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बुनियादी ढांचा: चुनाव, घोषणा पत्र और बुनियादी एजेंडा

भारत को बुनियादी ढांचे पर अपना खर्च वित्त वर्ष 2024 में अनुमानित 20 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर वित्त वर्ष 2029 में 42 लाख करोड़ रुपये करना होगा।

Last Updated- March 12, 2024 | 10:02 PM IST
चुनाव, घोषणा पत्र और बुनियादी एजेंडा, Elections, manifestos, and the infra agenda

प्रमुख राजनीतिक दलों के 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों के घोषणा पत्र पढ़ने में रोचक लग सकते हैं। परंतु, यह समय पीछे मुड़कर देखने का नहीं है। इसके बजाय हमें बुनियादी क्षेत्र की जरूरतों के हिसाब से भविष्य पर ध्यान केंद्रित करना होगा। महत्त्वपूर्ण मुद्दा अब उन संसाधनों की पहचान करना है, जिन्हें देश में अगले पांच साल के दौरान निवेश करने की आवश्यकता होगी। इसके लिए तीन बुनियादी सार्वजनिक व्यय सिद्धांतों को समझना और उन पर अमल करना होगा।

पहला, फरवरी 2023 में बजट के बाद वित्त मंत्रालय के एक बहुत ही वरिष्ठ अ​धिकारी ने राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल पर चर्चा के दौरान खुलासा किया था कि सरकार के पास ऐसे गोपनीय आंकड़े हैं जिनसे संकेत मिलते हैं कि बुनियादी ढांचे पर खर्च किया गया 1 रुपया सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 3 रुपये का योगदान देता है।

वहीं किसी भी प्रकार के डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी यानी सरकारी स​ब्सिडी का पैसा सीधे लाभा​र्थी के खाते में भेजना) पर खर्च एक रुपया जीडीपी में 90 पैसे का योगदान देता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सार्वजनिक व्यय का बड़ा हिस्सा बुनियादी ढांचे में झोकना जारी रखना होगा। यह आवश्यक रूप से आ​र्थिक रणनीति का हिस्सा होना चाहिए।

दूसरे, अब मुख्यधारा के राजनीतिक दल आम तौर पर यह मानने लगे हैं कि बुनियादी ढांचे पर निवेश का भारत का लक्ष्य अथवा आधारभूत ढांचे में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफआई) जीडीपी के 8 प्रतिशत के स्तर पर रहना चाहिए। तीसरे, बुनियादी ढांचा खर्च में सामान्य नियम यह है कि केंद्रीय बजट आधारभूत ढांचे के लिए परिव्यय के रूप में जैसा भी प्रस्ताव पेश करे, उसके लिए राज्यों, निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित अतिरिक्त बजट संसाधनों से बराबर धनरा​शि की व्यवस्था होती है। राजनीतिक दलों को अपना घोषणापत्र तैयार करते समय निम्न बिंदुओं पर गहराई से विचार करना होगा:

पहला, भारत को बुनियादी ढांचे पर अपना खर्च वित्त वर्ष 2024 में अनुमानित 20 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर वित्त वर्ष 2029 में 42 लाख करोड़ रुपये करना होगा।

दूसरा, केंद्रीय बजट को वित्त वर्ष 2029 में अपनी आवंटन 21 लाख करोड़ रुपये करने में सक्षम होना होगा, जो बीते 1 फरवरी को पेश अंतरिम बजट में 11.1 लाख करोड़ रुपये रहा।

तीसरा, यदि आवं​टित धनरा​शि को स्वास्थ्य और ​शिक्षा के साथ-साथ कृ​षि और रक्षा जैसी सामाजिक मदों में खर्च करना चाहते हैं तो इ​च्छित कुल निवेश के लक्ष्य को पाने के लिए प्रमुख आधारभूत क्षेत्रों में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल अपनाने की दिशा में गंभीरता से प्रयास किए जाने चाहिए।

हालांकि चुनाव इस प्रकार के व्यापक आ​​र्थिक मामलों की व्याख्या करके जीते या हारे नहीं जाते। आम आदमी के लिए जो चीज मायने रखती है, वह है घोषणा पत्र में ऐसे वादे जो उसके जीवन स्तर को सुधारने और बेहतर बनाने में सहायक होने का रास्ता दिखाएं।

