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India-UK FTA: भारत-ब्रिटेन व्यापार सौदे के संभावित परिणाम

India-UK FTA: भारत के सामने भविष्य में कुछ जटिल वार्ताएं हैं जो घरेलू नीतिगत गुंजाइश और आर्थिक हितों को सीमित कर सकती हैं।

Last Updated- April 01, 2024 | 9:18 PM IST
भारत-यूके रिश्तों में अहम प्रवासन, निर्यात, Higher exports and migration marked post-Covid UK ties with India

गत 12 मार्च को टेलीफोन पर बातचीत में भारत और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री इस बात पर सहमत हुए कि वे साझा लाभ वाले मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को जल्दी अंजाम तक पहुंचाने के लिए काम करेंगे। हम आशा कर सकते हैं कि चुनाव के बाद देश में नई सरकार बनते ही भारत-ब्रिटेन एफटीए पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद ब्रिटेन के लिए एफटीए नई व्यापार साझेदारियां स्थापित करने की रणनीति का हिस्सा है।

इस बीच भारत भी तेजी से नए एफटीए को अंजाम दे रहा है मानो वह अपनी संरक्षणवादी छवि में बदलाव कर रहा हो। यह बदलाव तब आया जब नवंबर 2019 में भारत अचानक 16 देशों वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) वार्ता से बाहर हो गया।

बीते चार वर्षों में भारत ने मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (एफ्टा) के देशों मसलन स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिक्टनस्टाइन के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए हैं। ब्रिटेन के साथ एफटीए आरसेप से बाहर आने के बाद भारत का पांचवां एफटीए होगा। भारत के एफटीए साझेदारों ने तेज वार्ता की रणनीति पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है क्योंकि भारत के साथ एफटीए उन्हें एक बड़े उभरते बाजार तक पहुंच प्रदान करता है वह भी उच्च टैरिफ से बचकर।

माना जा रहा है कि एफटीए से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ेगा। वित्त वर्ष 2023 में भारत और ब्रिटेन का आपसी व्यापार 57 अरब डॉलर से अधिक हो गया। भारत ने जितना खर्च किया उससे 13.34 अरब डॉलर अधिक की राशि अर्जित की। भारत ने 11.40 अरब डॉलर की वस्तुओं और 23.80 अरब डॉलर की सेवाओं का निर्यात ब्रिटेन को किया और उससे 8.96 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं और 12.90 अरब डॉलर मूल्य की सेवाओं की खरीद की।

दोनों देशों ने जनवरी 2022 में एफटीए को लेकर बातचीत शुरू की। इस वार्ता में 26 विषय शामिल हैं जिसमें वस्तु एवं सेवा व्यापार, बौद्धिक संपदा, सरकारी खरीद, स्रोत के नियम, व्यापार और टिकाऊ विकास, श्रम, लिंग और डिजिटल व्यापार आदि हैं। बातचीत के प्रमुख विषयों में से कुछ के अनुमानित परिणाम इस प्रकार हैं:

वाणिज्यिक उत्पाद व्यापार: भारत ब्रिटेन को जो निर्यात करता है उसका आधा से अधिक हिस्सा यानी करीब 6 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात पेट्रोलियम, औषधि, हीरे, मशीनों के कलपुर्जे, विमान और लकड़ी के फर्नीचर आदि पहले ही बिना आयात शुल्क के ब्रिटेन जाते हैं। ऐसे में इन निर्यातों को शुल्क दरों में संभावित कमी का कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा। बहरहाल करीब 5 अरब मूल्य का अन्य निर्यात जिमसें वस्त्र, कपड़ा, जूते-चप्पल, कालीन, कारें, समुद्री भोजन, अंगूर और आम शामिल हैं, उन्हें लाभ होगा क्योंकि अभी उन पर शुल्क चुकाना होता है।

इस व्यापार में ब्रिटेन को अधिक लाभ होगा क्योंकि भारत आने वाले उसके 91 फीसदी उत्पादों पर औसत से उच्च आयात शुल्क लगता है। ऐसे अधिकांश उत्पादों को भारत द्वारा शुल्क हटाए जाने का लाभ मिलेगा। भारत ब्रिटेन से आने वाली कारों पर आयात शुल्क को 100 फीसदी से कम करके 50 फीसदी कर सकता है तथा कुछ कारों को वह 25 फीसदी की न्यूनतम शुल्क दर पर भी आने दे सकता है।

इलेक्ट्रिक वाहनों पर भारत पहले ही शुल्क दर कम कर चुका है और उसे 100 फीसदी से कम करके 15 फीसदी तक कर दिया गया है। इससे संकेत मिलता है कि भारत ब्रिटेन को बेहतर पेशकश कर सकता है। इसी प्रकार वाइन के मामले में भारत आयात शुल्क को अगले 10 वर्ष में 150 फीसदी से कम करके 25 फीसदी कर सकता है। ऑस्ट्रेलिया और स्विस वाइन के मामले में ऐसा हो चुका है। यानी कुछ सालों में 90 फीसदी द्विपक्षीय व्यापार शुल्क मुक्त हो जाएगा और व्यापार बढ़ेगा।

