कोविड महामारी की वजह से तीन साल तक फिक्की-फ्रेम्स का आयोजन नहीं हो पाया था, लंबे अंतराल के बाद इसकी शुरुआत शानदार रही। इस कार्यक्रम में नियामक ने जहां एक ओर धैर्य बरतने के बारे में बात की, वहीं उद्योग ने सरकार के समर्थन का उल्लेख किया। गौर करने वाली बात है कि कारोबार ने शानदार प्रदर्शन दर्ज किया। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) ने इस महीने की शुरुआत में मुंबई में तीन दिवसीय कार्यक्रम की मेजबानी की जो भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार के लिए एक बड़ा आयोजन माना जाता है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अध्यक्ष पी डी वाघेला ने स्पष्ट रूप से कहा कि नियामक को शुल्क तय करने के लिए जिम्मेदार नहीं होना चाहिए। ट्राई करीब 2.09 लाख करोड़ रुपये के भारतीय मीडिया मनोरंजन कारोबार का नियमन करता है। लेकिन प्रसारकों, मल्टी-सिस्टम-ऑपरेटरों और सुदूर इलाकों में सेवाएं देने वाले केबल परिचालकों के बीच चल रहे संघर्ष ने शुल्क नियमन को अपरिहार्य बना दिया। उन्होंने 81,000 स्थानीय केबल परिचालकों के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में बात की।
यकीनन, कुछ वर्षों में यह पहली बार है कि ट्राई शुल्क तय करने में अपनी भूमिका पर फिर से विचार कर रहा है जिसे इसने 2004 से ही संभाला हुआ है। हालांकि इसकी आवश्यकता नहीं है। यदि आप टेलीविजन देखना चाहते हैं, तो आपके पास तीन चीजों का विकल्प है जिससे आपके घर में सिग्नल या सामग्री आती है और यह केबल, डीटीएच के साथ-साथ दूरसंचार परिचालकों के द्वारा मुहैया कराए जाने वाले फाइबर/वायरलेस बैंडविड्थ के चलते संभव है।
यह वास्तव में कई विकल्पों के साथ अत्यधिक प्रतिस्पर्धा वाला कारोबार है। अगर यह आवश्यक वस्तुओं के दायरे में नहीं है तब नियामक को शुल्क, छूट या पैकेज जैसे बिंदुओं को तय क्यों करना चाहिए? लंबे समय से इस अखबार ने सिफारिश की है कि ट्राई को मूल्य नियमन से दूर होना चाहिए।
वाघेला ने उद्योग जगत से एक नए प्रसारण पत्र पर सुझाव आमंत्रित किए हैं। अगर यह मूल्य निर्धारण पर ट्राई के नियंत्रण को कम करने की दिशा में पहला कदम माना जाए तो इससे बेहतर समय पर नहीं हो सकता था। नया शुल्क आदेश या एनटीओ सीरीज, स्ट्रीमिंग की वृद्धि और महामारी ने टेलीविजन कारोबार को तबाह कर दिया है।
1990 के दशक की शुरुआत में निजी टेलीविजन की वृद्धि के बाद पहली बार, प्रसारण राजस्व में कमी आई है। फिक्की-फ्रेम्स 2023 में ईवाई की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्व 2021 के 72,000 करोड़ रुपये से घटकर 2022 में 70,900 करोड़ रुपये हो गया। शीर्ष स्तर पर उपभोक्ता, सदस्यता आधारित स्ट्रीमिंग वीडियो पर स्थानांतरित हो रहे हैं। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि यह 20-30 लाख घरों तक सीमित है।
असली हलचल मध्यम और निचले स्तर पर हो रही है, जहां कई लोग यूट्यूब और डीडी फ्रीडिश की सेवाएं ले रहे हैं। मीडिया पार्टनर्स एशिया के डेटा के अनुसार, सरकारी मुफ्त डीटीएच परिचालक, भारत में सबसे बड़ा टेलीविजन मंच है और यह दुनिया के पांच सबसे बड़े डीटीएच संचालकों में से एक है। हालांकि यह 5.8 करोड़ घरों के आंकड़े के साथ, सभी टेलीविजन वाले घरों के एक-चौथाई से अधिक है और यह आंकड़ा वर्ष 2021 में टेलीविजन देखने वाले लोगों (27.8 करोड़) का एक-तिहाई है।
