केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने पिछले सप्ताह इस समाचार पत्र द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इस बारे में बताया कि कैसे सरकार शासन में तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। तकनीक ने सब्सिडी कार्यक्रमों की कमियों को दूर करने में मदद की है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम मेधा ई-गवर्नेंस की क्षमताओं में काफी इजाफा कर सकती है।
केंद्रीय बजट में भी एआई के लिए तीन ‘उत्कृष्टता केंद्र’ स्थापित करने की घोषणा की गई थी। इन्हें अकादमिक जगत, उद्योग और स्टार्टअप के साथ जोड़ा जाएगा। भारत के डेटा सेट प्लेटफॉर्म तथा उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना के लिए कार्य समूह पहले ही गठित किए जा चुके हैं। सरकार एक ऐसा नेटवर्क मॉडल तैयार करने पर विचार कर रही है जो बिना नवाचार को बाधित किए समुचित इस्तेमाल के लिए सुरक्षित व्यवस्था कायम करे।
सरकार ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को अधिक कुशल बनाने के लिए एआई व्यवस्था विकसित करने पर करीब 1,635 करोड़ रुपये की राशि व्यय करेगी। इसे लागू करने की प्राथमिकताओं में इंडिया स्टैक की शासन संबंधी ऐप्लीकेशंस, डिजिटल इंडिया भाषिणी के लिए बड़े भाषाई मॉडल और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं विकसित करना शामिल है। रीलॉन्च किए गए स्किल इंडिया कार्यक्रम में भी एआई पर ध्यान दिया जाएगा क्योंकि भविष्य की श्रम शक्ति के लिए यह जरूरी होगा। अमेरिका और चीन में जहां सरकारों और सरकारी एजेंसियों ने एआई को लेकर शुरुआती निवेश किया, वहीं हमारे यहां निजी क्षेत्र एआई से संबंधित स्टार्टअप को लेकर नए निवेश को गति देने वाला साबित हो सकता है। इसका दूसरा प्रभाव संपूर्ण अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर उत्पादकता बढ़ाना होगा।
इंडिया स्टैक सरकार समर्थित ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर ऐप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) मसलन आधार, यूपीआई, ईसाइन और डिजिलॉकर आदि का एक बड़ा बास्केट है। ओपन सोर्स होने के नाते कोई भी इनसे जुड़ सकता है। इस बात ने कई प्रकार की ऐप्लीकेशंस, एपीआई, पुस्तकालयों और यूजर इंटरफेस को प्रेरित किया। स्टैक विभिन्न प्रकार के इस्तेमाल के लिए व्यापक स्तर पर आंकड़े एकत्रित करता है। अगर एआई संचालित अलगोरिद्म को आंकड़ों के अध्ययन के लिए लगाया जाता है तो यह उपभोक्ताओं के व्यवहार और खपत के रुझान को लेकर गहन अंत:दृष्टि प्रदान कर सकता है। ऐसे एआई को शामिल करने की जहां सराहना की जानी चाहिए, वहीं निजता बरकरार रखने के लिए सख्त निगरानी की आवश्यकता होगी। डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति में डेटा लीक से बचने के लिए भी ऐसा करना आवश्यक होगा। इस दिशा में सतर्कता बरतते हुए ऐसा किया जा सकता है कि केवल भारतीय स्टार्टअप और शोधकर्ताओं की ही डेटा तक सीधी पहुंच हो। इसके अलावा मजबूत गोपनीयता प्रोटोकॉल की आवश्यकता है क्योंकि स्थानीय संस्थानों द्वारा दुरुपयोग के खिलाफ कोई गारंटी नहीं है।
अगर भारत डिजिटल समावेशन और कौशल को गति देने के लिए बड़े पैमाने पर एआई का इस्तेमाल करता है तो उसे मौजूदा अलगोरिद्म के पूर्वग्रहों को दूर करने के लिए कड़े मानक अपनाने होंगे। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि एआई जातियों और समुदायों के प्रति डेटा में मौजूद पूर्वग्रहों को स्मृति में न रखे। इसके लिए अंकेक्षण प्रणाली तैयार करना शामिल है ताकि यह समझा जा सके कि एआई कैसे सोचता है। ऐसा इसलिए कि यह प्रोग्रामिंग करने वालों के लिए एक ब्लैक बॉक्स की तरह हो सकता है। भारत में डेटा सेट में एआई को अपनाने की एक वजह यह हो सकती है कि देश में विविधता बहुत अधिक है और इसका आकार बहुत बड़ा है। ऐसे में डेटा सेट का आकार भी विशाल है। जब बात बड़े भाषाई मॉडल की आती है मसलन चैट जीपीटी आदि की तो यहां भी भारत को स्वत: बढ़त हासिल है क्योंकि यहां काम करने के लिए अनेक भाषाओं का ढेर सारा डेटा मौजूद है। अगर भारत इस नीति के साथ आगे बढ़ता है तो वह एआई के क्षेत्र में अग्रणी देश बन सकता है। इसके साथ ही सरकार नागरिकों को संभावित हानि से बचाने और उसे सीमित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने पर भी विचार कर सकती है।