शहरी मतदाताओं के लिए परिवहन और घर-मकान की सुविधा जैसे मुद्दे महत्त्वपूर्ण होते हैं। यह जगजाहिर है कि शहरी क्षेत्रों में आम लोग हर रोज यातायात की समस्या से जूझते हैं, क्योंकि यह सच है कि कई मामलों में मेट्रो रेल परियोजना यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने की दृ​ष्टि से लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है।

चरमराई शहरी यातायात व्यवस्था को सुधारने का एकमात्र उपाय सरकार द्वारा एकीकृत महानगरीय परिवहन प्रा​धिकरण और छोटे शहरों के लिए अंतर-संपर्क सार्वजनिक परिवहन जैसी पूर्व में घो​षित नीतियों को गंभीरता से लागू करने से हो सकता है। शहरों में दूसरा गंभीर मुद्दा आवास का है।

किसी भी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में झुग्गी-झोपड़ी की पुनर्विकास योजना के साथ-साथ समाज के वंचित तबके के ​लिए नई आकर्षक आवास योजना के लिए आक्रामक नीतियों का स्पष्ट जिक्र होना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में दो ऐसे मुद्दे हैं, जो लोगों को सीधे प्रभावित करते हैं। इनमें एक है पानी और दूसरा सौर ऊर्जा।

दोनों ही ग्रामीण आजीविका और उद्यमिता बढ़ाने की दृ​ष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। पूंजीगत व्यय के मामले में नल से जल नाम से विख्यात जल जीवन मिशन योजना का व्यापक तौर पर प्रसार हो चुका है। अब नंबर आता है इसके सबसे मु​श्किल हिस्से यानी रखरखाव और संचालन का। इसके लिए जल जीवन मिशन ने ग्राम पंचायत के अंतर्गत पानी समिति बनाकर योजना की लाभा​र्थी जनता को ही इससे जोड़ने का फैसला लिया है, जो गांवों में जल आपूर्ति की योजना बनाने, लागू करने, संचालन और रखरखाव आदि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए पूरे देश में बड़ी संख्या में कुशल प्लमर, राजमिस्त्री, पंप मैकेनिक और गुणवत्ता नियंत्रण विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है यानी व्यापक स्तर पर नौकरियां पैदा करने में यह योजना खास भूमिका निभाती है। देशभर में लगभग 600,000 गांव हैं। यदि एक गांव में 15 लोगों को भी जल जीवन मिशन योजना के तहत रोजगार से जुड़ा मान लिया जाए तो पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 90 लाख नौकरियों तक पहुंचती है। कुछ इसी प्रकार की कार्ययोजना हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा घो​षित रूफ टॉप सोलर यानी सौर ऊर्जा योजना को लागू करने में अपनानी होगी। राष्ट्रीय स्तर पर तीन योजनाओं का भी सुझाव है।

इनमें सबसे पहली तटीय आ​र्थिक जोन (सीईजेड) योजना है, जिसकी जोरदार वकालत नीति आयोग में उपाध्यक्ष रहते अरविंद पनगढि़या ने भी की थी। इन प्रस्तावित सीईजेड योजना का उद्देश्य श्रम और निर्यातोन्मुख उद्योगों को बढ़ावा देना है।

दूसरी ग्रीन अर्थव्यवस्था है, जिसके तहत हरित बदलाव फंड, हरित हाइड्रोजन का उपयोग, पर्याप्त चार्जिंग ढांचे के साथ बिजली चालित वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए पंप भंडारण आदि को अपनाना है। सबसे अंत में देश के नागरिक आधारभूत ढांचे को सुधार कर उसे उन्नत करना होगा।

इसके लिए शहरी निकायों में म्यूनिसिपल बॉन्ड जारी करने के लिए तयशुदा कार्ययोजना अपनाने से इनकार नहीं किया जा सकता। बजट भाषणों में तो इन म्यूनिसिपल बॉन्ड का जोर-शोर से ऐलान किया जाता है, परंतु इन पर अमल होना अभी बाकी है। राजनीतिक दलों को अपने घोषणा पत्रों में इन पहलुओं को शामिल कर विकसित भारत का प्रासंगिक और प्रकाशवान रास्ता बनाने का प्रयास करना चाहिए।

(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंधन ट्रस्टी भी हैं।)

First Published - March 12, 2024 | 10:02 PM IST

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