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Editorial: दांव पर है Vodafone Idea (Vi) का अस्तित्व 

वीआई ने हाल ही में कहा कि राहत के बिना कंपनी 2025-26 से आगे नहीं चल पाएगी।अब उसकी याचिका खारिज हो गई है तो गेंद कंपनी प्रवर्तकों के पाले में है।

Last Updated- May 21, 2025 | 11:01 PM IST
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वोडाफोन आइडिया (वीआई) एक बार फिर मुश्किल में पड़ गई, जब सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम रियायत और छूट घटाने के बाद बचा सकल राजस्व (एजीआर) बकाया माफ करने की उसकी याचिका खारिज कर दी। वीआई, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज की याचिका को ‘गलत’ करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया और कहा कि सरकार चाहे तो इन दूरसंचार कंपनियों की मदद कर सकती है। तीनों कंपनियों में से केवल वीआई का भविष्य ही बतौर दूरसंचार सेवा प्रदाता अनिश्चित नजर आ रहा है। भारती एयरटेल के जनवरी-मार्च तिमाही के नतीजे बताते हैं कि उसका राजस्व मजबूत है और मुनाफा वृद्धि भी बेहतर है। टाटा टेलीसर्विसेज केवल कंपनियों को सेवा देती है और काफी समय पहले उपभोक्ता दूरसंचार कारोबार से दूरी बना चुकी है।

यद्यपि न्यायालय ने कहा है कि केंद्र सरकार किसी तरह की राहत देना चाहे तो वह राह में रोड़ा नहीं बनेगा लेकिन वीआई के लिए समय आ गया है कि वह सरकार तथा अदालतों से मदद और राहत की उम्मीद रखना बंद करे। वीआई ने 2021 में केंद्र सरकार द्वारा मंजूर राहत पैकेज के तहत कई किस्तों में अपने कर्ज को सरकारी हिस्सेदारी में बदलने का फैसला किया। फिलहाल इस दूरसंचार कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। अगर भविष्य में और अधिक हिस्सेदारी बदली जाती है तो परिभाषा के हिसाब से वीआई एक सरकारी कंपनी बन जाएगी। निश्चित रूप से सरकार ऐसा नहीं चाहती होगी। वीआई को भी ऐसी स्थिति में नहीं फंसना चाहिए क्योंकि सरकार के ऊपर पहले ही दो सरकारी कंपनियों भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) की जिम्मेदारी है। इन दोनों सरकारी कंपनियों को वर्षों से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और इनके उपभोक्ता भी लगातार कम हो रहे हैं।

सरकारी मदद चाहने या राहत के लिए न्यायालय जाने के बजाय वीआई को रकम जुटाकर अपनी व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए। अप्रैल 2024 में कंपनी ने अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम से 18,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। कुछ महीने बाद कंपनी के प्रवर्तकों में से एक यूनाइटेड किंगडम की वोडाफोन ने करीब 2,000 करोड़ रुपये की राशि डाली। इससे पहले वोडाफोन ने इंडस टावर्स में अपनी बकाया हिस्सेदारी बेच दी थी। वीआई को अपना कारोबार जारी रखने के लिए और ज्यादा रकम चाहिए तथा ग्राहकों को गुणवत्तापूर्ण दूरसंचार सेवाएं भी देनी हैं। दो कंपनियों के दबदबे वाली स्थिति से बचने का विचार सैद्धांतिक रूप से अपनी विश्वसनीयता खो रहा है। खास तौर पर उस समय, जब अगले स्तर की तकनीक एकदम आने को है। हाल ही में सरकार ने 6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम बैंड के निचले स्तर को लाइसेंस से बाहर करने के नियम का मसौदा जारी किया है। उम्मीद है कि सरकार के इस कदम से वाईफाई के विस्तार को फायदा होगा।

इस्तेमाल हो रहे स्पेक्ट्रम के सबसे बड़े ब्लॉक यानी 6 गीगाहर्ट्ज के साथ उच्च गति वाली कनेक्टिविटी का वादा यकीनन दूरसंचार क्षेत्र में कुछ समय तक बहस में रहेगा। सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा भी जल्द शुरू होने की उम्मीद है। इससे दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का एक और चरण शुरू हो जाएगा। इन हालात में भारत को ऐसे दूरसंचार सेवा प्रदाता चाहिए जो देश की डिजिटल आकांक्षाएं पूरी करने में मजबूत और जीवंत भूमिका निभा सकें। इसके साथ ही उन्हें ग्राहकों का भी ध्यान रखना है। भारत के लिए जरूरी है कि यहां बाजार में दो से अधिक दूरसंचार सेवा प्रदाता काम करें, लेकिन तीसरी कंपनी को भी मापदंड ऊंचे उठाने चाहिए और होड़ के लिए मशहूर इस क्षेत्र में अपनी जगह बनानी चाहिए।

वीआई ने हाल ही में कहा कि राहत के बिना कंपनी 2025-26 से आगे नहीं चल पाएगी।अब उसकी याचिका खारिज हो गई है तो गेंद कंपनी प्रवर्तकों के पाले में है। उन्हें विचार करना होगा कि कारोबार को कैसे बेहतर बनाया जाए और सरकार या न्यायपालिका से कुछ समय की राहत पाने के बजाय सार्थक निवेश लाया जाए।

First Published - May 21, 2025 | 10:55 PM IST

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