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जमीनी हकीकत: जलवायु परिवर्तन- जीवन और मौत का सवाल?

में यह अवश्य स्वीकार करना चाहिए कि हाल की भयानक गर्मी के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर पड़ने वाले बोझ और इसके कारण हुई मौतों के बारे में हमें बहुत कम जानकारी है।

Last Updated- July 17, 2024 | 11:00 PM IST
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हम यह जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर भी पड़ता है जिससे लोगों की जिंदगी और आजीविका के साधन दोनों ही प्रभावित होते हैं। लेकिन हम इस बात पर पर्याप्त चर्चा नहीं करते हैं कि मौसम के ये चरम स्तर लोगों के स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित करते हैं। इस निराशाजनक दौर में जब तापमान सहन की क्षमता से ऊपर चला गया, तब हमें पता चला कि गर्मी भी जानलेवा हो सकती है। हमें यह भी मालूम हुआ कि न्यूनतम तापमान में वृद्धि यानी रात की गर्मी भी मौत का कारण बन सकती है। यह निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण है कि हम बदलते जलवायु संकट और हमारे स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बीच की कड़ियों को जोड़कर देखें।

इस साल दुनिया भर में झुलसाने वाली गर्मी पड़ी और इस भीषण गर्मी के कारण लोगों की जान भी गई। दिल्ली में जून महीने के आखिर तक यह अनुमान था कि अधिक गर्मी से करीब 270 लोगों की मौत हो गई। लेकिन मैं इस संख्या को सावधानी से देखती हूं। दरअसल हमें यह मालूम नहीं कि कितने लोगों की मौत सिर्फ गर्मी की वजह से हुई क्योंकि जिन लोगों को हृदय या गुर्दे की बीमारियों जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हैं उनकी मुश्किलें गर्मी के कारण और बढ़ जाती है। संभव है कि इस गर्मी के मौसम में कई लोग केवल भीषण गर्मी का शिकार हो गए हों, लेकिन डॉक्टरों ने इसके लिए पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं को ही इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया।

हम जानते हैं कि गर्मी के कारण वैसे लोग अधिक जोखिम की स्थिति का सामना करते हैं जिनकी काम की परिस्थितियां ही कुछ ऐसी होती हैं जिसके कारण उन्हें धूप में रहना पड़ता है जैसे कि निर्माण कार्य से जुड़े कामगार या फिर किसान। इसके अलावा गरीब तबके के लोगों को भी इसी तरह के जोखिम से जूझना पड़ता है क्योंकि उनके पास बिजली की सुविधा नहीं होती है और वे खुद को ठंडा रखने के लिए विभिन्न उपकरणों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते हैं।

लेकिन उनकी मौत की वजहों में गर्मी नहीं गिनी जाती है और यह मान लिया जाता है कि वे गरीब या बूढ़े हैं और उनकी मौत किसी ‘अज्ञात कारणों’ की वजह से हुई है। इसके अलावा भीषण गर्मी का शिकार होने जैसी स्थिति को कोई अधिसूचित बीमारी में नहीं गिना जाता है जिसका अर्थ यह भी है कि आगे किसी भी कार्रवाई के लिए गर्मी से जुड़ी परेशानी की बात दर्ज किए जाने या इससे जुड़ी सूचना मुहैया करने की जरूरत नहीं पड़ती है।

इसलिए हमें यह अवश्य स्वीकार करना चाहिए कि हाल की भयानक गर्मी के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर पड़ने वाले बोझ और इसके कारण हुई मौतों के बारे में हमें बहुत कम जानकारी है।

हालांकि शोध अब भयानक गर्मी के विभिन्न आयामों की ओर इशारा कर रहे हैं। पहला, यह समझा जा रहा है कि रात के वक्त गर्मी बढ़ने से अधिक तादाद में मौत होती है।

एक ब्रितानी मेडिकल जर्नल, ‘दि लैंसेट’ के 2022 के एक शोध पत्र में यह पाया गया कि ठंडी रातों वाले तापमान की तुलना में गर्म रात वाले दिनों में मृत्यु का जोखिम 50 फीसदी से अधिक हो सकता है। इस शोध पत्र के लेखकों का कहना है कि गर्मी के कारण लोगों की नींद भी प्रभावित होती है और इसके चलते शरीर को आराम करने का मौका नहीं मिलता जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य से जुड़े तनाव की स्थिति बढ़ती जाती है।

