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क्या विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाना संभव है?

Last Updated- December 11, 2022 | 12:51 AM IST

काले धन की वापसी असंभव
वाई पी सिंह
पूर्व आईपीएस अधिकारी
विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस भारत लाना संभव नहीं हो पाएगा।
जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा किया है, वे आम भारतीय नागरिक नहीं हैं, बल्कि काला धन जमा करने वाले लोगों में देश के बड़े-बड़े नेता, प्रशासनिक अधिकारी और उद्योगपति शामिल हैं।
विदेशी बैंकों में भारत का कितना काला धन जमा है, इस बात के अभी तक कोई अधिकारिक आंकड़े सरकार के पास मौजूद नहीं हैं लेकिन स्विटजरलैंड के स्विस बैंक में खाता खोलने के लिए न्यूनतम जमा राशि 50 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इतनी मोटी रकम जमा करने वाला व्यक्ति आम आदमी तो हो नहीं सकता है।
दूसरी बात अभी तक विदेशी बैंकों में जमा काले धन को भारत वापस लाने के लिए हमारे पास ठोस कानून और सरकारी इच्छा शक्ति दोनों नहीं है और न ही निकट भविष्य में इसका निर्माण होने वाला है क्योंकि कानून बनाने वाले हमारे राजनेताओं, कानून का पालन करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों और कानून बनवाने और तोड़ने में अहम भूमिका रखने वाले उद्योगपतियों का ही विदेशी बैंकों में काला धन जमा है।
कानून की यह तिकडी ऌतनी बेवकूफ तो नहीं हो सकती है कि काले धन की पोल खोलकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ले। क्योंकि काले धन की सच्चाई का पता चलते ही कई बड़े चेहरों से काला नकाब भी हट जाएगा और उनकी गुनाहों की सूची बहुत लंबी होगी। जिसके लिए उनके ऊपर कई आपराधिक मुकदमे भी चलने शुरू हो जाएंगे।
लोगों के मन में सवाल उठता रहता है कि भारत से काला धन स्विस बैंक में पहुंचता कैसे है और वह किसका पैसा होता है? दरअसल हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत नीचे तक चली गई हैं। कोई भी काम करवाने के लिए रिश्वत देने और लेने का चलन चल गया है।
छोटी-मोटी रकम रिश्वत में जब दी जाती है तो वह देश में ही छिप जाती है लेकिन जब रिश्वतखोरी करोड़ों रुपये में होती है तो उसके लिए सबसे सुरक्षित जगह के लिए विदेशी जमीन को चुना जाता है। करोड़ों रुपये के लेन-देन में हवाला एजेंटों का सहारा लिया जाता है। अधिकारी और नेता करोड़ों रुपये घूस के रूप में लेते हैं।
अधिकारी या नेता खुद अपने हाथ में न लेकर हवाला एजेंटों के जरिये लेन-देन कराते हैं और यही हवाला एजेंट संबंधित अधिकारी या नेता के स्विस बैंक के खाते में जमा करा देते हैं। अवैध तरीके से देश के अंदर कमाये गए काले धन को विदेशी बैंकों में जमा कराने में अहम भूमिका निभाने वाले हवाला एजेंट लचर कानून के चलते देश को चूना लगा करअधिकारियों, नेताओं और उद्योगपतियों के खाते में जमा कर देते हैं।
हवाला एजेंटों को फॉरेन एक्सचेंज रेग्यूलेटर्स ऐक्ट का जो डर था, वह भी खत्म हो गया है। इसके तहत गलत तरीके से मुद्रा की हेराफेरी करने पर जुर्माना, गिरफ्तारी और आपराधिक मुकदमे का प्रावधान था। लेकिन सरकार अंतरराष्ट्रीय कारोबार को बढ़ावा देने के नाम पर इस कानून की जगह फॉरेन एक्सचेंज मेंटीनेंस ऐक्ट लेकर आई है।
इस कानून के तहत सिर्फ जुर्माना वसूला जाता है। यानी मुद्रा की हेरा फेरी करने वालों के बीच कानून का डर लगभग खत्म हो गया है। दूसरी एक बात और आज जमाना बहुत हाईटेक हो गया है अब नकद रकम की जगह लोग हेरा फेरी करते वक्त इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं जिससे उनके पास नकद रकम भी नहीं मिलती है।
मेरा जितना अनुभव है उसको देखते हुए मुझे नहीं लगता है कि निकट भविष्य में विदेशी बैंकों में जमा काला धन कोई भारत ला पाएगा क्योंकि हमाम में सभी नंगे हैं।
