नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित बिज़नेस स्टैंडर्ड मंथन कार्यक्रम में 27 मार्च, 2024 को सूचना-प्रौद्योगिकी, संचार एवं रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की। वैष्णव ने कहा कि दुनिया में सेमीकंडक्टर का बाजार इस समय 75 अरब डॉलर का है, जो अगले 6-7 वर्षों में दोगुना हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारत खास मकसद से अपनी क्षमताएं विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
उन्होंने दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कही कि तकनीक में रुचि रखने वाले लोग आसानी से मिलने, हरित ऊर्जा की उपलब्धता और विशेष रसायन विनिर्माण तंत्र ऐसे कारक हैं जो भारत के पक्ष में जाते हैं। तीसरी अहम बात उन्होंने यह कही कि भारत पूर्ण मूल्य श्रृंखला (वैल्यू चेन) में एक बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। इनमें नई चिप से लेकर इनका ढांचा तैयार करने एवं इनकी जांच कर इन्हें फैब्रिकेशन (विनिर्माण) संयंत्र तक ले जाना शामिल हैं। चौथी बात उन्होंने यह कही कि भारत अपनी आर्थिक सुरक्षा मजबूत करने के उद्देश्य से भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
वैष्णव की टिप्पणी ऐसे समय में आई जब वैश्विक मंच पर हलचल तेज हो गई है। अमेरिका का वाणिज्य विभाग चिप निर्माण के लिए 39 अरब डॉलर के अनुदान की पुनर्संरचना कर रहा है। ऐसा समझा जाता है कि अमेरिका ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) को 11.6 अरब डॉलर का अनुदान देगा। इस रकम के साथ चिप बनाने वाली दुनिया की इस शीर्ष कंपनी को अमेरिका में अपनी पैठ बढ़ाने में मदद मिलेगी। अमेरिकी अनुदान के लिए अन्य कंपनियां भी कतार में खड़ी हैं जिनमें इंटेल, सिक्योर इंक्लेव, ग्लोबल फाउंड्रीज, माइक्रोचिप टेक, बीएई सिस्टम्स सहित कुछ अन्य शामिल हैं। जापान और यूरोपीय संघ भी ऐसे ही कदम उठा रहे हैं।
भारत में सरकार ने ‘डेवलपमेंट ऑफ सेमीकंडक्टर्स ऐंड डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग ईकोसिस्ट्मस इन इंडिया’नीति के तहत सेमीकंडक्टर इकाइयों की स्थापना को मंजूरी दी है। यह नीति 21 दिसंबर 2021 को अधिसूचित हुई थी और 76,000 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे। इस नीति का मकसद भारत को आत्मनिर्भर और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के ढांचा एवं विनिर्माण का एक वैश्विक केंद्र बनाना है।
इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए केंद्र सरकार परियोजना लागत का 50 फीसदी हिस्सा वित्तीय मदद के रूप में देगी। यह नीति विशेष तौर पर सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन यूनिट, डिस्प्ले फैब्स और कम्पाउंड सेमीकंडक्टर, सिलिकन फोटोनिक्स, सेंसर्स और असेंबली एवं टेस्टिंग संयंत्र की स्थापना के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देगी।
राज्य सरकारें भी इस दिशा में आगे कदम बढ़ा रही हैं। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार से 50 फीसदी समर्थन के अलावा गुजरात सरकार ने टाटा की परियोजना के लिए 20 फीसदी पूंजी समर्थन देने का वादा किया है। टाटा जैसी कई परियोजनाएं इस नीति के अंतर्गत काम कर रही हैं।
गुजरात के साणंद में माइक्रॉन की असेंबली एवं टेस्टिंग संयंत्र ने सितंबर 2023 में निर्माण शुरू किया था। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स गुजरात के धोलेरा में 91,000 करोड़ रुपये निवेश से एक सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने की तैयारी कर रही है। कंपनी ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प (पीएसएमसी) के साथ साझेदारी कर रही है। टाटा सेमीकंडक्टर असेंबली ऐंड टेस्ट (टीएसएटी) प्राइवेट लिमिटेड की अगुवाई में दूसरी परियोजना के तहत असम के मोरीगांव में 27,000 करोड़ रुपये के साथ पैकेजिंग एवं टेस्टिंग संयंत्र की स्थापना की जाएगी।
