भारत में कृषि क्षेत्र के सूरत-ए-हाल पर बहुत कुछ बोला और लिखा जा चुका है। हाल में किसानों केलिए 60 हजार करोड़ रुपये की कर्जमाफी के ऐलान ने एक नया सवाल खड़ा किया है।
वह यह कि क्या इस कर्जमाफी से किसानों की हालत मे कोई सुधार देखने को मिलेगा? इस संदर्भ में भविष्य में भारत को कृषि और खाद्य सुरक्षा के मामले में मिलने वाली बड़ी चुनौतियों का जिक्र करना भी प्रासंगिक होगा।
इसकी शुरुआत हम जमीनी हकीकत और कुछ कड़वी सचाइयों से करेंगे। तकरीबन 25 साल से कृषि क्षेत्र की सालाना विकास दर महज 2 से 3 फीसदी के बीच (कुछ साल को छोड़कर जब विकास दर 5 फीसदी से ज्यादा रही) रही है।
देश के सबसे गरीब राज्यों में शुमार उड़ीसा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पिछले दशक में कृषि क्षेत्र की विकास दर 1 फीसदी दर्ज की गई है। पिछले दशक में देश की आबादी 40 करोड़ बढ़ चुकी है और यह लगातार सालाना 2 करोड़ की दर से बढ़ रही है।
पिछले 3 दशकों में कृषि उत्पादन औसत से भी कम रहा है।प्रमुख फसलों की पैदावार बढ़ाने की तमाम कोशिशों के बावजूद इनमें मामूली सुधार ही देखने को मिला है।
चावल और गेहूं के मामले में भारत की उत्पादकता इन फसलों के दुनिया के प्रमुख उत्पादक देशों के मुकाबले 30 से 35 फीसदी कम है। दरअसल, जोत की जमीन और फसल बोने के लिए इस्तेमाल की जा रही जमीन के क्षेत्रफल में पिछले 30 साल में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।
यह कमोबेश क्रमश: 18 करोड़ 50 लाख हेक्टेयर और 14 करोड़ 50 लाख हेक्टेयर है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रति व्यक्ति जल संसाधन की उपलब्धता में काफी तेजी से कमी हो रही है।
1950 के दशक के मुकाबले फिलहाल जल संसाधन की उपलब्धता में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। उपजाऊ जमीन वाले राज्य पंजाब के कुछ इलाकों में पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है।
इस वजह से फसल बोने वाली जमीन के क्षेत्रफल में लगातार कमी आ रही है। गौरतलब है कि पिछले 20 साल में खेती योग्य जमीन में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। तेजी से बढ़ रही जनसंख्या, आधारभूत संरचनाओं (रोड और इमारतें) में हो रही बढ़ोतरी, रोजाना बढ़ रहे मकानों की तादाद के मद्देनजर हालात और बदतर हो सकते हैं।
इन सारी चीजों के मद्देनजर पिछले 20 साल में प्रति व्यक्ति खाद्य पदार्थ उपलब्धता में कोई बढ़ोतरी नहीं होने पर हमें हैरान नहीं होना चााहिए।बहुप्रचारित शब्द ‘यंग इंडिया’ के संदर्भ में भविष्य में खाद्य पदार्थों की मांग में काफी इजाफा होगा।
भारत की 30 करोड़ आबादी 15 साल से कम उम्र के लोगों की है और इसके मद्देनजर भविष्य में इनके लिए कैलोरी की जबर्दस्त जरूरत पैदा होगी। इस वजह से प्रमुख खाद्य पदार्थों मसलन, चावल, गेहूं, दाल, सब्जियों व फल आदि की मांग में भयानक इजाफा होगा।
ऐसी सूरत में देश पर खाद्यान्न संकट का खतरा मंडराता नजर आ रहा है। भारत से ज्यादा आबादी वाले और साथ ही ज्यादा तेज गति से विकास करने वाले देश चीन की वजह से ग्लोबल फूड सरप्लस की उपलब्धता पर खासा प्रभाव पहले से देखने को मिल रहा है और प्रमुख खाद्य पदार्थों के दाम काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।
इसे देखते हुए खाद्य पदार्थों का आयात भी बेहतर विकल्प नहीं हो सकता, बशर्ते सरकार इसके लिए पेट्रोलियम पदार्थों की तर्ज पर सब्सिडी का प्रावधान करे। लिहाजा किसानों के लिए कर्जमाफी, बिजली बिलों की माफी, मुफ्त बिजली सप्लाई और बोरिंग जैसे ‘तोहफे’ भारतीय कृषि क्षेत्र की असली बीमारी को दूर करने में नाकाफी होंगे।
भारतीय कृषि क्षेत्र को एक साथ कई मोर्चों पर चुनौतियों से जूझना होगा। इसके लिए सबसे पहले देश के ग्रामीण इलाकों में खेती से इतर रोजगार पैदा करने की जरूरत है। 65 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराने के लिए पूरे देश में मौजूद खेती योग्य जमीन बिल्कुल पर्याप्त नहीं है।
पर्यटन, स्वास्थ्य, विनिर्माण और खुदरा क्षेत्रों में रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को मिलाकर खेती करने और सहकारी खेती कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में काफी कारगर साबित हो सकते हैं।
साथ ही, वैसे फसलों को देश में उगाने पर जोर दिया जाना चाहिए, जिनमें सिंचाई के लिए कम पानी की जरूरत हो। इसके अलावा जिन फसलों को उगाने में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है, (मसलन गेहूं, चावल, गन्ना) हम उनकी आपूर्ति के लिए आयात का सहारा ले सकते हैं।
विवादास्पद होने के बावजूद हमें जैव संशोधित फसलों पर ज्यादा जोर देना पड़ेगा, जो हमारी उत्पादकता को तेजी से बढ़ाने में काफी मददगार साबित होंगे। गौरतलब है कि हम पिछले 30 साल से इससे बचते आ रहे हैं। इसकी मुखालफत करने वाले लोगों को पिछले 5 साल में कॉटन की उत्पादकता में हुई बढ़ोतरी से सबक लेना चाहिए। इसके अलावा कृषि संबंधी उत्पादों के मामले में भारत को व्यावहारिक नीति बनाने की जरूरत है।
सुनने में यह भले ही विरोधाभासी लगे, लेकिन धनी देशों द्वारा किसानों को दी जा रही सब्सिडी भारत के हित में है, क्योंकि इसके जरिए हम सस्ते दाम में खाद्य पदार्थों का आयात कर सकेंगे।
वह दिन दूर नहीं है, जब भारत को अपने कृषि उत्पादों की हर कैटिगरी में निर्यात पर लगाम लगाने की दिशा में काम करना पड़ेगा।