व्यापार नीति के लिहाज से पिछला वर्ष हितकारी नहीं रहा है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रावधानों के अनुरूप व्यापक आर्थिक एकीकरण की दिशा में कुछ सकारात्मक बदलाव जरूर हुए। परंतु, नियम आधारित व्यवस्था के विपरीत हुईं व्यापारिक गतिविधियों से इन सकारात्मक बदलावों का महत्त्व कम हो जाता है। विशेषकर, अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देशों द्वारा उठाए गए कुछ कदम इसका प्रमुख कारण रहे हैं।
अमेरिका में महंगाई नियंत्रण अधिनियम (आईआरए) और यूरोपीय संघ द्वारा तैयार कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के नियम-कायदों के उल्लंघन के दो बड़े उदाहरण रहे हैं। इन दोनों ही मामलों में अमेरिका और यूरोपीय समूह ने दूसरे देशों के व्यापारिक हितों की परवाह किए बिना एकतरफा निर्णय लिए हैं।
आईआरए और सीबीएएम इस वर्ष क्रमशः जनवरी और अक्टूबर में प्रभावी हुए थे। ये दोनों ही उपाय इस नाम पर किए गए थे कि इनसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में सहायता मिलेगी और इसके साथ आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने में भी आसानी होगी। यह भी तर्क दिया गया कि उत्तर अमेरिका और ईयू के बीच व्यापार को प्रोत्साहन देने में भी इससे मदद मिलेगी। मगर ये दोनों ही उपाय अन्य देशों के हितों के लिए ठीक नहीं हैं।
आईआरए के अंतर्गत इलेक्ट्रिक-वाहन बैटरी विनिर्माण के लिए भारी सब्सिडी दी गई है। इसमें स्थानीय सामग्री पर विशेष जोर दिया गया है और कहा गया है कि मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) करने वाले देशों से ही उपकरणों के इस्तेमाल को वरीयता दी जाएगी। यह भी प्रावधान किया गया है कि चीन से उपकरणों के इस्तेमाल पर रोक होगी। ये बातें शुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (गेट) की धारा 24 का सीधा उल्लंघन हैं।
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सीबीएएम डब्ल्यूटीओ में वर्णित सर्वाधिक तरजीही देश (एमएफएन) और नैशनल ट्रीटमेंट (एनटी) सिद्धांत का सीधा उल्लंघन करते हैं। सीबीएम में ईयू उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ईटीएस) का प्रावधान देकर कुछ खास क्षेत्रों में निर्यात करने वाले देशों के लिए व्यापार से जुड़ी संभावनाएं शून्य कर दी गई हैं। अमेरिका और ईयू इस व्यवस्था को बढ़ाने में आगे रहे हैं और इनके सहयोगी देश भी व्यापार शर्तों एवं संरक्षणवादी नीतियों का अनुसरण करने में पीछे नहीं रहे हैं।
उदाहरण के लिए 2023 में चिप विनिर्माण उद्योग में नीदरलैंड्स ने कुछ उच्च सेमीकंडक्टर उपकरणों के निर्यात और जापान ने चिप बनाने में इस्तेमाल होने वाली कुछ धातुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। इन दोनों देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर अमेरिका के साथ किए गए तीनतरफा समझौते के तहत यह कदम उठाया था। इस महीने के शुरू में ब्रिटेन ने भी ईयू का अनुसरण किया और कार्बन की बहुलता वाली कुछ खास वस्तुओं के आयात पर कार्बन बॉर्डर टैक्स लगाने की घोषणा कर दी।
अमेरिका की बात करें तो इसकी व्यापार नीति में कई खामियां देखने को मिली हैं। अमेरिका की एकतरफा, संरक्षणवादी व्यापार और हाल में औद्योगिक नीतियां चीन को ध्यान में रखकर लाई गई हैं। अमेरिका कहता रहा है कि चीन नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था का उल्लंघन करता रहा है। मगर अमेरिका द्वारा उठाए गए कदम भी उसी तरह के हैं। बस एक बड़ा अंतर यह रहा है कि अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे व्यापार अवरोधकों में पारदर्शिता अधिक रही है।
वर्ष 2017-23 की अवधि के बीच अमेरिका ने सबसे अधिक (5,198) नुकसानदेह व्यापार एवं औद्योगिक नीति हस्तक्षेप किए हैं। चीन का आंकड़ा (3,469) थोड़ा कम रहा है। इतना नहीं नहीं, अमेरिका की अगुआई में एशिया-प्रशांत आर्थिक ढांचा (आईपीईएफ) अपने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यापार स्तंभ पर किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रहा है।
एक नियम आधारित व्यापार व्यवस्था तैयार कर चीन का प्रभाव कम करने के लिए यह बाइडन प्रशासन की व्यापार एवं आर्थिक पहल थी। अमेरिका में व्यापार मंत्रियों की बैठक के बाद आईपीईएफ का महत्त्व कम हो गया है। ऐसी उम्मीद जताई गई थी कि आईपीईएफ नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली पर आधारित होगा और इससे श्रम, पर्यावरण और डिजिटल व्यापार जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा।
