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जलवायु अनुकूल विकास से जुड़ी विशिष्ट जरूरतें

जलवायु के अनुकूल विकास की ओर बदलाव के लिए यह आवश्यक है कि वैश्विक हस्तांतरण हर देश की खास जरूरत को ध्यान में रखकर किया जाए। 

Last Updated- July 21, 2023 | 11:00 PM IST
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इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा

जलवायु परिवर्तन एक बार फिर वैश्विक सहयोग के लिए अहम चुनौती बनकर उभर रहा है क्योंकि दुनिया भर में जलवायु से जुड़ी विपरीत गतिविधियां बढ़ रही हैं और इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती के मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं साबित हुए हैं।

आगामी दिसंबर में दुबई में होने वाली जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) की बैठक में कई मुद्दों के बीच जलवायु परिवर्तन से निपटने से जुड़ी वित्तीय सहायता भी एक मुद्दा होगी। इसमें प्रमुख चुनौती होगी विकसित देशों से उभरते और विकासशील देशों को जलवायु संबंधी कदमों के लिए दिए जाने वाले फंड का आकार और उसका स्थानांतरण।

एक हालिया रिपोर्ट पहले के अनुमानों के मुकाबले कहीं अधिक गहराई से पड़ताल करती है। उसमें कहा गया है कि 2030 तक जलवायु संबंधी निवेशक के लिए सालाना 2 से 2.8 लाख करोड़ डॉलर की आवश्यकता होगी। यह राशि चीन के अलावा अन्य उभरते तथा विकासशील देशों के लिए होगी। इस अनुमान का 75 फीसदी हिस्सा उन विकास गतिविधियों के लिए होगा जो जलवायु में उत्सर्जन कम करने में मदद करेगी। जबकि शेष राशि नुकसान की भरपाई और अनुकूलन के लिए होगी। इसमें अनुमान जताया गया है कि अंतरराष्ट्रीय फंड स्थानांतरण से एक लाख करोड़ रुपये की राशि आएगी।

एक और अनुमान विश्व बैंक की कंट्री क्लाइमेट ऐंड डेवलपमेंट रिपोर्ट्स (सीसीडीआर) का है जो बताता है कि कैसे हर देश के विकास लक्ष्यों को उत्सर्जन में कमी तथा जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के संदर्भ में हासिल किया जा सकता है।

पहले दौर में इन अनुमानों को 24 देशों के लिए तैयार किया गया था जो दर्शाता है कि 2022 से 2030 के बीच जीडीपी के प्रतिशत के रूप में अलग-अलग निवेश की आवश्यकता होगी। निवेश में बड़े अंतर की एक बड़ी वजह है कम आय और निम्न तथा कम आय वाले देशों के बीच विकास और अधोसंरचना के अंतर को पाटने की आवश्यकता। उदाहरण के लिए चीन के लिए जहां एक फीसदी की आवश्यकता होगी, वहीं पाकिस्तान को 10 फीसदी की।

एक अन्य अनुमान यूएनएफसीसीसी के समक्ष प्रस्तुत नैशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (एनडीसी) की प्रस्तुतियों में पाया जा सकता है। भारत ने 2015 में जो एनडीसी दिया था उनसे संकेत मिलता है कि 2015 से 2030 के बीच के लिए प्राथमिक अनुमान 206 अरब डॉलर का था। यह राशि कृषि, वानिकी, मछलीपालन अधोसंरचना, जल संसाधन आदि के लिए चाहिए थी। इसके अलावा 2011 के मूल्य पर 834 अरब डॉलर की राशि उत्सर्जन में कमी के लिए चाहिए थी।

ये अनुमान उपयोगी हैं। परंतु आधिकारिक वैश्विक स्थानांतरण पर वार्ता के लिए अनुमान विभिन्न देशों के स्तर पर रियायती वित्त का होना चाहिए तभी जलवायु अनुकूल विकास मार्ग पर बढ़ा जा सकता है। इस दौरान न केवल अर्थव्यवस्था की अतिरिक्त निवेश लागत को ध्यान में रखना होगा बल्कि अंतिम उत्पाद की लागत का प्रभाव भी।

नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश का उदाहरण ले सकते हैं जो जीवाश्म ईंधन से उत्पादित बिजली का स्थान लेगा। नवीकरणीय ऊर्जा के लिए जरूरी विशुद्ध निवेश जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली संयंत्रों के विकल्पों की तुलना में काफी अधिक होगा। बहरहाल, मुक्त ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता की वजह से बिजली आपूर्ति की लागत कम हो सकती है। यह तो नजर भी आ रहा है। इसका अर्थ यह है कि उत्सर्जन में कमी से संबंधित कदम बाजार के हवाले हो सकते हैं, हालांकि बिजली प्रबंधन में कुछ अहम बदलावों की आवश्यकता होगी।