निजी प्रसारकों और डीटीएच परिचालकों पर लागू होने वाली अधिकांश सख्ती, डीडी फ्रीडिश पर लागू नहीं होती है। इस पर संचालित होने वाले 70 चैनलों को पिछले साल विज्ञापन के रूप में लगभग 3,000 करोड़ रुपये मिले थे। इसकी वजह से यह काफी असमानता वाले खेल को बढ़ावा देता है और फिक्की फ्रेम्स सम्मेलन में भी कई वक्ताओं ने इस बात को स्वीकार किया।
कॉमस्कोर डेटा के अनुसार, यूट्यूब के मार्च 2023 में 45.5 करोड़ उपयोगकर्ता थे। यूट्यूब मुख्य रूप से मुफ्त सेवाएं देती है। यूट्यूब इंडिया के प्रबंध निदेशक ईशान जॉन चटर्जी द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, इसने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 10,000 करोड़ रुपये का योगदान दिया और 750,000 पूर्णकालिक नौकरियों के अवसर पैदा किए।
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि दोनों ब्रांड ईवाई रिपोर्ट में प्रमुखता से शामिल किए गए हैं। रिपोर्ट काफी हद तक अच्छी खबर है। यह दिखाता है कि महामारी के कारण आई मंदी के बाद कारोबार में आखिरकार सुधार देखा जा रहा है। भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार वर्ष 2019 के 1.9 लाख करोड़ रुपये से घटकर 2020 में 1.5 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर चला गया और इसके बाद वर्ष 2022 में यह 2.09 लाख करोड़ रुपये के स्तर को पार कर गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 10.5 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ने की राह पर है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ओटीटी, टेलीविजन और म्यूजिक को ताकत देने वाला अहम फिल्म कारोबार भी वापस ट्रैक पर आ गया है।
इस आयोजन की अहम बात वास्तव में भारती एयरटेल के प्रबंध निदेशक और सीईओ गोपाल विट्ठल के माध्यम से आई थी। उनका मानना है कि 5जी की ताकत का उपयोग करने के लिए, बाकी पारिस्थितिकी तंत्र को भी अपना योगदान देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘आप इस बात से कोई अंतर नहीं ला सकते कि 5जी सिर्फ एमएस (माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस) या ब्राउजिंग की पेशकश करता है।’ उन्होंने जिन चुनौतियों को सूचीबद्ध किया वे वास्तव में सामग्री के वितरण पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े आवश्यक परिवर्तन थे। शोध एजेंसियों ने ओटीटी ग्राहकों की कुल संख्या 10 करोड़ से अधिक बताई है और विट्ठल का मानना है कि लगभग 2 करोड़ लोग सीधे ओटीटी मंच की सदस्यता लेते हैं जबकि बाकी दूरसंचार सेवाओं का ही हिस्सा बने रहते हैं।
अगर एग्रीगेशन, वितरण और सामग्री से जुड़े कारोबारी मॉडल के मुद्दों से निपटा नहीं जाता है तब भारत में 40 ओटीटी में से कई खत्म हो जाएंगे । निवेशक पिछले कुछ समय से इसी बात पर जोर दे रहे हैं। जिस तरह डीटीएच परिचालकों ने 800 से अधिक चैनलों की मदद पैकेजिंग और ग्राहकों तक उनकी मार्केटिंग करने में की ठीक उसी तरह ओटीटी में भी एग्रीगेशन की आवश्यकता है।
इस इवेंट में विजुअल इफेक्ट्स, एनिमेशन और डिजिटल पर ध्यान केंद्रित करने से लेकर टेलीविजन से जुड़ी चुनौतियों और इसके विकास तक से जुड़ी कई बातें थीं जिससे भारतीय मीडिया और मनोरंजन वर्तमान में जूझ रहा है। अब वास्तव में कदम उठाने की दरकार है।