facebookmetapixel
किसानों को सौगात: PM मोदी ने लॉन्च की ₹35,440 करोड़ की दो बड़ी योजनाएं, दालों का उत्पादन बढ़ाने पर जोरECMS योजना से आएगा $500 अरब का बूम! क्या भारत बन जाएगा इलेक्ट्रॉनिक्स हब?DMart Q2 Results: पहली तिमाही में ₹685 करोड़ का जबरदस्त मुनाफा, आय भी 15.4% उछलाCorporate Actions Next Week: अगले हफ्ते शेयर बाजार में होगा धमाका, स्प्लिट- बोनस-डिविडेंड से बनेंगे बड़े मौके1100% का तगड़ा डिविडेंड! टाटा ग्रुप की कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्तेBuying Gold on Diwali 2025: घर में सोने की सीमा क्या है? धनतेरस शॉपिंग से पहले यह नियम जानना जरूरी!भारत-अमेरिका रिश्तों में नई गर्मजोशी, जयशंकर ने अमेरिकी राजदूत गोर से नई दिल्ली में की मुलाकातStock Split: अगले हफ्ते शेयरधारकों के लिए बड़ी खुशखबरी, कुल सात कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिटBonus Stocks: अगले हफ्ते कॉनकॉर्ड और वेलक्योर निवेशकों को देंगे बोनस शेयर, जानें एक्स-डेट व रिकॉर्ड डेटIndiGo बढ़ा रहा अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी, दिल्ली से गुआंगजौ और हनोई के लिए शुरू होंगी डायरेक्ट फ्लाइट्स

Editorial: वज़न घटाने की दवाओं की होड़ में भारत, लेकिन ज़रूरी है सतर्कता

सस्ते जेनेरिक की उपलब्धता से बाजार के अवसर और उपभोक्ताओं को होने वाले फायदे, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। लेकिन इन्हें जोखिमों के साथ संतुलित करके देखना चाहिए

Last Updated- August 08, 2025 | 11:36 PM IST
Pharma

 

 

भारतीय दवा कंपनियां भारी लाभ कमाने की तैयारी में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वजन कम करने में सहायक और मधुमेह के इलाज में काम आने वाले औषधि घटक सेमाग्लूटाइड का पेटेंट 2026 में तकरीबन 100 देशों में समाप्त हो जाएगा। इन देशों में भारत, कनाडा और ब्राजील भी शामिल हैं। सेमाग्लूटाइड से बनने वाली दवाओं को डेनमार्क की दवा निर्माता कंपनी नोवो नॉर्डिस्क द्वारा ओजेंपिक और वीगोवी नामक ब्रांड नाम के अंतर्गत बेचा जाता है। ये दवाएं कंपनी के लिए अत्यधिक कामयाब रही हैं और अकेले 2024 में कंपनी ने इससे 25 अरब डॉलर का राजस्व अर्जित किया। आश्चर्य नहीं कि भारतीय दवा कंपनियों को भी इसमें बहुत बड़ा अवसर नजर आया है और वे सेमाग्लूटाइड का काफी सस्ता जेनरिक संस्करण बाजार में उतारने की तैयारी में हैं। भारत के घरेलू दवा उद्योग की सभी बड़ी कंपनियां मसलन डॉ. रेड्डीज, बायोकॉन, सन फार्मा, सिप्ला, ल्यूपिन और अरविंदो फार्मा आदि के बारे में खबर है कि वे इस दवा के इंजेक्शन और गोली स्वरूप को खुद तैयार करने या अनुबंध के आधार पर तैयार करवाने की योजना तैयार कर रही हैं। हालांकि बाजार अवसर और सस्ती जेनरिक दवाओं से उपभोक्ताओं के लिए लाभ दोनों का हमें जोखिम के हिसाब से आकलन करना होगा।

