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सरकारी बैंकों में मानव संसाधन को लेकर बढ़ता संकट

Last Updated- April 26, 2023 | 8:04 PM IST
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BS

मार्च की शुरुआत में जब भारत में होली मनाई जा रही थी तब एक वरिष्ठ बैंकर मुंबई में अपने एक करीबी दोस्त की बेटी की शादी में शामिल हुए। वह सज्जन एक पांच सितारा होटल में दो दिनों तक शादी की सभी रस्मों के दौरान मौजूद रहे, लेकिन जब भी फोटो शूट कराने के लिए कैमरा क्लिक करने की बारी आती तो वह कैमरे की नजरों से दूर रहने की जुगत में लग जाते और छिपने की कोशिश करने लगते।

दरअसल वह शादी में अपनी मौजूदगी का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहते थे। दिल्ली में रहने वाले बैंकर को इस बात की चिंता सता रही थी कि कहीं उनके किसी भी बॉस को यह बात पता न चल जाए कि वह वित्त वर्ष के अंतिम महीने मार्च में दो दिनों तक मुंबई में शादी में थे। उनके इस कदम को बैंक में कर्तव्य में लापरवाही के तौर पर देखा जा सकता था। हालांकि उन दो दिनों में से एक दिन सार्वजनिक अवकाश था।

पहले भी उस बैंकर ने अपने एक सहकर्मी को मार्च में एक दिन ऑफिस से गायब रहने पर फटकार सुनते हुए देखा था। जबकि उसे बुखार था। ये सभी घटनाक्रम उस तनाव को दर्शाते हैं जिससे सरकारी बैंक के अधिकांश बैंकर गुजरते हैं।

अप्रैल की शुरुआत में हिंदुस्तान टाइम्स ने खबर दी थी कि गोरेगांव स्थित एक निजी कंपनी के प्रबंध निदेशक (MD) पर भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की हिंदू कॉलोनी शाखा के प्रबंधक को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।

दरअसल 44 साल के बैंकर संदेश मालपाणी ने नौवीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट से छलांग लगा दी थी। उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया गया था कि MD की वजह से उन्हें अपना जीवन समाप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

जनवरी में एक और रिपोर्ट (द सेंटिनल में) आई जिसके मुताबिक सिलचर पुलिस ने एक युवा शाखा प्रबंधक कुलदीप दासगुप्ता की रहस्यमय मौत के लिए SBI के मुख्य प्रबंधक (ऑडिट) योगेंद्र पांडेय को गिरफ्तार किया था। पांडेय को सिलचर रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया, जहां से वह गुवाहाटी जाने वाली आखिरी ट्रेन पकड़ने वाले थे।

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मृतक की मां द्वारा दर्ज कराई गई FIR के अनुसार दासगुप्ता ने स्थानीय किसानों को कृषि ऋण की मंजूरी देते समय अपने कुछ वरिष्ठ सहकर्मियों की भ्रष्ट गतिविधियों का पर्दाफाश किया था। दासगुप्ता की मां ने आरोप लगाया कि उनके पुत्र को मानसिक रूप से लगातार परेशान किया गया।

वर्ष 2010 और 2021 के बीच पिछले एक दशक में बैंकों में लिपिक कर्मचारियों और अधीनस्थ कर्मचारियों की संख्या घटी है जबकि अधिकारियों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2005 में लिपिक और अधीनस्थ कर्मचारियों की संयुक्त संख्या अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में कम से कम 63 प्रतिशत तक थी। वर्ष 2010 तक यह संख्या घटकर 55 प्रतिशत और 2021 तक 30 प्रतिशत हो गई थी। यह उद्योग का आंकड़ा है लेकिन डिजिटलीकरण के कारण सार्वजनिक क्षेत्र में यह संख्या और तेजी से घट रही है।

पिछले एक दशक में बैंक शाखाओं की संख्या में एक-चौथाई से अधिक की वृद्धि हुई है, लेकिन कर्मचारियों की संख्या में गिरावट आई है। इत्तफाक से वर्ष 2015 में वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों से कहा था कि वे कई वरिष्ठ अधिकारियों के जल्द सेवानिवृत्त होने के मद्देनजर निचले स्तर के कर्मचारियों को योग्यता के आधार पर पदोन्नत करने पर विचार करें।

मंत्रालय ने बैंकों से सक्षम लिपिकों को स्केल 1 और स्केल 2 अधिकारियों के रूप में पदोन्नत करने के लिए कहा। ऐसे कर्मचारियों पर दबाव बहुत अधिक है क्योंकि वे नए तंत्र के अनुरूप खुद को ढालने और बैंक की अधिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं।

