीएसबी के मानव संसाधन विभाग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही दिए जाने वाले भत्तों को भुनाए जा सकने का विकल्प देने के साथ ही पीएसबी को कॉस्ट-टू-कंपनी की अवधारणा को अपनाना चाहिए। इससे निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकरों के बीच वेतन पैकेज में अंतर करने में मदद मिलेगी।
वेतन के अलावा, निजी क्षेत्र के बैंकरों के पास कर्मचारी शेयर विकल्प योजना के तहत अपने बैंकों के शेयर भी होते हैं। भले ही सभी 12 पीएसबी सूचीबद्ध हैं, लेकिन उनके कर्मचारियों को शेयर के विकल्प नहीं दिए जाते हैं। कम से कम दो पीएसबी ने अपने कर्मचारियों को शेयर विकल्प देने के प्रस्ताव के साथ सरकार से संपर्क किया है, लेकिन इससे जुड़ी फाइलें वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग में धूल खा रही हैं। (कुछ पीएसबी ने कर्मचारी शेयर खरीद योजना के तहत अपने कर्मचारियों को बाजार मूल्य के लिहाज से थोड़ी छूट पर शेयर बेचे हैं)।
हालांकि एक सवाल बना हुआ है, यदि निजी क्षेत्र के बैंकों के लिहाज से वेतन समानता है तो क्या वर्तमान भर्ती प्रक्रिया जारी रह सकती है? क्या बैंकरों को सुनिश्चित पेंशन के अलावा सेवानिवृत्ति की उम्र तक पहुंचने तक रोजगार की गारंटी दी जा सकती है? वेतन समझौते के दायरे में पीएसबी के प्रबंध निदेशक (एमडी) और कार्यकारी निदेशक (ईडी) नहीं (और भारतीय स्टेट बैंक के मामले में अध्यक्ष भी इसके दायरे में नहीं आते हैं) आते हैं क्योंकि उनका पारिश्रमिक पैकेज अफसरशाहों के वेतन पैकेज से जुड़ा होता है।
लेकिन, क्या अफसरशाहों और बैंकरों का काम एक-दूसरे से अलग नहीं है, भले ही उन्हें पैसे के लेन-देन का प्रबंधन करना होता है? इत्तफाक से एक दशक पहले, फरवरी 2012 में वित्त मंत्रालय ने पीएसबी के पूर्णकालिक निदेशकों या अध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों और कार्यकारी निदेशकों के लिए प्रदर्शन आधारित, प्रोत्साहन योजना की शुरुआत की थी।
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प्रदर्शन मूल्यांकन के पैमाने में 12 मात्रात्मक मानदंड शामिल थे जैसे कि शुद्ध लाभ, फंसे ऋण का स्तर, लागत-आय अनुपात करीब 70 प्रतिशत तक और इसमें छह गुणात्मक मानदंड शामिल थे जबकि कारोबार रणनीति, मानव संसाधन विकास और नवाचार की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत थी। बोर्ड की एक उप-समिति, जिसे पारिश्रमिक समिति कहा जाता है उसे भी इन मापदंडों पर शीर्ष अधिकारियों के प्रदर्शन का आकलन करने का काम सौंपा गया है।
हालांकि यह मात्रा कम थी लेकिन इस व्यवस्था से पीएसबी के वरिष्ठ अधिकारी कुछ वक्त तक खुश रहे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2015 की दिसंबर तिमाही में परिसंपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा शुरू की, जिससे बड़े पैमाने पर फंसे कर्ज का पता चला, प्रदर्शन से जुड़े प्रोत्साहन गायब हो गए।
वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग ने वार्षिक लक्ष्यों पर बैंक प्रबंधन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने की परंपरा भी खत्म कर दी है। पहला वेतन समझौता अक्टूबर 1966 में किया गया था। आईबीए के अलावा, भारत में विदेशी बैंकों का प्रतिनिधित्व करने वाले बंबई एक्सचेंज बैंक एसोसिएशन, पहले समझौते में शामिल था जो करीब तीन साल तक चला था।
बंबई एसोसिएशन अब अस्तित्व में नहीं है और भारत में काम करने वाले विदेशी बैंक, आईबीए से जुड़ गए हैं। लगभग छह दशकों तक उद्योग पर आधारित वेतन समझौते का जारी रहना उद्योग पर श्रमिक संगठनों के प्रभुत्व को दर्शाता है। यह डिजिटल युग में काफी अनूठा है खासतौर पर तब जब हर बैंक एक प्रौद्योगिकी कंपनी बनने की चाहत रखता हो। यह हमें बैंक यूनियनों की लंबे समय से चली आ रही मांग की याद भी दिलाता है कि उन्हें सप्ताह में पांच दिन काम करने की अनुमति मिले।
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फिलहाल, बैंक महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को बंद रहते हैं। आखिर बैंक को हर शनिवार को बंद क्यों नहीं रखा जाना चाहिए? जब अधिकांश ग्राहक, बैंकों की सेवाएं मोबाइल फोन के ऐप से ले लेते हैं और भारत ने भी भुगतान क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है, जिसे देखते हुए शनिवार को बैंकों को खुला रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।
एक अन्य विवादास्पद मुद्दा, ग्रैच्युटी और भविष्य निधि के अलावा तीसरे सेवानिवृत्ति लाभ के रूप में पेंशन से जुड़ा है। इसकी शुरुआत 30 अप्रैल, 1992 को देशव्यापी हड़ताल से हुई थी। इस विसंगति को दूर करने का समय आ गया है।