इस दशक के अंत तक वजन कम करने की दवाओं का वैश्विक बाजार करीब 100 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। अकेले भारत में पिछले पांच साल में यह बाजार पांच गुना बढ़ गया है और अब इसका मूल्यांकन करीब 7.3 करोड़ डॉलर है। मधुमेह और मोटापे के बढ़ते मरीजों के कारण भी इस वृद्धि को गति मिल रही है। इंटरनैशनल डायबिटीज फेडरेशन के अनुसार भारत में मधुमेह की बीमारी बहुत तेजी से फैल रही है और दुनिया में मधुमेह से पीडि़त हर चार व्यक्तियों में से एक भारतीय है। मोटापा भी महामारी के स्तर पर पहुंच रहा है क्योंकि समृद्धि बढ़ रही है और जीवनशैली में आराम तथा जंक फूड की पैठ हो गई है। ऐसे में 80 से 90 फीसदी तक सस्ती पड़ने वाली जेनरिक दवाओं के उत्पादन में भारी तेजी आने की संभावना है।

हालांकि, समृद्धि का यह सफर बाधाओं से भरा हुआ हो सकता है। नोवो नॉर्डिस्क सेमाग्लूटाइड के पेटेंट की अवधि बढ़ाने के लिए पारंपरिक ‘एवरग्रीनिंग’ की रणनीति अपना सकती है जिससे जेनरिक दवाओं के प्रवेश को रोका जा सकता है। फिलहाल उसने डॉ रेड्डीज और बेंगलूरु की ऑनसोर्स स्पेशियलिटी फार्मा पर सेमाग्लूटाइड की मार्केटिंग करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में मामला दर्ज किया है और इसके लिए पेटेंट के उल्लंघन को वजह बताया है। एली लिली नामक कंपनी अपनी मधुमेह और वजन प्रबंधन दवाओं को क्रमश: मोंजारो और जेपबाउंड के नाम से बेचती है। खबरें हैं कि यह कंपनी टिर्जेप्टाइड नामक औषधि घटक के फॉलोऑन पेटेंट के लिए प्रयास कर रही है जो 2036 में समाप्त हो रहा है। ये पेटेंट मुख्य रूप से आपूर्ति  साधन, उपचार विधियों और फॉर्मूलेशंस पर केंद्रित हो सकते हैं।

इसके साथ ही बिना पर्याप्त सुरक्षा जांच के अनुबंधित विनिर्माण का तेजी से विस्तार घरेलू दवा निर्माताओं के लिए बहुत नुकसानदेह साबित हो सकता है। कुछ समय पहले फ्रेंचाइजी इकाइयों में बनी बच्चों की खांसी की दवा से जुड़ा हादसा हमें चेताने वाली घटना है। इसके अलावा दोनों दवाओं को सख्त चिकित्सकीय निगरानी में लेना होता है और इनके साथ भोजन और व्यायाम को लेकर भी काफी सावधानी बरतनी होती है। बिना इसके मरीजों को गंभीर दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए उनकी किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है और उन्हें पेट की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे देश में जहां चिकित्सक के पर्चे पर मिलने वाली दवाएं बिना पर्चे के आसानी से मिल जाती हों और जहां लोगों में खुद ही दवा खरीदकर खाने की प्रवृत्ति हो, वहां वजन कम करने वाली दवाओं को बिना चिकित्सक की अनुशंसा के खाने के मामले भी कम नहीं। यह बात प्रभावशाली वर्ग पर खासतौर पर लागू होती है जो बिना खानपान पर ध्यान दिए ऐसी दवाओं को खाता है और गंभीर बीमारियों का शिकार होता है। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि औषधि नियंत्रक पेटेंट अवधि समाप्त होने वाली इन दवाओं के निर्माण और वितरण पर निगरानी रखे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इनसे कोई दूसरी समस्या नहीं पैदा होगी।

First Published - August 8, 2025 | 10:58 PM IST

संबंधित पोस्ट