निजी बैंकों के मानव संसाधन (HR) प्रमुखों को एक अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और वह है बैंकों से कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की तादाद जो अब तक के सबसे उच्च स्तर पर है (कम से कम इनमें से कुछ बैंकों के लिए)। हाल तक ग्राहकों के साथ सीधे बातचीत करने वाले और उनसे सीधे संपर्क में रहने वाले कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की दर ज्यादा थी जिनमें सलाहकार प्रबंधक भी शामिल थे। लेकिन अब सभी खंडों के कर्मचारियों ने बड़े पैमाने पर नौकरी छोड़नी शुरू कर दी है जिनमें प्रौद्योगिकी, अनुपालन और जोखिम प्रबंधन जैसी विशेष नौकरियों से जुड़े कर्मचारी भी शामिल हैं।

एक बैंक, दूसरे बैंक के कर्मचारियों को लुभाने की कोशिश तो कर ही रहे हैं वहीं इसके अलावा बैंक कर्मचारियों की आईटी कंपनियों, वित्तीय कंपनियों, वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियों (टेकफिन), एफएमसीजी कंपनियों और यहां तक कि डिलिवरी सेवा प्रदाताओं में भी उनकी मांग ज्यादा है। नौकरी छोड़ने वाले कर्मचारियों में से एक वर्ग अपने स्टार्टअप लॉन्च करने के लिए भी नौकरी छोड़ रहा है, हालांकि यह संख्या बेहद कम है। वहीं महत्त्वाकांक्षी लोग विभिन्न अवसरों की तलाश में भी हैं।

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सरकारी बैंकों में मुद्दे भी अनूठे ही हैं। ज्यादातर बैंकों में जमा और ऋण के लिए अल्पकालिक मासिक और तिमाही लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह बैंकरों के लिए तनाव का मुख्य मुद्दा प्रतीत होता है। चूंकि अधिकांश बैंक अपने कर्मचारियों को तेजी से पदोन्नति दे रहे हैं इसलिए विभिन्न वरिष्ठता स्तरों के कई कर्मचारी भी उन पदों के लिए धक्का-मुक्की कर रहे हैं, जिससे पूरा माहौल बिगड़ रहा है।

कुछ अन्य समस्याएं भी हैं। अब ज्यादातर बैंकों में तेजी से पदोन्नति दी जा रही है और विभिन्न वरिष्ठता स्तर वाले कई कर्मचारी उन पदों के लिए होड़ में लगे हुए हैं जिसकी वजह से पूरा माहौल आक्रामक हो गया है।

बैंकों में भी म्युचुअल फंड और बीमा पॉलिसी जैसे वित्तीय योजनाओं की बिक्री भी मौजूदा ग्राहकों के बीच करने पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है। अधिकांश बैंकों के लिए प्राथमिक ध्यान जमा जुटाने पर है, लेकिन कुल मिलाकर शुल्क आय बढ़ाने के लिए अन्य योजनाओं की बिक्री पर जोर देने से बैंक का मूल काम कमजोर हो रहा है।

इनमें सरकारी योजनाओं को लागू करने की पूरे 12 महीने तक चलने वाला दबाव भी जोड़ा जा सकता है। एक बड़ा मुद्दा वरिष्ठ बैंकरों द्वारा किया जाने वाला दुर्व्यवहार है, जो अपने कनिष्ठ सहयोगियों को नीचा दिखाने के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करते हैं। बैंक में अधिकांश गलतियों के लिए कनिष्ठ कर्मचारियों को दोष देने के प्रचलन से भी डर पैदा हो रहा है।

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वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी अन्य सार्वजनिक संस्थाओं जैसे कि भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) में भी माहौल बहुत अच्छा नहीं बताया जाता है। जनवरी में फर्स्ट इंडिया ने LIC के वरिष्ठ प्रबंधक सुजीत कुमार पांडेय की आत्महत्या की खबर दी थी। रिपोर्ट में यह मामला सासाराम (बिहार) का बताया गया था जिसके मुताबिक पांडेय ने फांसी लगा ली थी। उनके आत्महत्या से जुड़े नोट सार्वजनिक नहीं किए गए लेकिन उनके सहयोगी काम के दबाव के बारे में बात करते हैं।

मनोवैज्ञानिक दबाव कई बार इतना होता कि इसे वरिष्ठ कर्मचारी भी नहीं सह पाते हैं। मुझे एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ महाप्रबंधक के बारे में पता है, जिनका रक्तचाप हर बार तब बढ़ जाता है जब बैंक के प्रबंध निदेशक उनसे बात करना बंद कर देते हैं। ऐसा इस वजह से होता क्योंकि वह लक्ष्यों से चूक जाते हैं। बैठकों में भी जब उन्हें नजरअंदाज किया जाता है और बॉस उन्हें देखते भी नहीं हैं तब वह बेचैन हो जाते हैं और दफ्तर में बिताया गया उनका वक्त भी लंबा हो जाता है।

क्या वह अपनी नौकरी छोड़ देंगे? नहीं। वह इस अधिक तनाव वाले माहौल में भी काम करना जारी रखेंगे। उम्मीद है कि यह तनाव अधिकतम स्तर तक नहीं पहुंचेगा।

First Published - April 26, 2023 | 8:04 PM IST

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