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शहरों की सबसे बड़ी मजबूती संस्कृति

Last Updated- May 22, 2023 | 9:58 PM IST
Shutter Stock

विशेषज्ञों का कहना है कि संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी मानवता। मगर संस्कृति के साथ विशेष बात यह कि इसका निरंतर विकास होता रहता है। हमारा इतिहास क्या है और यह वर्तमान से किन मायनों में भिन्न है? शहरों में हम किस तरह अपने पूर्वजों के साथ जुड़ाव बरकरार रख सकते हैं?

शहरीकरण का प्रभाव किसी क्षेत्र में आबादी संरचना तक ही सीमित नहीं है बल्कि उस क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने पर भी उतना ही दीर्घकालीन असर छोड़ता है। लोग शहरी बन सकते हैं और दीर्घ अवधि तक शहरी क्षेत्रों में रहने से विभिन्न संस्कृतियों के संपर्क में आ सकते हैं। लोग इन अवधारणाओं का आत्मसात करते हैं और उन्हें अपने साथ छोटे शहरों, गांवों में में जाते हैं। उन जगहों के लोग भी इन अवधारणाओं के प्रभाव में आ जाते हैं।

दूसरे रूप में शहरों में बाजारों के स्वरूप जिस तरह बदले हैं उनमें छोटे मगर महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक बदलावों की पहचान की जा सकती है। उदाहरण के लिए हम देख रहे हैं कि बड़े मॉल परंपरागत गल्ली-नुक्कड़ पर लगने वाले बाजारों की जगह ले रहे हैं। बड़े खुदरा सुविधा स्टोर खुलने से छोटे साप्ताहिक बाजार अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। पिछले दो दशकों में आए इन बदलावों का शहरीकरण के साथ ही सर्वांगीण विकास से भी उतना ही वास्ता है। उपभोक्ताओं के प्रभाव से मांग की बदलती प्रवृत्ति से लोग उन प्रतिष्ठानों की तरफ रुख कर रहे हैं जहां उनकी विभिन्न प्रकार की मांगे पूरी हो रही हैं।

शहरीकरण की तरह ही वैश्वीकरण के मामले में भी यह बात सटीक बैठती है। तेजी से बढ़ रही शहरी आबादी उन वस्तुओं से रूबरू हो रही है जिन्हें नियमित जिंस नहीं समझा जाता था। शहरों में रहने वाले लोग विक्रेताओं को इन वस्तुओं की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कह रहे हैं।

ये बदलाव उतने अस्थायी नहीं हैं जितना लोग उन्हें समझ सकते हैं बल्कि वे किसी शहर में रहने के भाव को प्रभावित कर रहे हैं। धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे छोटे बाजार का उदाहरण इन बदलावों के विरोध में या उन पुरानी परंपराओं के खिलाफ तर्क देने के लिए नहीं दिया जा रहा है। इसका आशय है कि ऐसे बदलाव न केवल अर्थशास्त्र का विषय हैं बल्कि इन्हें शहरीकरण के संदर्भ में भी समझने की चेष्टा की जानी चाहिए। ऐसे कई उदाहरण मिल सकते हैं जिनमें वैश्वीकरण की तरह ही शहरीकरण भी किसी शहर की संस्कृति में बदलाव ला रहा है। इसका उद्देश्य केवल इतना है कि शहरीकरण महानगरों के भविष्य की संस्कृति संस्कृति को नया रूप दे रहा है।

समाजशास्त्री पहले यह सोचा करते थे कि शहरीकरण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर आबादी के पलायन से अधिक कुछ नहीं है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो शहरीकरण का आशय एक भिन्न सामाजिक ढांचे में लोगों के पलायन या आगमन से है। अब हम यह भली-भांति समझ चुके हैं कि शहरीकरण प्रक्रियात्मक स्तर पर उलझा हुआ एवं बहु-आयामी है मगर हम शहरीकरण के रोजाना होने वाले असर को समझने के लिए किताबी बातों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। उदाहरण के लिए इस बिंदु पर विचार किया जा सकता है कि शहरीकरण के बीच सांस्कृतिक प्रारूप किस तरह बदलता है।