एक अन्य कंपनी सीजी पावर, रेनेसां इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन और स्टार्स माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स के साथ मिलकर गुजरात के साणंद में 7,600 करोड़ रुपये निवेश के साथ असेंबली एवं टेस्टिंग संयंत्र की स्थापना करेगी। टाटा-पीएसएमसी प्रस्ताव एकमात्र ऐसा फैब्रिकेशन संयंत्र है जिसे अब तक सरकार की मंजूरी मिली है। यह भी समझा जा रहा है कि दुनिया के कुछ अन्य देश भारत में प्रवेश करने की रणनीति (स्थान और स्थानीय साझेदार की तलाश) को अंतिम रूप देने के लिए सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं।
तकनीक एवं इलेक्ट्रॉनिक्स के लिहाज से बात करें तो चिप और सेमीकंडक्टर का एक दूसरे से गहरा रिश्ता है मगर ये एक जैसे नहीं हैं। सेमीकंडक्टर एक प्रकार की ऐसी सामग्री होती है जो बिजली के चालक और कुचालक के बीच की श्रेणी है। दूसरी तरफ इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी) या माइक्रोचिप को चिप कहते हैं। यह एक छोटा सेमीकंडक्टर होता है जिस पर हजारों या लाखों छोटे इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जे जैसे ट्रांजिस्टर, कैपेसिटर और रेसिस्टर तैयार किए जाते हैं।
ये कलपुर्जे एक विशेष कार्य- जैसे कंप्यूटर में डेटा प्रोसेसिंग या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नियंत्रित करना- पूरे करने के लिए एक दूसरे से जुड़े होते हैं। चिप काफी पेचीदा उत्पाद होते हैं जिन्हें बनाना आसान नहीं होता है। फैब्रिकेशन विशिष्ट संयंत्रों में होता है जिन्हें सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र या ‘फैब’ के नाम से जाना जाता है। इन संयंत्रों में फोटोलिथोग्राफी, एचिंग (निक्षारण), डोपिंग और मेटलाइजेशन की मदद से सिलिकॉन वेफर पर चिप का भौतिक ढांचा तैयार किया जाता है।
इस कार्य में तकनीक की गहरी समझ की जरूरत होती है। इसके अलावा लागत के स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने से एक ऐसी अलग किस्म की आपूर्ति व्यवस्था तैयार हो गई है, जिसमें कुछ ही कंपनियां हैं। सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को डेटा प्रोसेस, स्टोर और ट्रांसमिट करने के लिए आवश्यक क्षमताओं से लैस करता है। ये एकीकृत सर्किट होते हैं जो सिलिकॉन से बने होते हैं।
कुछ वर्ग मिलीमीटर में अरबों इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों की पैकिंग से ये सर्किट तैयार होते हैं। हमारे इर्द-गिर्द जितनी भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं हैं उन सभी के लिए चिप महत्त्वपूर्ण होते हैं। स्मार्टफोन, सर्वर, आधुनिक कारें, मशीनरी एवं ऑटोमेशन, महत्त्वपूर्ण ढांचे और यहां तक कि रक्षा प्रणाली, सभी में चिप की मौजूदगी होती है। भारत में चिप की मांग अधिक है मगर यह सुस्त उपभोक्ता देश है और भू-राजनीतिक तनाव से आपूर्ति व्यवस्था को होने वाले नुकसान की जद में आ सकता है।
उदाहरण के लिए कोविड-19 के दौरान चिप की कमी और हुआवे पर अमेरिकी प्रतिबंध बाहरी आपूर्तिकर्ताओं पर भारत की निर्भरता को रेखांकित करती हैं। फिलहाल भारत सेमीकंडक्टर का आयात (100 फीसदी) करता है। मिल रहे संकेतों के अनुसार आयात का आंकड़ा साल 2030 तक बढ़कर 110 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। इसे देखते हुए अति महत्त्वपूर्ण एवं उच्च-तकनीक वाले इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अनुरूप सेमीकंडक्टर आपूर्ति व्यवस्था का स्थानीयकरण करना जरूरी हो गया है। स्पष्ट रूप से भारत सरकार ने इसके लिए कई निर्णायक कदम उठाए हैं।
साल 2019 के शुरू में सरकार ने सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्रों को ‘आधारभूत दर्जा’ दे दिया था। ऐसा पहली बार था जब एक विनिर्माण संयंत्र आधारभूत ढांचे की आधिकारिक परिभाषा में शामिल किया गया था। पूंजीगत सब्सिडी आवंटन की प्रक्रिया अगला तर्कसंगत कदम थी। इस उद्योग की संवेदनशीलता, वैश्विक, तकनीकी एवं निवेश संबंधी चुनौतियों को देखते हुए सरकार को दिलचस्पी दिखाने वाली संभावित इकाइयों की जरूरतें पूरी करने के लिए पूंजी सब्सिडी फंड का आकार बढ़ाना एक उपयुक्त विकल्प लग सकता है। देश कुछ और कंपनियों के साथ अपने डिजिटल ढांचे को और ताकत देने के लिए तैयार है।
( लेखक आधारभूत ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। साथ में अचिंत्य तिवारी और वृंदा सिंह)