दूसरा, हम यह जानते हैं कि वाष्पीकरण हमारे शरीर को ठंडा करने का एक तरीका है लेकिन यह तब प्रभावी नहीं होता है जब आर्द्रता 75 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाती है और इसे वेट बल्ब घटना कहते हैं। इसलिए न केवल तापमान बल्कि अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक सर्दी की स्थिति को समझने की सख्त जरूरत है।

चिंता की बात यह है कि हम इन सभी तीन जानलेवा कारकों में बढ़ोतरी का रुझान देख रहे हैं खासतौर पर शहरी केंद्रों में। यहां तापमान मानवीय सहनशीलता के स्तर से ऊपर बढ़ रहा है और इसके साथ ही आर्द्रता और रात के वक्त गर्मी भी बढ़ रही है। सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट में मेरे एक सहयोगी की एक ताजा रिपोर्ट में भारत के प्रमुख शहरों में गर्मी के रुझान पर नजर रखी गई और यह पाया गया कि देश के औसत तापमान के विपरीत शहरों की वायु के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में अधिक आर्द्रता वाली गर्मी देखी जा रही है और पिछले से पिछले दशक 2001-10 की तुलना में 2014-23 के दशक के मुकाबले 5-10 फीसदी की बढ़ोतरी देखी जा रही है। केवल बेंगलूरु में गर्मी के आर्द्रता के स्तर में कोई बढ़ोतरी नहीं देखी गई और इस पर और जांच की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में यह पाया गया कि सभी जलवायु क्षेत्रों के शहरों में रात में ठंड नहीं होती है। इसमें यह बताया गया कि 2001-10 के दशक में गर्मी के मौसम में रात का तापमान दिन के शीर्ष स्तर के तापमान से 6.2 डिग्री सेल्सियस -13.2 डिग्री सेल्सियस (विभिन्न शहरों में) तक कम हो गया।

लेकिन पिछली 10 गर्मियों के सीजन में, दिन और रात के तापमान (अधिकतम और न्यूनतम) के बीच का यह अंतर कम हो रहा है। हैदराबाद में 13 प्रतिशत की गिरावट आई है, दिल्ली में 9 प्रतिशत और बेंगलूरु में यह 15 प्रतिशत तक है। कोलकाता में पहले से ही दिन और रात के तापमान के बीच का अंतर कम था और अब उच्च आर्द्रता स्तर के कारण इसकी स्थिति और भी खराब हो गई है।

हम जानते हैं कि यह सब हमारी दुनिया के दोहरे झटके का हिस्सा है। एक तरफ, ग्रह गर्म हो रहा है और इस साल ने पिछले सभी उच्च तापमान के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इससे भी खराब बात यह है कि अनियमित बारिश, भीषण गर्मी और हवा के रुख में बदलाव से मौसम में भी परिवर्तन देखा जा रहा है। इससे गर्मी और अधिक तनावपूर्ण और घातक हो जाती है। दूसरी ओर, हमारे शहरों में स्थानीय स्तर पर औसत तापमान में नाटकीय बदलाव देखने को मिल रहा है हरियाली वाली जगहों का स्थान कंक्रीट निर्माण के लेने से गर्मी का प्रभाव और बढ़ जाता है। साथ ही यातायात और शीतलन के लिए ऊर्जा के उपयोग से हवा में गर्मी और बढ़ जाती है।

इस दौर ने हमें गर्मी से जुड़े दबाव-तनाव के बारे में नए सबक सिखाए हैं। तथ्य यह है कि जलवायु परिवर्तन में मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के साथ ही हमें ऐसी कई बातों से हैरान करने की क्षमता है। अब भी इस विज्ञान को समझना बाकी है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव निश्चित रूप से हमारे शरीर और हमारे स्वास्थ्य पर ज्यादा पड़ेगा। यही कारण है कि ग्रह की जैसी स्थिति होगी उसका सीधा संबंध मानव स्वास्थ्य से जुड़ा होगा। अब समय आ गया है कि हम यह समझें कि जलवायु परिवर्तन अस्तित्व से जुड़ा संकट क्यों है और यह वास्तव में जीवन और मौत के सवाल से भी जुड़ा है।

(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट से संबद्ध हैं)

First Published - July 17, 2024 | 11:00 PM IST

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