प्रिंसटन विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक जॉन एरिस्टॉटल फिलिप्स ने एक शोध पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने बताया कि परमाणु बम कैसे बनाया जाता है। इसके लिए उन्होंने केवल उसी जानकारी का इस्तेमाल किया, जो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध थी। फिलिप्स की मंशा यह साबित करने की थी कि तकनीकी ज्ञान आसानी से उपलब्ध है और उसका इस्तेमाल बखूबी किया जा सकता है।
अगर आप परमाणु हथियार बनाने का तरीका जानते हैं तो उसे बनाने के लिए आपको संवर्द्धित रेडियोएक्टिव सामग्री की जरूरत पड़ती है, जो आसानी से नहीं मिलती। हथियार में इस्तेमाल होने वाले दूसरे उपकरण उन सभी देशों में बनाए जा सकते हैं, जहां कार बनती हैं। फिलिप्स ने वह यंत्र तैयार किया और पूरा हिसाब-किताब लगा लिया। उन्हें परामर्श देने का काम महान शख्सियत फ्रीमैन डायसन कर रहे थे। डायसन ने शोधपत्र को ‘ए’ ग्रेड दिया यानी उत्कृष्ट करार दिया और फिर उसे सार्वजनिक पहुंच से दूर कर दिया।
बाद में उत्तर कोरिया और पाकिस्तान ने यूरेनियम संवर्द्धन करने वाले उपकरण मंगा लिए और परमाणु हथियार बना डाले। ईरान, सीरिया और इराक अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं प्रतिबंधों के कारण ऐसा नहीं कर पाए हैं। उन्हें ये बम बनाने से रोकने के लिए उनके रिएक्टरों पर हवाई हमले और उपकरणों पर साइबर हमले किए गए हैं। उनके वैज्ञानिकों की चुन-चुन कर हत्या भी की गई है। इससे एक बात तो साबित हो गई कि फिलिप्स की बात में दम था।
अगस्त 2024 में यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू में गणित पढ़ रहे 20 साल के एक युवक ने फ्यूजर बनाने की ठानी। फ्यूजर एक यंत्र होता है, जो जो इलेक्ट्रोस्टैटिक क्षेत्र (ऐसा विद्युतीय क्षेत्र, जो समय के साथ बदलता नहीं) का इस्तेमाल कर आयनों की गति इतनी बढ़ा देता है कि न्यूक्लियर फ्यूजन या नाभिकीय संलयन हो जाता है। इसमें दो या अधिक परमाणुओं के नाभिक या न्यूक्लियस आपस में जुड़कर एक या अधिक न्यूक्लियस बनाते हैं। इस प्रक्रिया में न्यूट्रॉन भी निकलते हैं।
परमाणु बम (जैसा फिलिप्स ने डिजाइन किया था और जैसा बम हिरोशिमा पर गिराया गया था) न्यूक्लियर फिशन या नाभिकीय विखंडन पर काम करता है, जिसमें न्यूक्लियस के टुकड़े कर दिए जाते हैं। इससे निकले कणों से अपार ऊर्जा उत्पन्न होती है।
सितारे और हाइड्रोजन बम फ्यूजन के सिद्धांत पर काम करते हैं। इनमें पर्याप्त उष्मा यानी गर्मी और दाब के वातावरण में तत्वों को एक साथ दबाया जाता है। उनका रूप बदल जाता है और बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न होता है। फ्यूजन में रेडिएशन बहुत कम होता है और पदार्थ का ज्यादा हिस्सा ऊर्जा में तब्दील होता है। लेकिन इसके लिए बहुत अधिक गर्मी और दाब की जरूरत होती है।
न्यूक्लियर फिशन रिएक्टर बहुत आम हैं, जिनमें नियंत्रित तरीके से बिजली पैदा की जाती है। लेकिन अभी तक कोई फ्यूजन रिएक्टर नहीं बना पाया है, जिसमें फ्यूजन शुरू होने के लिए जरूरी ऊर्जा से भी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
फ्यूजन रिएक्टरों में आम तौर पर ड्यूटेरियम का इस्तेमाल होता है, जो हाइड्रोजन का अधिक सक्रिय आइसोटोप होता है। आइसोटोप वे तत्व होते हैं, जिनके परमाणु में प्रोटॉन की संख्या तो एक बराबर होती है मगर न्यूट्रॉन की संख्या अलग होती है। ड्यूटेरियम की बहुत कम मात्रा पानी में मिलती है, जिसे आसानी से अलग किया जा सकता है। भारत में करीब 25,000 रुपये में 100 ग्राम ड्यूटेरियम वाटर मिल जाता है, जो कई प्रयोगों के लिए पर्याप्त होता है।
