दूसरी तिमाही के नतीजों का समय समाप्त हो रहा है और 2,776 सूचीबद्ध कंपनियों के नतीजों से मुनाफे में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। दूसरी तिमाही में बिक्री में करीब तीन फीसदी की कमी आई और यह 23.57 लाख करोड़ रुपये रह गई। पिछले वर्ष की समान तिमाही में यह राशि 24.35 लाख करोड़ रुपये थी। परिचालन लाभ (मूल्यह्रास ब्याज और कर पूर्व लाभ या पीबीडीआईटी) 30.4 फीसदी बढ़ा है और कर पश्चात लाभ (पीएटी) में 316.8 फीसदी का जबरदस्त इजाफा हुआ है। मुनाफे में जबरदस्त इजाफे को समझने के लिए समायोजन की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए इसमें दूरसंचार कंपनियों भारती एयरटेल और वोडाफोन इंडिया को पिछले साल हुआ 73,966 करोड़ रुपये का अप्रत्याशित नुकसान भी शामिल है। रिफाइनरियों के नतीजों को भी इससे बाहर रखने की आवश्यकता है जिन्हें इन्वेंटरी के पुनर्मूल्यांकन के बाद अप्रत्याशित लाभ हुआ। बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के ऋण का विस्तार हुआ है और उनका मुनाफा बढ़ा है। इनके नतीजे भी अस्थिर हैं।
दूरसंचार सेवा प्रदाताओं, रिफाइनरी, एनबीएफसी और बैंकों के नतीजों के समायोजन के बाद तस्वीर बदल जाती है। शेष बची 2,457 कंपनियों के नमूनों में बिक्री में एक फीसदी की मामूली गिरावट दिखती है जबकि उनके पीबीडीआईटी में 27.17 फीसदी और पीएटी में 55 फीसदी की उछाल नजर आती है। परिचालन मार्जिन एक वर्ष पहले के 15 फीसदी से सुधरकर 19.35 फीसदी हो गया। ध्यान देने वाली बात है कि 2019-20 की दूसरी तिमाही बेहद कमजोर तिमाही थी जिससे आधार कमजोर रहा। इसके बावजूद पहली तिमाही की त्रासदी की तुलना में यह सुधार उल्लेखनीय है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर रहा। कृषि रसायन कंपनियों के बेहतरीन नतीजे, ट्रैक्टरों की बिक्री में इजाफे, उर्वरकों की बिक्री में तेजी और खाद्य तेलों की बिक्री और उनके मुनाफे, बागवानी उद्योग और चीनी कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार इसका प्रमाण है। संभव है कि ग्रामीण मांग में सुधार के कारण ही दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की कंपनियों की बिक्री और मुनाफे में दो अंकों की वृद्धि हुई हो। बुनियादी क्षेत्र की कुछ कंपनियों का प्रदर्शन भी अच्छा रहा। स्टील का उत्पादन और सीमेंट की बिक्री तथा मुनाफा भी बढ़ा है।
बिजली उत्पादन क्षेत्र की बिक्री और मुनाफा भी बेहतर हुआ है। यह आमतौर पर आर्थिक गतिविधियों में बेहतरी का संकेतक होता है। यहां एक पहेली है क्योंकि कुल प्रादर्श में बिजली की लागत में 12 फीसदी की कमी नजर आई है। शायद जेनरेटरों के उच्च मुनाफे की असमानता और उपभोक्ताओं की कम लागत की यह पहेली तब समझ जाए जब सरकारी वितरण कंपनियों के अंाकड़ों पर विचार किया जाए जो अंतिम उपभोक्ता को बिजली मुहैया कराती हैं। यदि स्टील, सीमेंट और बिजली की खपत बढ़ी है तो औद्योगिक सक्रियता बढऩी चाहिए। सूचना प्रौद्योगिकी जैसे अहम निर्यातक क्षेत्र की बिक्री 4.1 फीसदी बढ़ी है और उसके कर पश्चात लाभ में 12.3 फीसदी का इजाफा हुआ है। अधिकांश ने आशावादी रुख दिखाया है। औषधि उद्योग की बिक्री 8.7 फीसदी और कर पश्चात लाभ 26.7 फीसदी बढ़ा है। रियल्टी क्षेत्र, विनिर्माण और बुनियादी ढांचा क्षेत्र का प्रदर्शन भी बेहतर रहा है। वाहन उद्योग जिसे व्यापक खपत के सबसे विश्वसनीय संकेतकों में से एक माना जाता है, उसकी बिक्री कम रही है। वहीं टायर उद्योग को छोड़ दिया जाए तो वाहन कलपुर्जा क्षेत्र का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है। वाहन उद्योग में तीसरी तिमाही के त्योहारी मौसम की प्रत्याशा में अच्छी खासी इन्वेंटरी अवश्य तैयार हो गई।
कुल मिलाकर नतीजे अपूर्ण लेकिन उत्साहजनक हैं। संपूर्ण प्रादर्श के लिए कर अदायगी 31.2 फीसदी बढ़ी है जिससे संकेत मिलता है कि मुनाफे वास्तविक हैं। कृषि क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के अलावा पहली तिमाही के लॉकडाउन के कारण लंबित मांग की पूर्ति भी वजह बनी है। खपत में इजाफा ही इस सुधार को स्थायित्व देगा।
