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Editorial: स्टार्टअप के लिए मजबूत बोर्ड जरूरी

262 करोड़ रुपये के फंड दुरुपयोग का आरोप, ब्लूस्मार्ट सेवा बंद, निवेशकों और उपभोक्ताओं को भारी नुकसान

Last Updated- April 17, 2025 | 11:06 PM IST
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जेनसोल इंजीनियरिंग का मामला, जिसमें प्रवर्तकों ने कथित तौर पर फंड को अपने व्यक्तिगत कामों में इस्तेमाल किया, भारतीय स्टार्टअप जगत में धोखाधड़ी की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक माना जा रहा है। यह न केवल देश की सराहनीय उद्यमिता पर एक बदनुमा दाग है बल्कि इससे स्टार्टअप की दुनिया में नियमन के माहौल को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने इस समाचार पत्र को दिए एक साक्षात्कार में आश्वस्त किया कि जेनसोल जैसे मामलों में खराब शासन-प्रशासन का मुद्दा वास्तव में व्यवस्थागत दिक्कत नहीं है और कारोबारी धोखाधड़ियों को रोकने के लिए ठोस कदम और शासन संबंधी मानक स्थापित हैं। सेबी प्रमुख यह मानते हैं कि नियामकीय सुधारों की शायद आवश्यकता नहीं लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वतंत्र निदेशकों, बोर्ड और लेखा परीक्षकों को सक्रियता दिखानी होगी ताकि भ्रष्ट कंपनियों के लालच और कदाचार पर लगाम लगाई जा सके।

यह कारोबारी धोखाधड़ी रोकने का कहीं अधिक सही तरीका प्रतीत होता है बजाय कि नियामकीय मानकों को और अधिक सख्त करने के। यह स्टार्टअप के लिए खासतौर पर सही है क्योंकि वे आमतौर पर नवाचार, तेज वृद्धि और सीमित संसाधनों वाली युवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसे पहले भी फिनटेक, एडुटेक और अन्य क्षेत्रों में ऐसी स्टार्टअप सामने आ चुकी हैं जो नियामकीय अनुपालन में कामयाब नहीं रहीं। जेनसोल तथा उसकी उपभोक्तामुखी कंपनी ब्लूस्मार्ट के सेबी के जांच के दायरे में आने के बाद विधि विरुद्ध काम करने वाली स्टार्टअप की सूची और लंबी हो गई है। मंगलवार को शेयर बाजार नियामक ने जेनसोल इंजीनियरिंग के प्रवर्तकों और निदेशकों अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी को प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित कर दिया।

ऐसा उनके कथित तौर पर फंड के दुरुपयोग तथा धोखाधड़ी करने के कारण किया गया। एक मजबूत बोर्ड रूम और साहसी स्वतंत्र निवेशक स्टार्टअप पर नजर रख सकते हैं और प्रवर्तकों द्वारा फंड के दुरुपयोग को रोक सकते हैं। इसके साथ ही बाहरी लेखा परीक्षकों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनी के फंड प्रवर्तक की निजी जागीर नहीं हैं। ऐसा लगता है कि जेनसोल के मामले में न तो बोर्ड और न ही लेखा परीक्षकों ने अपना काम ठीक से किया।

संस्थापकों ने गुरुग्राम में एक आलीशान अपार्टमेंट खरीदा, ढेर सारी धनराशि गोल्फ के उपकरण खरीदने में खर्च की और करोड़ों रुपये अपने रिश्तेदारों के खातों में हस्तांतरित किए। यह तब है जब कंपनी ने दो सरकारी एजेंसियों से कर्ज लिया था ताकि बिजली से चलने वाले वाहनों के अपने बेड़े का विस्तार कर सके। वित्त वर्ष 22 और वित्त वर्ष 24 के बीच लिए गए 977.75 करोड़ रुपये के ऋण में से संस्थापकों ने तकरीबन 262 करोड़ रुपये की राशि को जटिल लेनदेन के जरिये व्यक्तिगत कामों में खर्च किया। जेनसोल के शेयरों की कीमत विगत 12 महीनों में करीब 90 फीसदी टूट गई है।

इस सप्ताह उस पर लोअर सर्किट लगा और इससे उसके शेयरधारक प्रभावित हुए। ग्राहकों पर भी असर पड़ा क्योंकि उसकी इलेक्ट्रिक कैब सेवा ब्लूस्मार्ट ने बिना किसी पूर्व सूचना के अपना परिचालन बंद कर दिया। ब्लूस्मार्ट ने उबर और ओला के दबदबे वाले कैब एग्रीगेटर क्षेत्र में ग्राहकों को विकल्प देने की पेशकश की थी। ब्लूस्मार्ट के बंद हो जाने के बाद उपभोक्ताओं को अब इन्हीं दो विदेशी फंडिंग वाली कंपनियों में से अपना चयन करना होगा। हालांकि कुछ शहरों में रैपिडो सेवा भी लोकप्रिय हो रही है।

कुछ वर्ष पहले केलॉग स्कूल रिसर्च ने एक अध्ययन किया था जिसने यह दिखाया था कि नैतिक व्यवहार के मामले में स्टार्टअप के साथ अन्य संस्थानों की तुलना में नरमी बरती जानी चाहिए। परंतु अब समय आ गया है कि स्वतंत्र निदेशकों और लेखा परीक्षकों द्वारा अनैतिक आचरण को पहले ही चिह्नित कर दिया जाए। इसके साथ ही स्टार्टअप को भी यह याद रखना चाहिए कि उनके पास यह अधिकार नहीं है कि वे कारोबार और निजता की सीमा का घालमेल करें। यूनिकॉर्न और डेकाकॉर्न (क्रमश: एक अरब डॉलर और 10 अरब डॉलर से अधिक मूल्यवान स्टार्टअप) की स्थिति उन्हें अधिक मूल्यांकन तक पहुंचने में सहायता कर सकती है लेकिन कारोबार के अनैतिक तरीके उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं।

First Published - April 17, 2025 | 11:06 PM IST

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