शहरी संदर्भ में संस्कृति एवं विरासत की चर्चा ने सदैव संरक्षण एवं पुनर्स्थापन पर बहस को आगे बढ़ाया है। इस संदर्भ में शहरी विरासत में किसी क्षेत्र के परंपरागत व्यवहार और सांस्कृतिक भिन्नता के कारण नए व्यवहारों का विकास शामिल हैं। शहरी स्थानिक संरचना की भौतिक अभिव्यक्ति इस रूप में दिखती है कि किस तरह संस्कृति शहरी क्षेत्रों में जन्म लेती है। विभिन्न जातीय पृष्ठभूमियों से लोग पलायन करते हैं और शहरों में काम करते हैं जिससे नई संस्कृतियों का आपस में मेल-जोल बढ़ता है। महानगरों में संबंधित समुदायों द्वारा अपने सांस्कृतिक व्यवहारों का पालन करने से शहरी पहचान को और जीवंत बना देता है।

शहर व्यापार, संस्कृति, शोध, उत्पादकता, समाज की प्रगति, मानव जाति एवं अर्थव्यवस्था के केंद्र के रूप में काम करते हैं। संधारणीय शहरी विकास में परिवहन तंत्र, शहरी नियोजन, जल, स्वच्छता, कूड़ा प्रबंधन, आपदा-जोखिम में कमी, सूचना तक पहुंच, शिक्षा और क्षमता निर्माण आदि शामिल हैं। 2008 में ऐसा पहली बार हुआ था जब शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक लोग रह रहे थे।

इस उपलब्धि के साथ एक नई शहरी सहस्त्राब्दी की शुरुआत हुई है और अनुमान जताया जा रहा है कि 2050 तक दुनिया की दो तिहाई आबादी शहरी क्षेत्रों में रहेगी। हरेक साल लगभग 7.3 करोड़ लोग शहरों में आ रहे हैं और दुनिया की करीब आधी आबादी पहले ही शहरों में रह रही हैं।

आंकड़ों के अनुसार महानगर क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 70 प्रतिशत योगदान देते हैं। यूएन-हैबिटेट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के ‘न्यू अर्बन एजेंडा’ के साथ अब शहरों को मानव बसावटों के लिए अधिक टिकाऊ बनाकर विकसित करने, लचीला बनाने, सुरक्षित बनाने, वृद्धि एवं संपन्नता के लिए अधिक अनुकूल बनाने पर ध्यान है।

‘क्लचरः अर्बन फ्यूचर, ग्लोबल रिपोर्ट ऑन क्लाइमेट फॉर सस्टेनेबल अर्बन डेवलपमेंट’ शीर्षक नाम से यूनेस्को की एक रिपोर्ट में शहरों को अधिक टिकाऊ बनाने में और उनकी विशिष्ट पहचान में जान डालने में संस्कृति की भूमिका पर रोशनी डाली गई है।

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अरबों लोगों तक आधारभूत ढांचा एवं सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए एक अच्छे आवास की व्यवस्था और हरित सार्वजनिक स्थान की अवश्य व्यवस्था होनी चाहिए। इनके अलावा सामाजिक अशांति एवं महामारी फैलने से रोकने में जरा भी ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए। नए शहरी कार्यसूची (एजेंडा) को इन एवं अन्य महत्त्वपूर्ण चुनौतियों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।

दुनिया में बड़ी संख्या में महानगरों को देखते हुए शहरी जीवन की गुणवत्ता बनाए रखना, शहरी पहचान की रक्षा करना, स्थानीय संस्कृति को महत्त्व देना और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, कला एवं धरोहर को टिकाऊ सामाजिक एवं आर्थिक विकास के स्तंभों के रूप में बरकरार रखना ऐसी ही एक चुनौती है।

शहरों के प्रति झुकाव, उनकी आविष्कारशीलता एवं टिकाऊ बने रहने की का श्रेय उनकी संस्कृति को जाता है। सांस्कृतिक कलाकृतियों, परंपरा एवं विरासत के कारण शहरी विकास ऐतिहासिक रूप से संस्कृति पर केंद्रित रहा है। संस्कृति के बिना शहर कंक्रीट एवं इस्पात के महज ढांचा मात्र हैं और ये सामाजिक पतन एवं बिखराव के जोखिम के मंडराते खतरे से जूझते रहते हैं।

बिना संस्कृति के शहर जीवंत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। संस्कृति शहरों की सबसे बड़ी मजबूती है। शहरी व्यवस्था मजबूत एवं टिकाऊ बनाए रखने के लिए शहरी नीतियों में सांस्कृतिक पहलुओं पर जोर दिया जाना चाहिए।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपीटीटिवनेस, इंडिया के चेयर एवं स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में व्याख्याता और देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के
चेयरमैन हैं।)

First Published - May 22, 2023 | 9:55 PM IST

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