सेवा: भारत अपनी सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए अधिक बाजार पहुंच चाहता है। उसने ब्रिटेन से अनुरोध किया है कि वह भारतीय पेशेवरों को अल्पकालिक कामों के लिए प्राथमिकता पर वीजा प्रदान करे। बहरहाल, बड़ी तादाद में अल्पकालिक कामकाजी वीजा पाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन में प्रवासियों को लेकर चिंता बढ़ी है। ब्रिटेन दूरसंचार, विधिक और वित्तीय सेवा क्षेत्र को विदेशी प्रतिस्पर्धा के लिए खोलने की भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दे सकते हैं।

ब्रिटेन के उत्पादकों को भारत सरकार के खरीद वाले क्षेत्रों को बिक्री की इजाजत देना उन्हें भारतीय कंपनियों के समकक्ष बना देगा। वहीं भारतीय कंपनियों को ब्रिटेन में सरकारी खरीद बाजार में तगड़ी प्रतिस्पर्धा और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र में भारत को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

गैर कारोबारी मुद्दों पर होने वाली बातचीत में कई जटिल क्षेत्र शामिल हैं जो भारत के घरेलू नीतिगत क्षेत्र और आर्थिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं। उनमें से प्रमुख हैं:

1. भारत अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप को बचाने के लिए डेटा को स्थानीय रूप से रखने का हिमायती है जबकि ब्रिटेन के अबाध डेटा प्रवाह चाहता है और डिजिटल कारोबार के लिए न्यूनतम बाधाएं।

2. एक विकसित देश के रूप में ब्रिटेन को एफटीए में पर्यावरण और श्रम के क्षेत्र में उच्च मानकों को शामिल करना होगा। भारत सख्त प्रावधानों को लेकर सतर्क है क्योंकि वे उस पर आर्थिक बोझ डाल सकते हैं या उसकी प्रतिस्पर्धी बढ़त पर असर डाल सकते हैं।

3. भारत इस बात से अवगत है कि एफटीए में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं मसलन अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन समझौते, पेरिस समझौते आदि का पालन भी पुरानी गैर बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं को प्रवर्तनीय दायित्वों में बदल सकता है। इससे नीति निर्माण का लचीलापन कम हो सकता है और ब्रिटेन द्वारा भारत के कपड़ों और अन्य श्रम आधारित निर्यात पर गैर टैरिफ अवरोध लगाने को उचित ठहराया जा सकता है।

4. भारत ट्रिप्स प्लस मानकों को अपनाने को लेकर भी सतर्क है और यह बात जेनरिक दवा उद्योग तथा दवाओं तक पहुंच को प्रभावित कर सकती है। ब्रिटेन डेटा की विशिष्टता को लेकर ऐसे प्रावधान चाहता है जो जेनरिक दवा बनाने वालों को एक खास समय के लिए मूल कंपनियों द्वारा प्रस्तुत चिकित्सकीय परीक्षण के डेटा पर भरोसा करने से रोकता है। भारत इस पर सहमत नहीं हो सकता है क्योंकि डेटा विशिष्टता जेनेरिक दवाओं की राह में देरी का सबब बन सकती है। इससे भारत और वे देश प्रभावित हो सकते हैं जो भारत की सस्ती जेनेरिक दवाओं पर निर्भर हैं।

5. एक और दिक्कत यह है कि भारत पहले ही टिकाऊपन, श्रम और बौद्धिक संपदा अधिकारों को लेकर ईएफटीए देशों के साथ एफटीए में कई प्रतिबद्धताएं जता चुका है। अब उसे और महत्त्वाकांक्षी प्रतिबद्धताओं को अपनाने का दबाव झेलना पड़ सकता है।

6. भारत और ब्रिटेन द्विपक्षीय निवेश समझौते पर भी बातचीत कर रहे हैं। ब्रिटेन बिना उसे अंतिम रूप दिए एफटीए पर हस्ताक्षर करने का अनिच्छुक है। दोनों देशों के रवैये में बहुत अंतर है लेकिन एफटीए को पूरा करने के लिए वे सहमत हो सकते हैं।

7. ब्रिटेन की कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) व्यवस्था जनवरी 2026 से लागू हो सकती है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। सीबीएएम के साथ ब्रिटेन के उत्पाद बिना शुल्क के भारत आ सकते है लेकिन ब्रिटेन जाने वाले भारतीय उत्पादों को 12-24 फीसदी तक का शुल्क देना पड़ सकता है। भारत को इसे स्पष्ट करना चाहिए।

ब्रिटेन के साथ एफटीए भारत की 15वीं व्यापक व्यापार संधि होगी और अब वक्त आ गया है कि सरकार इस बात पर प्रकाश डाले कि एफटीए ने किस तरह निर्यात, आयात, निवेश और अन्य क्षेत्रों को प्रभावित किया है। ये जानकारियां कंपनियों को उल्लेखनीय जानकारी दे सकती हैं और मौजूदा व्यापार चर्चाओं को आकार देने में मददगार साबित हो सकती हैं।

(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनी​शिएटिव के संस्थापक हैं)

First Published - April 1, 2024 | 9:18 PM IST

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