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आईपीईएफ के अस्तित्व को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका के राजनीतिक गलियारों में इस रणनीतिक कदम को लेकर धारणा में अंतर और अगले वर्ष राष्ट्रपति चुनाव के कारण ऐसा हो रहा है। इस वर्ष के शुरू में अमेरिका की अगुआई में विवाद निपटान प्रणाली (डीएसएम) में सुधार को लेकर अनौपचारिक बातचीत में भी कई असमानताएं हैं। अमेरिका की डीएसएम को दोबारा अस्तित्व में लाने में कोई रुचि नहीं है।
डीएसएम डब्ल्यूटीओ का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ रहा है और गेट के डब्ल्यूटीओ में परिवर्तित होने में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। विवाद निपटान के लिए एक स्थापित प्रणाली होने से वैश्विक व्यापार प्रणाली में स्थिरता बनी रही है मगर अब देशों के बीच विवाद सुलझाने में अक्सर देरी हो रही है। द्विपक्षीयवाद और आदर्श मिसाल देने में अमेरिका की घटती रुचि से विवादों के निपटान में अनिश्चितता बढ़ जाएगी जिसका वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक असर होगा।
भू-राजनीतिक विवशताओं के कारण होने वाले व्यापार से भी वैश्विक मूल्य श्रृंखला का प्रारूप बदल रहा है। 2022 की पहली तिमाही से करीबी देशों के साथ व्यापार बढ़ाने का सिलसिला भी जोर पकड़ रहा है। व्यापार का दायरा बड़े व्यापार संबंधों तक सीमित रह गया है और व्यापार में साझेदार देशों की संख्या भी घटती जा रही है। बात यहीं नहीं खत्म नहीं होती है।
भू-राजनीतिक लिहाज से करीबी संबंध रखने वाले देशों में होने वाले औसत बदलाव सकारात्मक लग रहे हैं जबकि भू-राजनीतिक रूप से दूर देशों के साथ व्यापारिक संबंध कमजोर होते जा रहे हैं। करीबी देशों के बीच व्यापार में होने वाले बदलावों की तुलना में दूरस्थ देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते कमजोर होने की गति कहीं अधिक है।
विकसित देशों में अपने यहां विनिर्माण को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि तेजी से उभरते बाजारों से मध्यवर्ती वस्तुओं का व्यापार कम होता जा रहा है और जीवीसी व्यापार के लिए एक प्रमुख ढांचा बना हुआ है। मित्र देशों से कच्चे माल मंगाने की प्रवृत्ति बढ़ने से मध्यवर्ती वस्तुओं के व्यापार पर और अधिक नकारात्मक असर हो सकता है।
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किसी एक देश पर कच्चे माल के लिए निर्भरता कम करने की नीति से एशिया में जीवीसी का ढांचा या प्रारूप बदलता दिख रहा है। विनिर्माण के एक प्रमुख केंद्र के रूप में चीन का दबदबा समाप्त करने के लिए क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं, खासकर, वियतनाम और ताइवान को लाभ मिले हैं मगर इसके साथ ही इन देशों ने चीन के साथ आपूर्ति व्यवस्था का एकीकरण करने की गति भी बढ़ा दी है।
व्यापार नीतियों को लेकर बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच हमें कुछ सकारात्मक घटनाक्रम पर भी अवश्य विचार करना चाहिए। पिछले कई वर्षों से धीमी गति के बाद वैश्विक स्तर पर उथल-पुथल के बीच 2022 में वैश्विक व्यापार में वृद्धि दर शानदार रही है। हालांकि, 2023 में इसकी गति धीमी जरूर हुई है। डब्ल्यूटीओ का पालन करने वाले मुक्त व्यापार समझौतों और आर्थिक एकीकरण का सिलसिला जारी है जैसा कि कॉम्प्रीहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) के सदस्यों की बढ़ती संख्या से दिख रहा है। ब्रिटेन ने नवंबर 2023 में इसके सदस्य के रूप में अपनी पहली बैठक में भाग लिया। छह और औपचारिक देश इस समूह का हिस्सा बनने के लिए अपने आवेदनों पर निर्णय आने का इंतजार कर रहे हैं।
इंडोनेशिया और फिलिपींस ने 2023 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) से जुड़े समझौते पर अपनी सहमति दे दी है। इसके साथ ही आरसेप अब अपने सभी 15 सदस्यों के लिए प्रभावी हो गया है। इस प्रगति के बाद एशिया में आंतरिक क्षेत्रीय व्यापार को मजबूती मिलेगी। पूर्वी एशिया के देशों में बढ़ते सहयोग से उम्मीद जगी है मगर 2023 इस बढ़ती चिंता के साथ समाप्त हो रहा है कि दुनिया के अन्य क्षेत्रों में एकतरफा संरक्षणवाद का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है।
(लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)