फ्यूजर में दो गोलाकार ग्रिड इस्तेमाल किए जाते हैं। इनका केंद्र तो एक ही होता है मगर जिनके विद्युत विभव (इलेक्ट्रिक पोटेंशियल) में बहुत अंतर होता है। जब ड्यूटेरियम गैस या ड्यूटेरियम वाटर की भाप को इनके बीच रखा जाता है तो इलेक्ट्रिक फील्ड ड्यूटेरियम आयनों को तेजी से केंद्र की तरफ धकेलती है, जिससे आयन आपस में टकराते हैं और कभी-कभी फ्यूजन हो जाता है। फ्यूजर का इस्तेमाल शोध, शिक्षा में और न्यूट्रॉन के स्रोत के तौर पर प्रयोगशालाओं एवं विश्वविद्यालयों में होता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू के जिस छात्र का जिक्र हमने ऊपर किया था उनका नाम हुदैफा नजूरदीन है। श्रीलंका के हुदैफा को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हुदजा कहा जाता है। हुदजा को न तो भौतिकी आती है और न ही हार्डवेयर के बारे में कुछ पता है। हुदजा ने एंथ्रॉपिक के एआई क्लॉड प्रोजेक्ट्स से मदद ली और डाक से कल-पुर्जे तथा ड्यूटेरियम वाटर मंगाकर फ्यूजर तैयार कर लिया। उन्होंने 36 घंटे तक इसका सीधा प्रसारण किया और अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सबस्टैक पर इसका तकनीकी ब्योरा भी दिया है। क्लॉड की मदद से इस शोध में कुल 51 घंटे लगे और लार्सन ऐंड टुब्रो के एक हफ्ते में 90 घंटे काम करने के सिद्धांत के हिसाब से उन्होंने बहुत कम समय में इसे कर दिखाया (बेशक हुदजा ने शादी नहीं की है)।
क्लॉड प्रोजेक्ट्स में यूजर किसी काम से जुड़े शब्द, फोटो और जानकारी का भंडार या रिपॉजिटरी तैयार कर सकते हैं। जैसे-जैसे रिपॉजिटरी में और जानकारी जुड़ती जाती है, मॉडल की ट्रेनिंग बेहतर होती जाती है।
क्लॉड इस शोध एवं विकास में अपनी मर्जी से नहीं आया था। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) को परमाणु ऊर्जा पर चर्चा करने से रोका जाता है। फ्यूजर बनाने में बहुत जोखिम है। हुदजा जल-भुन सकते थे या तगड़े रेडिएशन के शिकार हो सकते थे। मगर हुदजा ने क्लॉड की सुरक्षा में सेंध लगा लिया। उनके प्रोजेक्ट में भौतिकी के जानकारों के साथ ई-मेल थे, पुर्जों की सूची थी, स्प्रेडशीट थीं, किताबों के अंश थे और चित्र भी थे। उन्होंने छोटी-छोटी बारीकियों पर सवाल किए थे। आखिरकार उन्हें मनचाही जानकारी मिल गई और उनकी जान भी नहीं गई।
हुदजा उस पीढ़ी से आते हैं, जो एआई का खूब इस्तेमाल करती है। वह किताबों की पीडीएफ फाइल क्लॉड या चैटजीपीटी में डालकर पढ़ते हैं और पढ़ते-पढ़ते एआई से सवाल भी पूछते रहते हैं। वह एआई को ग्रैनोला की तरह इस्तेमाल करते हैं और लेक्चर के ट्रांसक्रिप्शन तैयार करा लेते हैं। वह इंजीनियरिंग की प्रक्रियाओं को पेशेवर तरीके से समझने के लिए ग्लोबल एक्सप्लोरर का इस्तेमाल करते हैं।
हुदजा को पता है कि एआई को झांसा देकर संवेदनशील विषयों की जानकारी कैसे पाई जा सकती है। जिन लोगों को एआई बहुत सहज लगता है, उनमें से कुछ ने व्यावसायिक ड्रोन्स के सैन्य इस्तेमाल के बारे में पूछा है, ऑटोमैटिक हथियारों की 3डी प्रिंटिंग, देसी बम बनाने के तरीकों, गति महसूस होते ही चलने वाले हथियारों, फेंटानिल बनाने के तरीकों और बिना तकलीफ खुदकुशी के रास्तों की जानकारी भी खंगाली है। एआई में फ्रीमैन डायसन की तरह नैतिकता नहीं है। ओपन सोर्स एआई को इस्तेमाल करने वाले कोड बदलकर सुरक्षा की कोई भी दीवार गिरा सकते हैं। ऐसे एआई प्लेटफॉर्म के आने के बाद तो कुछ भी हो सकता है।