बातचीत : सुशील मिश्र
इच्छाशक्ति हो तो मुमकिन है
हितेश जैन
अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय
काले धन को वापस लाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकार प्रबल इच्छा शक्ति का परिचय दे। भारत आज कोई छोटा देश नहीं बल्कि एक ताकतवर देश है जो चाहे तो विदेशी जमीन पर हो रहे गोरखधंधों पर भी रोक लगा सकता है।
देश के अंदर कानून भी है जिसके तहत वह स्विस बैंक में जमा धन को वापस देश में ला भी सकता है। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉ के तहत सरकार स्विस बैंक या किसी दूसरे बैंक से जानकारी मांग सकती है।
उदाहरणस्वरुप नाइजीरिया के राष्ट्रपति ने 1996 में विदेशी कंपनी से मोटा कमीशन लेकर उसे स्विस बैंक में जमा करा दिया था, लेकिन जब नाइजीरिया सरकार ने स्विटजरलैंड सरकार से इस मामले में बात की तो स्विस बैंक ने न सिर्फ पैसों की पूरी जानकारी दी बल्कि इस मामले में शामिल लोगों की गिरफ्तारी में भी मदद की।
आज नाइजीरिया, स्विटजरलैंड और जर्सी मिलकर इस मामले की जांच कर रहे हैं। दूसरी तरफ अमेरिका के तेवर भी इस मामले में सख्त होते जा रहे हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के दबाव पर स्विटजरलैंड 29 मार्च, 2008 को यह घोषणा भी कर चुका है कि वह अंतरराष्ट्रीय जांच की प्रक्रिया में पूरा सहयोग करेगा। ऑस्ट्रेलिया और लक्जमबर्ग ने भी मदद करने का वादा किया है।
वैश्विक मंदी से दुनिया को बचाने के लिए आज पूरे विश्व के देशों को लगता है कि उनके देश का काला धन यदि निकल कर वापस आ जाए तो मंदी को मात दी जा सकती है। स्विस बैंक में जमा काले धन में भारतीयों की हिस्सेदारी ज्यादा है। कुछ महीनों पहले स्विस बैंक एसोसिएशन ने भी यह कहा था कि गोपनीय खातों में भारत के लोगों की 1,456 अरब डॉलर की राशि जमा है।
यह रकम रूस के 470 अरब डॉलर, ब्रिटेन के 390 अरब डॉलर और चीन के 96 अरब डॉलर के कुल धन से भी ज्यादा है। हालांकि ये आधिकारिक आंकडे नहीं थे फिर भी भारत स्विटजरलैंड सरकार से आधिकारिक आंकड़े मांग सकता है। भारत प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति या संस्था की जांच कर सकता है, फिर चाहे पैसों का लेन-देन भारत की जमीन पर हुआ हो या बाहर।
दूसरे आपराधिक मामलों में सरकार को साबित करना पड़ता है कि वह व्यक्ति गलत है, लेकिन पैसों के मामले में इसके उलट व्यक्ति को सफाई देनी होती है। जिस व्यक्ति के पास ज्यादा पैसा होता है, उसको यह बताना पड़ता है कि वह इतना पैसा लाया कहां से और कैसे? मेरे कहने का मतलब यह है कि दूसरे मामलों की तरह पैसों के मामले में भी बचकरनिकलना आसान नहीं होता है।
देश को आज पैसों की जरूरत है, काले धन को पकड़ने का कानून भी है। देश के पास ताकत भी है और वैश्विक स्तर पर काला धन जमा करने वाले बैंकों के खिलाफ माहौल भी तैयार हो चुका है। ऐसे में देश की सरकार यदि जाति, धर्म और पार्टी लाइन से ऊपर उठकर काम करती है तो विदेशी बैंकों में जमा लाखों करोड़ों  रुपया भारत वापस आ सकता है।
काले धन की समस्या से सिर्फ भारत ही नहीं परेशान है बल्कि पूरा विश्व इस समय काले धन की मार से काजल की कोठरी हुआ जा रहा है, इसलिए भारत अगर प्रबल इच्छा शक्ति से साथ स्विटजरलैंड सरकार से उसके यहां के बैंकों में जमा भारतीयों के धन और खाते के बारे में जानकारी मांगता है तो स्विटजरलैंड को जानकारी देनी ही पड़ेगी और जो वैश्विक स्तर पर माहौल बनेगा उसको देखते हुए गुनहगार भी बचकर नहीं निकल पाएगा, साथ ही भारत को एक बहुत ही बड़ी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक विजय भी प्राप्त हो जाएगी जो भारत को महाशक्ति बनाने में सहायक भी होगा।   
बातचीत : सुशील

First Published - April 15, 2009 | 11:59 PM IST

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