बहरहाल, कुछ अन्य क्षेत्र हैं जहां विकास के तरीके में बदलाव करके जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए केवल ऐसे तकनीकी विकास पर निर्भर नहीं रहा जा सकता जो निजी कंपनियों को मुनाफा दिला सकते हों और इसलिए उन्हें बाजार पर छोड़ा जा सकता है। उदाहरण के लिए जीवाश्म ईंधन की जगह बिजली चालित वाहनों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी की आवश्यकता है ताकि मांग को बढ़ाया जा सके।

बढ़ते तापमान, पानी के बहाव में अंतर, बढ़ते समुद्री जलस्तर, बढ़ते जलवायु संकट और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभावों से निपटने के लिए रियायती वित्त की आवश्यकता और भी अधिक होगी। वह भी तब जब भले ही ताप वृद्धि 1.50 डिग्री सेल्सियस से 2.00 डिग्री सेल्सियस के अनुमन्य स्तर के बीच हो।

उदाहरण के लिए तटीय इलाकों में बढ़ते जल स्तर के खिलाफ अवरोध तैयार करना या उन्हें ऊंचे भौगोलिक इलाकों की ओर स्थानांतरित करने का काम व्यक्तिगत पहलों के भरोसे पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इसके लिए सामुदायिक स्तर पर पहल करने की आवश्यकता होगी और वह तब तक नहीं होगा जब तक कि सरकारों की ओर से रियायती मदद हासिल न हो।

इन अनुकूलन की आवश्यकताओं के लिए जरूरी फाइनैंसिंग आमतौर पर उस व्यय के अतिरिक्त होता है जो जलवायु परिवर्तन नहीं होने पर उन्होंने किया होता। इस लिहाज से जलवायु वित्त से जुड़ा कोई भी अहम कदम उठाते समय में कुछ बातों का ध्यान रखना होगा:

· विकासशील देशों में विकास के स्वीकार्य स्तर के लिए जरूरी निवेश तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के साथ ऐसा करने के लिए जरूरी अतिरिक्त निवेश के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए।
· जिन क्षेत्रों में अतिरिक्त निवेश को निवेश फंडिंग की सामान्य प्रक्रिया से हासिल किया जा सकता है तथा क्षेत्र जहां रियायती फंडिंग की आवश्यकता होगी उनका आकलन करना ताकि जलवायु के अनुकूल विकास किया जा सके।
· शहरी और ग्रामीण बस्तियों में तथा पारिस्थितिकी की लिहाज से संवेदनशील इलाकों में सामुदायिक स्तर पर उठाए जाने वाले कदमों की फाइनैंसिंग की आवश्यकता है ताकि उभरते जलवायु संबंधी जोखिम से निपटा जा सके। ये आकलन हर देश के लिए अलग-अलग होना चाहिए।

वैश्विक वित्तीय प्रवाह के लिए एक सहमति वाले ढांचे में मिश्रित वित्तीय रुख अपनाया जा सकता है जिसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक फंडिंग, स्वैच्छिक और दायित्ववाली विकास सहायता तथा स्वैच्छिक परोपकारी फंडिंग शामिल हो। अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक प्रवाह को निजी कॉर्पोरेट और वित्तीय संस्थानों द्वारा पर्यावरण सिद्धांत तथा जलवायु उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों की मदद से थोड़ा बहुत निर्देशित किया जा सकता है। साइंस बेस्ड टारगेट इनीशिएटिव, ग्लासगो फाइनैंशियल अलांयस फॉर नेट जीरो और फोर्स फॉर गुड इनीशिएटिव में ऐसा देखने को मिल रहा है।

सरकारों के बीच समझौतों में भी उस वित्तीय सहायता पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो विकास फंडिंग में शुद्ध वृद्धि के लिए आवश्यक है ताकि उभरते जलवायु जोखिम से निपटा जा सके। देशों के स्तर पर दायित्व आधारित फंडिंग की जरूरत का आवंटन अधिक कठिन काम है। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के आधार पर जलवायु न्याय सिद्धांत इसका तार्किक आधार हो सकते थे लेकिन खेद की बात है कि ऐसे सिद्धांतों पर कोई सहमति नहीं बन सकी है।

ऐसे में अंतरसरकारी जलवायु वित्त संबंधी चर्चा को स्वतंत्र संगठनों के हालिया अनुमानों के आधार पर अधिक उत्पादक बनाया जा सकता है। जहां तक विकसित देशों के योगदान की बात है तो इसे अमीर देशों के बीच संवाद की राजनीति पर छोड़ा जा सकता है। किसे पता है कि इसकी बदौलत ही उनके बीच जलवायु न्याय को लेकर संवाद आरंभ हो जाए।

First Published - July 21, 2023 | 11:00 PM IST

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